ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम (टीसीएस) एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण बच्चे के चेहरे, सिर और कानों का विकास प्रभावित होता है। इस विकार से ग्रस्त ज्यादातर बच्चों में चेहरे की हड्डियां अविकसित रह जाती हैं। चेहरे पर इसका सबसे ज्यादा असर गाल की ​हड्डियों पर देखने को मिल सकता है। कई बच्चों में जबड़े और ठुड्डी (माइक्रोगैनेथिया) भी छोटी रह जाती है। इस बीमारी से ग्रस्त कुछ बच्चों का जन्म कटे हुए होंठों के साथ भी हो सकता है, इस स्थिति को क्लेप्ट प्लेट कहा जाता है। गंभीर मामलों में चेहरे की हड्डियों के अविकसित रह जाने के कारण शिशु का वायुमार्ग प्रतिबंधित हो सकता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी जानलेवा समस्याएं हो सकती हैं।

एक आंकड़े के मुताबिक 50,000 में से 1 बच्चे का जन्म टीसीएस के साथ होता है। यह लड़कों और लड़कियों दोनों को ही प्रभावित कर सकता है। कुछ बच्चों के चेहरे पर केवल हल्के परिवर्तन होते हैं, जबकि कुछ बच्चों में इसके गंभीर लक्षण देखने को मिल सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक माता-पिता से बच्चों को यह विकार जीन के माध्यम से मिल सकता है। हालांकि, हर मामले में आनुवंशिकता आवश्यक नहीं है।

इस लेख में हम ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम के लक्षण, कारण और इसके इलाज के बारे में जानेंगे।

ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम के लक्षण - Treacher Collins Syndrome Symptoms in hindi

टीसीएस के लक्षण हल्के या गंभीर हो सकते हैं। कुछ बच्चों में चेहरे पर होने वाले परिवर्तन स्पष्ट नजर नहीं आते हैं, ऐसे में इसकी पहचान कर पाना मुश्किल होता है। कुछ बच्चों में कई प्रकार की शारीरिक असामान्यताएं देखने को मिल सकती हैं, जो जीवन के लिए खतरनाक भी हो सकती हैं।

टीसीएस के साथ जन्मे बच्चों में निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक लक्षण दिखाई दे सकते हैं। 

  • गाल की हड्डियों का छोटा होना या फिर पूरी तरह से गायब होना
  • झुकी हुई आंखें (और पढ़ें - पलकों का लटकना)
  • विकृत (असामान्य बनावट) पलकें
  • निचले जबड़े और ठोड़ी का छोटा होना
  • छोटे या कानों की विकृत बनावट
  • तालू में कट होना
  • मध्य कान में समस्याएं

उपरोक्त शारीरिक समस्याओं के कारण बच्चों को सांस लेने, खाने, सुनने और बोलने की समस्या हो सकती हैं। टीसीएस वाले बच्चों की बुद्धि आमतौर पर सामान्य होती है। हालांकि, इनको बोलने में कठिनाई हो सकती है।

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ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम का कारण - Treacher Collins Syndrome Causes in Hindi

टीसीओएफ1, पीओएलआर1सी या पीओएलआर1डी जीन में उत्परिवर्तन के कारण ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम की समस्या उत्पन्न होती हैं। अब तक इसके 81 से 93 फीसदी मामलों में टीसीओएफ1 जीन में उत्परिवर्तन को ही इसका मुख्य कारण पाया गया है। जबकि पीओएलआर1सी या पीओएलआर1डी जीन में उत्परिवर्तन के सिर्फ दो फीसदी मामले ही देखने को मिले हैं। जिन लोगों में इन में से किसी भी जीन में उत्परिवर्तन देखने को नहीं मिला है, उनमें बीमारी का वास्तविक कारण अब तक पता नहीं चल सका है।

टीसीओएफ1 एक ऑटोसोमल डोमिनेटड जीन है। इसका मतलब है कि रोग का कारण बनने के लिए असामान्य जीन की केवल एक प्रति की आवश्यकता है। यह या तो माता-पिता से आनुवंशिक रूप से मिलता है या एक नए उत्परिवर्तन का परिणाम हो सकता है। यदि आप वयस्क हैं और आपको टीसीएस की समस्या है तो आपके बच्चों को भी इस विकार के होने का खतरा रहता है। टीससीएस के लगभग 80 प्रतिशत मामलों टीसीओएफ1 जीन में दोष के कारण ही होते हैं।

पीओएलआर1सी एक ऑटोसोमल रिसेसिव जीन है। इसका मतलब है कि इस बीमारी के लिए बच्चे को जीन की दो प्रतियों (माता-पिता दोनों से एक-एक) की आवश्यकता होती है। यदि दो वयस्कों में दोषपूर्ण जीन की समस्या है तो उनसे होने वाले बच्चे को बीमारी होने की 25 फीसदी आशंका होती हैं।

पीओएलआर1डी जीन को डोमिनेटड और रिसेसिव दोनों माना जाता है।

(और पढ़ें - ये 6 योगासन खुल कर सांस लेने में कर सकते हैं मदद)

ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम का निदान- Diagnosis of Treacher Collins Syndrome in hindi

ज्यादातर मामलों में जन्म के बाद बच्चे की शारीरिक जांच करके डॉक्टर टीसीएस विकार का निदान कर लेते हैं। बच्चों को देखकर भी इसके लक्षणों को पहचाना जा सकता है। बच्चे की हड्डियों की संरचना को बेहतर ढंग से जानने के लिए डॉक्टर एक्स-रे या सीटी स्कैन कराने की भी सलाह दे सकते हैं। चूंकि कई अन्य आनुवंशिक विकारों के लक्षण भी टीसीएस की तरह ही होते हैं, ऐसे में बीमारी को सटीकता से जानने के लिए आवश्यकतानुसार डॉक्टर जेनेटिक टेस्ट कराने की भी सलाह दे सकते हैं।

कई बार गर्भावस्था के कराए गए अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भी चेहरे की असामान्यताओं को देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर एमनियोसेंटेसिस का निर्देश दे सकते हैं ताकि जेनेटिक परीक्षण किया जा सके। बता दें, एमनियोसेंटेसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एमनियोटिक द्रव को टेस्ट या उपचार के लिए गर्भाशय से निकाल दिया जाता है।

रक्त, त्वचा या एमनियोटिक द्रव के सैंपल के माध्यम से जेनेटिक टेस्ट किया जाता है। लैब टेस्ट के दौरान टीसीओएफ1, पीओएलआर1सी या पीओएलआर1डी जीन में उत्परिवर्तन का पता लगाया जाता है।

ट्रेचर कोलिन्स सिंड्रोम का इलाज - Treatment of Treacher Collins Syndrome in Hindi

टीसीएस को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। इलाज के माध्यम से इसके लक्षणों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है। बच्चों में दिखाई देने वाले लक्षणों के आधार पर उन पर इलाज की आवश्यक प्रक्रियाओं को प्रयोग में लाया जाता है।

बच्चों के लिए आवश्यक इलाज के लिए आपको निम्न चिकित्सा विशेषज्ञों की आवश्यकता हो सकती है।

  • बच्चों के चिकित्सक
  • कान, नाक और गले के विशेषज्ञ
  • दंत चिकित्सक
  • प्लास्टिक सर्जन
  • स्पीच थेरपिस्ट
  • हियरिंग स्पेशलिस्ट
  • आंखों के डॉक्टर
  • साइकोलॉजिस्ट

इलाज के माध्यम से बच्चों को सांस लेने और खाने में होने वाली समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसके लिए स्पीच थेरेपी से लेकर सर्जरी जैसे उपचार के माध्यमों को प्रयोग में लाया जाता है। इसके ​अलावा इन माध्यमों से भी इलाज किया जा सकता है।

  • सुनने के लिए कान की मशीन
  • स्पीच थेरपी
  • मनोवैज्ञानिक परामर्श (साइकोलॉजिकल काउंसलिंग)
  • दांत और जबड़े को ठीक करने के लिए सहायक उपकरण
  • क्लेफ्ट प्लेट सर्जरी
  • निचले जबड़े और ठोड़ी की सर्जरी कर उसे फिर से ठीक करना
  • ऊपरी जबड़े की सर्जरी
  • आई सॉकेट की रिपेयरिंग
  • आइलिड सर्जरी
  • गालों की हड्डियों को ठीक करना
  • ईअर कैनल करेक्शन
  • सांस लेने में दिक्कत को दूर करने के लिए नाक की सर्जरी

 (और पढ़ें - कान के रोग)

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