व्यवहार, भावनाओं, मूड या सोच में नकारात्मक बदलाव आने पर मानसिक रोग की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। सामाजिक समस्याओं, परिवार या काम से संबंधित दिक्कतों या तनाव की वजह से मानसिक रोग हो सकता है। ये विकार न केवल व्यक्ति के काम को प्रभावित करते हैं बल्कि रिश्तों, पारिवारिक जीवन पर भी इसका असर पड़ता है।
आयुर्वेद में मस्तिष्क को इंद्रियार्थ और इंद्रियों के बीच का एक पुल माना जाता है जो कि व्यक्ति के आत्म नियंत्रण और इंद्रियों की दिशा के लिए जिम्मेदार होता है। आचार्य चरक के अनुसार मानसिक दोष, शारीरिक दोष या इन दोनों दोषों के एक साथ खराब होने पर मनस रोग या मानसिक रोग उत्पन्न होता है।
मानसिक रोगों के कुछ सामान्य कारणों में चित्तोद्वेग (चिंता), उन्माद (पागलपन), विषाद (डिप्रेशन) और अनिद्रा शामिल हैं। मानसिक रोग के इलाज एवं मानसिक स्थिति को बेहतर करने के लिए आयुर्वेदिक उपचार में गैर-हर्बल चिकित्साएं जैसे कि सत्वा वजय चिकित्सा (मनोरोग के उपाय) के साथ पंचकर्म थेरेपी में से शिरोधारा (सिर के ऊपर तेल या तरल उालने की विधि) और रसायन (शरीर को शक्ति प्रदान करने की विधि) की सलाह दी जाती है।
ब्राह्मी, अश्वगंधा और जटामांसी जैसी जड़ी बूटियां दिमाग के लिए टॉनिक की तरह काम करती हैं इसलिए मानसिक रोगों को नियंत्रित करने एवं इनके इलाज में इन जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हर्बल मिश्रण जैसे कि उन्माद गजकेसरी रस, अश्वगंधारिष्ट, स्मृतिसागर रस और सारस्वतारिष्ट भी मानसिक रोगों के इलाज में लाभकारी होता है। स्वस्थ जीवनशैली, नियमित व्यायामऔर मन लगाकर काम करने से मानसिक रोगों को नियंत्रित एवं इनसे बचने में मदद मिल सकती है।