वैरिएगेट पोरफाइरिया क्या है?

वैरिएगेट पोरफाइरिया (वीपी) एक जेनेटिक चयापचय विकार है, जो पीपीओएक्स नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होता है। इसकी वजह से शरीर में हिमी के उत्पादन में शामिल यौगिक इकठ्ठा होने लगते हैं। हिमी हीमोग्लोबिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा या तत्व है, ये प्रोटीन पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है। सभी अंगों में इसका इस्तेमाल होता है। 
वैरिएगेट पोरफाइरिया से ग्रस्त होने पर असामान्य रूप से हिमी का उत्पादन होने लगता है। ऐसे लोग सूरज की रोशनी के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। यदि वे सूरज की रोशनी में आते हैं तो उनकी त्वचा पर फफोलेघाव हो जाते हैं।

वैरिएगेट पोरफाइरिया के लक्षण

इस बीमारी के लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न होते हैं। इस स्थिति में ज्यादातर लक्षण त्वचा संबंधी, तंत्रिका संबंधी या दोनों से जुड़े होते हैं। आमतौर पर इसके लक्षण वयस्क होने पर दिखने शुरू होते हैं। इस बीमारी से पीड़ित लोगों में न्यूरोलॉजिकल (नसों से संबंधित) लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं जैसे  पेट में दर्द, जी मचलाना, उल्टी, कब्ज और दस्त। इसके अलावा मांसपेशियों की कमजोरी, दौरे, दिल की धड़कन तेज होना और बीपी की शिकायत भी हो सकती है। इस समस्या के इलाज में दवाइयां व अस्पताल में भर्ती होकर इसका इलाज हो सकता है। इसके अलावा बीमारी के कारणों से बचकर भी इसके लक्षणों से बचा जा सकता है।

वैरिएगेट पोरफाइरिया का कारण

वैरिएगेट पोरफाइरिया पीपीओएक्स नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होता है। पीपीओएक्स जीन प्रोटोपोर्फाइरिनोजेन ऑक्सीडेज नामक एंजाइम (कोशिका के अंदर पाया जाने वाला प्रोटीन) बनाने के लिए जिम्मेदार है। पीपीओएक्स में गड़बड़ी होने से इस एंजाइम के कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस बीमारी में दिखाई देने वाले न्यूरोलॉजिकल लक्षण दवाओं, हार्मोन में बदलाव, आहार या शराब के सेवन के कारण ट्रिगर हो सकते हैं। कुछ मामलों में इसका सटीक कारण पता नहीं चल पाता है। वैरिएगेट पोरफाइरिया के कुछ मामलों में, जिनके पीपीओएक्स जीन में गड़बड़ी है, उनमें कभी-कभी पोरफाइरिया के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को धूप में जाने से  बचना चाहिए।

वैरिएगेट पोरफाइरिया का इलाज

आमतौर पर दर्द और अन्य गंभीर लक्षणों जैसे मतली व उल्टी, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और दौरे के उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। गंभीर मामलों में इन परेशानियों के साथ-साथ मांसपेशियों की कमजोरी और सांस से जुड़ी परेशानियों पर भी ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। दर्द की स्थिति में आमतौर पर नारकोटिक एनाल्जेसिक (मध्यम से गंभीर या पुराने दर्द से राहत प्रदान करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं का एक वर्ग) जैसे पेन किलर दवाओं की आवश्यकता होती है, जबकि जी मचलाना और उल्टी में फेनोथियाजाइन या ओन्डेनसेट्रॉन का सेवन किया जा सकता है।

इस बीमारी में लक्षणों के कम गंभीर होने की स्थिति को अधिक मात्रा में ग्लूकोज या अन्य कार्बोहाइड्रेट से नियंत्रित किया जा सकता है। गंभीर स्थिति में लक्षणों को रोकने के लिए हिमी प्रोटीन का इंजेक्शन दिया जाता है। अगर शुरुआती स्तर पर हिमी थेरेपी शुरू कर दी जाए तो यह काफी फायदेमंद हो साबित सकती है।

Dr. Narayanan N K

एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विज्ञान
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