1817 में जेम्स पार्किन्सन ने पार्किन्सन डिजीज की खोज की थी। तब से ये अल्जाइमर के बाद दूसरी सबसे बड़ी न्यूरोडिजनरेटिव बीमारी है। 60 साल और इससे अधिक उम्र के लोगों में होने वाली ये सबसे आम बीमारी है। कुछ लोगों में इसके लक्षण 40 साल की उम्र से पहले ही दिखना शुरू हो जाते हैं। जिन परिवार के लोगों में पार्किन्सन के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं, उनके जीन्स में पार्किन्सन का जीन्स पाया जाता है।
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हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक तरह के गट बैक्टीरिया का पता लगाया है। ये बैक्टीरिया पार्किन्सन की बीमारी को बढ़ाने वाले प्रोटीन की बढ़त को धीमा या कम कर देता है।
डेली मेल में यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की एक शोध के अनुसार वैज्ञानिकों ने बैसिलस सबटिलिस का पता लगाया है। ये एक तरह का प्रोबायोटिक है जो दिमाग में जमकर जहरीले गुच्छे बनाता है। ये गुच्छे इंसानी दिमाग में डोपामाइन को कम करते हैं। डोपामाइन दिमाग से शरीर में होने वाली हरकतों के लिए संदेश लाता और ले जाता है।
राउंडवॉर्म पर की गई रिसर्च
राउंडवॉर्म्स को पार्किन्सन के लिए इंसानी जीन के साथ शरीर में डाला गया और इससे मिले परिणामों को जर्नल सेल रिपोर्ट में छापा गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि ये माइक्रोऑर्ग्निज्म जो इंसानों के गट में मौजूद होते हैं पार्किन्सन को बढ़ाते हैं।
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प्रोटीन को बनने से रोकना
इस स्टडी को करने वाले लेखकों के अनुसार बैसिलस सबटिलिस, अल्फा सिनुक्लीन प्रोटीन को बनने से रोकता है। साथ ही साथ बैसिलस गट में पाए जाने वाले माइक्रोब में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता है।
पार्किन्सन किसी इंसान के दिमाग में तब पैदा होता है। जब अल्फा सिन्कुलीन प्रोटीन दिमाग में जगह बनाकर जहरीले गुच्छे बनाना शुरू कर देती है। इस प्रक्रिया से बनने वाली पट्टिकाएं डोपामाइन बनाने वाली तंत्र कोशिकाओं को मारना शुरू कर देती हैं, जिससे लोगों को पार्किन्सन हो जाता है।
बीमारी के लक्षण
आवश्यक तंत्र कोशिकाओं के चले जाने से शरीर में अवांछित हरकतें होने लगती हैं। इसके साथ ही निम्न लक्षण दिखाई देते हैं -
- कपकपी आना
- मांसपेशियों में ऐंठन
- शरीर की हर गतिविधि में देरी
- शरीर में असंतुलन
ये बीमारी सिर्फ चलने-फिरने में ही मुश्किलें पैदा नहीं करती है। इस बीमारी के साथ ही वो अन्य तरह की परिस्थितियों का भी अनुभव करते हैं जो उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालती हैं, जैसे-
- अवसाद और तनाव
- अनिद्रा
- अल्जाइमर और डिमेंशिया
- बहुत पसीना आना
- कब्ज
- बार-बार पेशाब आना
- दर्द
वैसे तो ये नॉन मोटर लक्षण पार्किन्सन के हर स्टेज में शामिल होते हैं पर जैसे-जैसे समय बीतता है ये भयावह रूप ले लेते हैं। ये बीमारी कितनी तेजी से फैलेगी इसके बारे में कुछ भी बताना कठिन होता है। कुछ में इस बीमारी के लक्षण बिगड़ने में कई वर्ष लग जाते हैं, वहीं कुछ लोगों में ये तुरंत निम्न से उच्च स्तर पर पहुंच जाते हैं।
डेली मेल की रिपोर्ट
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर मारिया कहती हैं कि इस शोध ने बैक्टीरिया में हुए बदलाव और गट माइक्रोब पर इसके असर पर बहुत ही बेहतरीन नमूने पेश किए हैं। डॉक्टर के अनुसार अभी तक बीमारी का कोई इलाज तो नहीं मिला है पर इसकी मदद से बीमारी के प्रभावों को कम किया जा सकेगा।
फिलहाल चूहों पर इसका सफल परिक्षण किया जा चुका है जल्द ही ये तरीका क्लीनिकल टेस्ट के लिए बाजार में फैल जाएगा।
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