थायराइड ग्रंथि गले में बिलकुल सामने की ओर होती है जो कि टी3 (ट्रीओडोथायरोनिन) और टी4 (टेट्रायोडोथायरोनिन) जैसे कई हार्मोंस का उत्पादन करती है। ये हार्मोंस नब्ज (पल्स रेट), शरीर के तापमान, पाचन और मूड को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
थायराइड ग्रंथि के कम सक्रिय होने पर हाइपोथायराइड और अधिक सक्रिय होने पर हाइपरथायराइड होता है। थायराइड से जुड़ी इन दोनों ही परिस्थितियों के लक्षण अलग-अलग होते हैं। आयुर्वेद में थायराइड ग्रंथि पर ज्यादा अध्ययन नहीं किया गया है लेकिन आयुर्वेद में थायराइड की सबसे सामान्य समस्याओं को गलगंड (घेंघा) के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। गलगंड में हाइपोथायराइड या हापरथायराइड के कारण थायराइड ग्रंथि में सूजन या उसका आकार बढ़ने लगता है।
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हाइपरथायराइड के लक्षणों में कांपना, अशांत रहना, दस्त और दिल की धड़कन तेज होना शामिल है। हाइपोथायराइड में त्वचा का शुष्क होना, वजन बढ़ने और कब्ज जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी गलगंड के कोई लक्षण नज़र नहीं आ पाते हैं। गलगंड होने के कुछ कारणों में थायराइड कैंसर, ग्रेव्स डिजीज (प्रतिरक्षा तंत्र का थायराइड ग्रंथि को अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाने के लिए बाध्य करना), रेडिएशन के संपर्क में आना या थायरोडिटिस (थायराइड ग्रंथि का बढ़ना) शामिल हैं।
गलगंड के इलाज और सूजन को कम करने में पंचकर्म थेरेपी की वमन चिकित्सा (औषधियों से उल्टी) और विरेचन कर्म (दस्त की विधि) के साथ-साथ रसायन चिकित्सा मदद कर सकती है। गलगंड के उपचार में प्रभावित हिस्से पर लेप लगाना भी असरकारी होता है। निर्गुण्डी और अश्वगंधा जड़ी बूटी एवं कंचनार गुग्गुल वटी तथा चित्रकादि वटी जैसे हर्बल मिश्रण गलगंड के इलाज में प्रभावी हैं।