प्रोटियस सिंड्रोम - Proteus syndrome in Hindi

written_by_editorial

September 28, 2020

November 06, 2020

प्रोटियस सिंड्रोम
प्रोटियस सिंड्रोम

प्रोटियस सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ और लंबे समय तक रहने वाली स्थिति है। इसके कारण त्वचा, हड्डियों, रक्त वाहिकाओं और संयोजी ऊतकों में असामान्य रूप से वृद्धि होने लगती है। कई बार इस प्रकार की वृद्धि को कैंसर मान लिया जाता है, लेकिन आमतौर पर यह कैंसर नहीं होता है। शरीर में होने वाली यह वृद्धि हल्की या गंभीर हो सकती है। इतना ही नहीं यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है। हालांकि, रीढ़ की हड्डी और खोपड़ी को इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देखा जाता है। आमतौर पर जन्म के समय इसके लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ 6 से 18 महीने की आयु में इसके लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं।

डॉक्टरों के मुताबिक अगर समय रहते प्रोटियस सिंड्रोम का निदान और इलाज हो जाए तो इसके 
लक्षणों को ठीक करने की संभावना अधिक होती है। अगर इसका इलाज नहीं हो पाता है तो शरीर में होने वाली यह असामान्य वृद्धि कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है। अगर इस समस्या को अनुपचारित ही छोड़ दिया जाए तो लोगों में यह शारीरिक गतिशीलता से संबंधित कई प्रकार की परेशानियों का कारण बन सकती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक प्रोटियस सिंड्रोम वाले कुछ लोगों में न्यूरोलॉजिकल असामान्यताएं भी हो सकती हैं, इसमें बौद्धिक विकलांगता, दौरे पड़ना और दिखाई न देना आदि शामिल हैं। इसके अलावा व्यक्ति के चेहरे में भी कई प्रकार की दिक्कतें हो सकती हैं जैसे चेहरे का असामान्य रूप से लंबा होना, नाक का छोटा होना, मुंह का खुला रहना आदि। इस लेख में हम प्रोटियस सिंड्रोम के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानेंगे।

प्रोटियस सिंड्रोम के लक्षण - Proteus syndrome ke kya lakshan hote hai?

प्रोटियस सिंड्रोम के लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे में भिन्न हो सकते हैं। इसके लक्षणों की समय रहते पहचान कर उपचार माध्यमों को प्रयोग में लाना आवश्यक होता है।

  • शरीर के अंगों की असामान्य वृद्धि, जैसे शरीर के एक ओर के अंगों का दूसरी ओर से छोटा रह जाना
  • त्वचा पर घाव हो जाना
  • रीढ़ की हड्डी में कर्व होना, इस स्थिति को स्कोलियोसिस भी कहा जाता है
  • पेट, हाथ और पैर पर अतिरिक्त फैट का बढ़ जाना
  • कैंसर रहित ट्यूर। आमतौर पर यह अंडाशय व मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को कवर करने वाले मेंब्रेन में पाया जाता है
  • रक्त वाहिकाओं में विकृति। इस स्थिति में खून का थक्का बनने का खतरा रहता है, कई मामलों में यह जानलेवा भी हो सकती है
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में विकृति, जो मानसिक विकलांगता का कारण बन सकती है। इस स्थिति के कारण चेहरे के लंबे होने, सिर के छोटा होने, पलकों का स्थिर न होना और नाक के बहुत चौड़े होने जैसी भी विकृति देखने को मिल सकती है
  • पैरों के तलवों की चमड़ी का बहुत मोटा होना
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प्रोटियस सिंड्रोम का कारण - Proteus syndrome kin karno se hota hai?

अब तक हुए अध्ययनों से पता चला है कि प्रोटियस सिंड्रोम की शुरुआत भ्रूण के विकास के दौरान ही होती है, जिसका प्रमुख कारण जीन में उत्परिवर्तन होता है। ​विशेषज्ञों के मुताबिक एकेटी1 जीन में उत्परिवर्तन के कारण इस प्रकार की समस्या हो सकती है। एकेटी1 जीन शरीर के विकास के लिए आवश्यक होता है। अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जीन में उत्परिवर्तन आखिर किन कारणों से होता है? हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह रैंडम यानी किसी को भी हो सकता है, इसका आनुवंशिक कारणों से कोई संबंध नहीं है।

अध्ययनों से पता चलता है कि प्रोटियस सिंड्रोम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलने वाली बीमारी नहीं है। प्रोटीज सिंड्रोम फाउंडेशन के मुताबिक माता-पिता के कुछ करने या न करने से भी इसका कोई संबंध नहीं है। यानी कि बीमारी इस बात पर भी निर्भर नहीं है कि माता-पिता में कोई कमी या उनके गुण से जीन पर कोई प्रभाव होता है या नहीं।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि जीन उत्परिवर्तन मोज़ेक है। इसका मतलब है कि यह शरीर में कुछ ही कोशिकाओं को प्रभावित करता है। इससे यह समझना आसान हो जाता है कि यह शरीर के एक ही पक्ष को क्यों प्रभावित करता है और इसके लक्षणों की गंभीरता एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इतनी भिन्न क्यों होती है?

प्रोटियस सिंड्रोम का निदान - Proteus syndrome ko kis tarah se diagnos kiya jata hai?

प्रोटियस सिंड्रोम चूंकि एक दुर्लभ स्थिति है, इस ​कारण से इसका निदान करना मुश्किल होता है। अभी तक इस बारे में डॉक्टरों को भी विशेष जानकारी नहीं है। हालां​कि, यदि किसी व्यक्ति में इसके लक्षण नजर आते हैं तो डॉक्टर सबसे पहले ट्यूमर या बढ़े हुए ऊतकों की बायोप्सी करना चाहते हैं। इसके अलावा एकेटी1 जीन में उत्परिवर्तन का पता लगाने के लिए सैंपल का परीक्षण भी कराने की सलाह दी जा सकती है।

शरीर के अंदर बढ़ने वाले किसी भी असामान्य रूप से मांस के बारे में जानने के लिए डॉक्टर आवश्यकतानुसार एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन सहित कुछ अन्य परीक्षणों को कराने की सलाह दे सकते हैं।

प्रोटियस सिंड्रोम का इलाज- Proteus syndrome ka treatment kaise hota hai?

प्रोटियस सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है। आमतौर पर इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर आवश्यकतानुसार कुछ उपायों को प्रयोग में ला सकते हैं। प्रोटियस सिंड्रोम के कारण शरीर के कई हिस्से प्रभावित हो सकते हैं ऐसे में बच्चों के इलाज और रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए आपको कई डॉक्टरों से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती है। जैसे-

  • हृदय रोग विशेषज्ञ
  • त्वचा रोग विशेषज्ञ
  • फेफड़ों के विशेषज्ञ
  • आर्थोपेडिस्ट (हड्डी के चिकित्सक)
  • फिजिकल थेरपिस्ट
  • मनोचिकित्सक

प्रोटियस सिंड्रोम एक बहुत ही असामान्य स्थिति है, जो गंभीरता में भिन्न हो सकती है। यदि समय रहते इलाज के माध्यमों से इसके लक्षणों को ठीक न किया जाए तो इसके कारण कई प्रकार की शारीरिक समस्याएं जन्म ले सकती हैं। उपरोक्त पंक्तियों में जैसे बताया गया कि इसको पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन कई ऐसी विधियां हैं जिनके माध्यम से इसके लक्षणों को ठीक करने का प्रयास किया जा सकता है। ऐसे रोगियों के उपचार के लिए सामान्य रूप से डॉक्टर फिजिकल थेरपी या सर्जरी के माध्यम को प्रयोग में लाते हैं। बच्चे के शरीर में खून के थक्के न बनने पाएं, इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। 

प्रोटियस सिंड्रोम के कारण बच्चे के जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, अगर समय से पूरी चिकित्सा मिल जाए तो स्थिति को काफी हद तक सुधारा जा सकता है।

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