आयुर्वेद में टांगों में दर्द को पद शूल भी कहा जाता है। अत्‍यधिक चलने, पैर की हड्डी में चोट लगने या पैर की मांसपेशियों में मोच के लक्षण के रूप में टांगों में दर्द हो सकता है। हालांकि, साइटिका,रूमेटाइड आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, गठिया, क्लॉडिकेशन (खंजता), वैरिकोज वेन्स, ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्‍चर की वजह से टांगों में दर्द हो सकता है। टांगों में दर्द के उचित इलाज के लिए पहले इसके कारण का पता लगाया जाता है।

टांगों में दर्द के आयुर्वेदिक उपचार में निदान परिवार्जन (रोग के कारण को दूर करना), स्‍नेहन (मालिश की विधि), स्‍वेदन (पसीना लाने की विधि), विरेचन (दस्‍त की विधि), बस्‍ती (एनिमा), रक्‍तमोक्षण (दूषित खून निकालने की विधि), अग्‍नि कर्म (धातु से प्रभावित हिस्‍से को जलाना) और लेप (प्रभावित हिस्‍से पर औषधियां लगाना) शामिल है। टांगों में दर्द, सूजन और जलन को कम करने के लिए जड़ी बूटियों एवं औषधियों में अश्‍वगंधा, अस्थिसंहारक, गुग्‍गुल, लाक्षा गुग्‍गुल, आरोग्‍यवर्धिनी वटी और कैशोर गुग्‍गुल का इस्‍तेमाल किया जाता है।

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  4. आयुर्वेद के अनुसार टांगों में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar tang me dard me kya kare kya na kare
  5. टांगों में दर्द के लिए आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Tang me dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Tang me dard ki ayurvedic dawa ke side effects
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टांगों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

निचले अंग के किसी भी हिस्‍से जैसे कि घुटने, जांघ या पैर से टांग में दर्द शुरू हो सकता है। ये नसों, मांसपेशियों या हड्डियों से संबंधित किसी स्थिति के कारण हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार टांग में दर्द के निम्‍न कारण हो सकते हैं:

  • साइटिका:
    साइटिका का दर्द कूल्‍हों के पीछे, नितंबों, जांघ के पीछे और पैर के अंदर या पैर के एक या दोनों हिस्‍सों में दर्द शुरु होता है। इसमें वात बढ़ने के कारण निचले अंगों की मांसपेशियों और टेंडन में होता है। साइटिका वात और कफ दोनों के खराब होने के कारण भी हो सकता है। साइटिका के लक्षणों में चुभने वाला दर्द, अकड़न और घुटनों के जोड़, पिंडली की मांसपेशियों, जांघों और कमर के निचले हिस्‍से में सनसनाहट महसूस होती है।
     
  • आर्थराइटिस:
    अंतर्निहित कारण (किसी अन्‍य बीमारी या स्थिति से संबंधित) के आधार आर्थराइटिस को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है जैसे कि आमवात (रुमेटाइड आर्थराइटिस), संधिवात (ऑस्टियोआर्थराइटिस) और वात रक्‍त (गठिया आर्थराइटिस)। आमवात जोड़ों को प्रभावित करता है जिसमें अमा का जमाव होने लगता है, इससे वात दोष में गड़बड़ी आने लगती है। संधिवात जोड़ों में खराब वात के जमाव के कारण होता है। वात और रक्‍त में गड़बड़ी के कारण वात रक्‍त आर्थराइटिस हो सकता है। सभी प्रकार के आर्थराइटिस में दर्द और जलन होती ही है।
     
  • क्लॉडिकेशन:
    कमर के निचले हिस्‍से और पैर की मांसपेशियों में खून की अपर्याप्‍त आपूर्ति के कारण क्लॉडिकेशन दर्द हो सकता है। एथरोस्‍कलेरोसिस के कारण रक्‍त वाहिकाएं बाधित होती हैं जिससे क्लॉडिकेशन दर्द उत्‍पन्‍न होता है। आयुर्वेद में क्लॉडिकेशन का अलग से वर्णन नहीं किया गया है। एनीमिया जैसी बीमारियों में इस स्थिति के लक्षणों का उल्‍लेख किया गया है। इसलिए पैरों में क्लॉडिकेशन को अनुक्त‍ि व्‍याधि (जिसका अलग से वर्णन न किया गया हो) कहा जा सकता है। इसकी वजह से जांघ में दर्द, पैर में दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है।
     
  • शिरा कौटिल्‍य (वेरीकोस वेंस): आयुर्वेदिक ग्रंथों में वेरीकोस वेंस को एक अलग स्थिति के रूप में वर्णित नहीं किया गया है लेकिन ये नसों से संबंधित विकार है जिसका संबंध शिरा ग्रंथि से हो सकता है। आचार्य सुश्रुत ने शिरा ग्रंथि को वात विकार के रूप में वर्णित किया है जो कि अत्‍यधिक एक्‍सरसाइज करने के कारण होता है। जब नसों के ऊपर या गहराई में सूजन हो या उन पर उभार आ रहा हो या उस हिस्‍से की नसों का रंग नीला पड़ रहा हो तो इस स्थिति में उन नसों को वेरीकोस वेंस कहा जाता है। यह स्थिति मुख्य रूप से निचले अंगों को प्रभावित करती है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के कारण पैरों की रक्त वाहिकाओं में खून इकट्ठा हो जाता है और उन्हें नुकसान पहुंचने लगता है।
  • ऑस्टियोपोरोसिस:
    इसे ऑस्टियोपीनिया (जिसमें हड्डियों की सघनता में कमी आ जाती है) और हड्डियों के ऊतकों को नुकसान पहुंचने के रूप में जाना जाता है जिसमें हड्डियां नाजुक हो जाती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों में हड्डी के फ्रैक्‍चर का सबसे ज्‍यादा खतरा रहता है। ये वात दोष और अस्थि धातु के खराब होने के कारण होता है। अस्थि धातु शरीर के संपूर्ण ढांचे को बनाए रखने के लिए जिम्‍मेदार होता है। अस्थि धातु में किसी भी तरह के असंतुलन का असर सीधा हडि्डयों पर पड़ता है।
     
  • फ्रैक्‍चर:
    हड्डी के कम या पूरी तरह से टूटने को फ्रैक्‍चर कहा जाता है। आचार्य सुश्रुत ने फ्रैक्चर का इलाज करने के लिए एक विशेष प्रकार की मिट्टी के साथ पट्टी लगाकर हड्डी को खींचकर वापिस अपनी जगह पर लाने और उसे स्थिर रखने का वर्णन किया है।

डायबिटीज, हाइपरएसिडिटी और बवासीर जैसी स्थितियों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी टांग में दर्द और टांग की मांसपेशियों में ऐंठन महसूस हो सकती है।

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टांग में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज

  • निदान परिवार्जन
    • इसमें रोग एवं स्थिति के कारण को दूर करने पर काम किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अमा के जमाव के कारण उत्‍पन्‍न हुई स्थिति में निदान (कारण) को दूर करने की विधि जैसे कि अल्‍पशन (सीमित मात्रा में खाना), लंघन (व्रत) और रुक्ष अन्‍नपान सेवन (शुष्‍क गुणों वाले पदार्थों का सेवन) किया जाता है।
    • निदान परिवार्जन संपूर्ण सेहत में सुधार और बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है। ये बीमारी को बढ़ने और उपचार के बाद उसे दोबारा होने से रोकता है।
    • इस थेरेपी का इस्‍तेमाल साइटिका और आर्थराइटिस के कारण हुए टांग में दर्द को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। चूंकि दोनों ही स्थितियों में टांग में दर्द का सबसे सामान्‍य कारण वात का बढ़ना ही है इसलिए दर्द से तुरंत राहत पाने के लिए वात बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
       
  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन कर्म में शरीर को अंदरूनी और बाहरी रूप से चिकना करने के लिए हर्बल और औषधीय तेल लगाए जाते हैं।
    • शरीर को अंदरूनी रूप से चिकना करने के लिए औषधीय तेल को पिया जाता है जिसे स्‍नेहपान कहते हैं।
    • वेरीकोस वेंस के इलाज में स्‍नेहपान उपयोगी है।
    • स्‍नेहपान पंचकर्म थेरेपी का ही एक प्रकार है जिससे शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।
    • ये शरीर में जमा विषाक्‍त पदार्थों को पतला कर उन्‍हें पाचन मार्ग में लेकर आता है। यहां से विषाक्‍त पदार्थों को व्‍यक्‍ति की स्थिति के आधार पर विभिन्न पंचकर्म चिकित्‍साओं के जरिए बाहर निकाल लिया जाता है।
    • स्‍नेहन के लिए विभिन्‍न प्रक्रियाओं जैसे कि अभ्‍यंग किया जाता है। अभ्‍यंग चिकित्‍सा वेरीकोस वेंस सहित कई स्थि‍तियों के इलाज में असरकारी है।
    • चूंकि, स्‍नेहन अमा को हटाने में मदद करती है इसलिए अमा के जमाव के कारण (जैसे कि आमवात) पैदा हुई स्थितियों के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • साइटिका के इलाज में भी स्‍नेहन उपयोगी है।
       
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन एक प्रकार की पसीना लाने की विधि है जिसमें विभिन्‍न चिकित्‍सकीय तरीकों जैसे कि सिकाई से पसीना लाया जाता है।
    • प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल वात विकारों जैसे कि साइटिका और वेरीकोस वेंस के इलाज में किया जाता है।
    • ये शरीर में भारीपन और अकड़न से राहत पाने में मदद करता है। आमतौर पर आर्थराइटिस के मरीजों में ये समस्‍याएं देखी जाती हैं।
       
  • विरेचन
    • विरेचन कर्म में औषधीय जड़ी बूटियों से दस्‍त लाए जाते हैं। ये शरीर से अमा और असंतुलित हुए दोष को साफ करने में मददगार है।
    • प्रमुख तौर पर इसका इस्‍तेमाल पित्ताशय, छोटी आंत और लिवर में अत्‍यधिक पित्त को हटाने के लिए किया जाता है।
    • विरेचन कर्म बढ़े हुए वात को भी हटाने में मदद कर सकता है। इसलिए इससे जोड़ों और हड्डियों के विकारों जैसे कि साइटिका और आर्थराइटिस के कारण पैदा हुए टांग में दर्द का इलाज किया जा सकता है।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती में औषधीय तेल, काढ़े या पेस्‍ट को गुदा मार्ग के जरिए बड़ी आंत तक पहुंचाया जाता है।
    • ये बड़ी आंत और मलाशय से अमा को साफ करता है और शरीर से बढ़े हुए दोष को हटाता है।
    • प्रमुख तौर पर बस्‍ती का इस्‍तेमाल अत्‍यधिक वात या वात प्रधान बीमारियों के साथ-साथ अन्‍य दोषों के खराब होने के कारण हुए विकारों के इलाज में उपयोगी है।
    • जठरांत्र और मस्‍कुलोस्‍केलेटल सिस्‍टम (हड्डियों, मांसपेशियों, कार्टिलेज, टेंडन, लिगामेंट, जोड़ों और अन्‍य संयोजी ऊतकों से युक्‍त) और लकवा संबंधी विकारों के इलाज में एकल उपचार या किसी अन्‍य उपचार के साथ बस्‍ती कर्म किया जा सकता है।
       
  • रक्‍तमोक्षण
    • इसमें शरीर की विभिन्‍न नाडियों से अशुद्ध खून को निकाला जाता है। इस चिकित्‍सा को किसी धातु के उपकरण या जोंक, गाय के सींग या सूखे करेले से किया जा सकता है।
    • ये चिकित्‍सा पित्त विकारों जैसे कि त्‍वचा रोगों और रक्‍त जनित रोगों (खून में होने वाली बीमारियां) से राहत दे सकती है।
    • ये खराब वात को संतुलित कर सकता है और गठिया, ऑस्टियोआर्थराइटिस एवं वेरीकोस वेंस जैसी स्थितियों का इलाज कर सकता है।
  • अग्नि कर्म
    • इसमें गंभीर रूप से दर्द से प्रभावित हिस्‍से को जलाया जाता है।
    • अत्‍यधिक वात की स्थिति जैसे कि साइटिका और आ‍र्थराइटिस को नियंत्रित करने में अग्नि कर्म उपयोगी है। इन स्थितियों के कारण हुए टांग में दर्द को अग्नि कर्म से ठीक किया जा सकता है।
    • अग्नि कर्म के बाद बीमारी या स्थिति के दोबारा होने की संभावना बहुत कम रहती है।
    • अगर अग्नि कर्म ठीक तरह से किया जाए तो ये घाव पर संक्रमण को भी रोकती है।
       
  • लेप
    • शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर औषधीय जड़ी बूटियों का गाढ़ा लेप तैयार कर लगाया जाता है।
    • ये दर्द, सूजन और जलन से राहत दिलाता है इसलिए ये टांग में दर्द के इलाज में असरकारी थेरेपी है।
    • दशांग लेप और जटामयादि लेप रुमेटाइड आर्थराअइ‍टिस के इलाज में उपयोगी है।

टांग में दर्द के लिए आुयर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा तंत्रिका, प्रजनन और श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है एवं इसमें सूजन-रोधी, ऊर्जादायक, शक्‍तिवर्द्धक, दर्द निवारक और शामक (आराम देने वाले) गुण होते हैं।
    • इम्‍युनिटी को बढ़ाने में अश्‍वगंधा सबसे असरकारी जड़ी बूटी है जो कि ऊतकों के इलाज को बढ़ावा देती है। ये रुमेटाइड आर्थराइटिस, एनीमिया और थकान के इलाज में उपयोगी है।
    • अश्‍वगंधा में फाइटोएस्‍ट्रोजन नामक घटक भी मौजूद होता है जिसे हड्डियों की मजबूती में सुधार लाने के लिए जाना जाता है। इस प्रकार ये जड़ी बूटी ऑस्टियोपोरोसिस और टांग में दर्द होने की स्थिति में हड्डियों को मजबूती प्रदान करती है।
       
  • अस्थिसंहारक
    • इसमें विभिन्‍न तत्‍व जैसे कि फ्लेवोनॉयड्स, बीटा-सिटोस्‍टेरोल, बीटा स्टिग्‍मास्‍टेरोल और ट्रिटरपेनोइड मौजूद हैं। बीटा-सिटोस्‍टेरोल में घाव को भरने वाले गुण होते हैं जिस वजह से ये क्षतिग्रस्‍त ऊतकों को ठीक करने में मदद कर सकता है।
    • इस जड़ी बूटी के पूरे पौधे में ही औषधीय गुण होते हैं लेकिन इसकी जड़ और तने का प्रमुख तौर पर हड्डी के फ्रैक्‍चर के इलाज में इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इस जड़ी बूटी से तैयार काढ़े को शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर लगाया भी जा सकता है और इसे पिया भी जा सकता है। इसमें उच्‍च मात्रा में विटामिन सी होता है जो इम्‍युनिटी को बढ़ाता है और इलाज को बेहतर बनाता है।
    • ये ऑस्टियोआर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और रुमेटाइड आर्थराइटिस को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है। इस प्रकार इन स्थितियों के कारण होने वाले टांग में दर्द को अस्थिसंहारक से ठीक किया जा सकता है।
       
  • गुग्‍गुल
    • गुग्‍गुल परिसंचरण, तंत्रिका, श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, ऐंठन-रोधी, ऊर्जादायक, उत्तेजक और कफ निस्‍सारक (कफ निकालने वाले) गुण होते हैं।
    • ये आर्थराइटिस के इलाज के लिए बेहतरीन जड़ी बूटियों में से एक है।
    • गुग्‍गुल कोलेस्‍ट्रॉल को भी कम करती है और इसलिए ये क्लॉडिकेशन को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • ये ऊतकों में सुधार, हड्डी के फ्रैक्‍चर के इलाज और शरीर को डिटॉक्सिफाई (वि‍षाक्‍त पदार्थों को साफ) करने में मदद करती है।
    • गुग्‍गुल हाई ब्‍लड प्रेशर के प्रभाव को कम कर टांग में दर्द से राहत प्रदान करती है।
    • ये नसों की दीवारों की सामान्‍य संरचना को बनाए रखने में मदद करती है। इसका इस्‍तेमाल वेरीकोस वेंस को नियंत्रित करने में किया जा सकता है।

टांग में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • लाक्षा गुग्‍गुल
    • इस औषधि को लाक्षा (लाख), अस्थिसंहारक, अर्जुन, अश्‍वगंधा, नागबाला और गुग्‍गुल से तैयार किया गया है।
    • ये जोड़ों में दर्द, अकड़न, छूने पर दर्द होने, किसी हिस्‍से से चटकने की आवाज आने और एडिमा के इलाज में मददगार है। अगर जोड़ को हिलाने में दिक्‍कत आ रही है तो उस समस्‍या को भी इस औषधि से ठीक किया जा सकता है।
    • इस औषधि की सामग्रियों में दर्द निवारक और पुर्नजीवित करने वाले गुण होते हैं। ये हड्डियों के इलाज और ऊतकों को सुधारने में मदद करती करती है। इस प्रकार टांग में दर्द को नियंत्रित करने में लाक्षा गुग्‍गुल असरकारी है।
       
  • आरोग्‍यवर्धिनी वटी
    • ये एक पॉलीहर्बल (एक से ज्‍यादा जड़ी बूटियों से बना) मिश्रण है जिसे कई जड़ी बूटियों जैसे कि त्रिफला (आमलकी, वि‍भीतकी और हरीतकी का मिश्रण), शिलाजीत, गुग्‍गुल, चित्रकमूल और लौह (आयरन), ताम्र (तांबा), अभ्रक और गंधक की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) से तैयार किया गया है।
    • ये तीनों दोषों को संतुलित करने और लिवर के कार्य में सुधार लाने में असरकारी है।
    • आरोग्‍यवर्धिनी वटी पाचन अग्नि को बढ़ाती है और पोषक तत्‍वों के अवशोषण में सुधार लाकर शरीर को मजबूती देती है।
    • टांग में दर्द के प्रमुख कारण कहे जाने वाले अमा के जमाव को भी इस औषधि से खत्‍म किया जा सकता है।
    • ये औषधि आर्थराइटिस और वेरीकोस वेंस के कारण होने वाले टांग में दर्द के इलाज में भी उपयोगी है।

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  • कैशोर गुग्‍गुल
    • इस औषधि की प्रमुख साम‍ग्रियां गुग्‍गुल, गुडूची और त्रिफला हैं।
    • गुग्‍गुल वात दोष को साफ करती है और गुडूची गठिया के इलाज में उपयोगी है।
    • ये सभी गुण एक साथ मिलकर दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं और जोड़ों की गतिशीलता (हिलाने-डुलाने) में सुधार लाते हैं।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और प्रभावित दोष जैसे कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि भूख, प्‍यास, मल त्‍याग और पेशाब रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के फायदे और नुकसान)
  • अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध के साथ मछली न खाएं।
  • अत्‍यधिक भारी भोजन करने से बचें।
  • ज्‍यादा शारीरिक व्‍यायाम और अधिक पैदल चलने की गलती न करें।
  • तनाव और दुख जैसी भावनाओं से दूर रहें।

एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में ऑस्टियोआर्थराइटिस (घुटने के जोड़ के) के 30 मरीजों पर इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विभिन्‍न आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं की प्रभावशीलता की जांच की गई थी। 10 की संख्‍या में बांटकर सभी प्रतिभागियों को तीन समूहों में विभाजित किया गया था।

पहले समूह को लाक्षा गुग्‍गुल दी गई, दूसरे को स्‍वेदन, स्‍नेहन और संकर्षण (खींचकर हड्डी को अपनी जगह पर वापिस लाना) और तीसरे समूह पर ये सभी तरीके अपनाए गए। इलाज से पहले और बाद में इन प्रतिभागियों में विभिन्‍न लक्षण जैसे कि जोड़ों में दर्द, एडिमा, छूने पर दर्द होना, अकड़न, प्रभावित हिस्‍से में चटकने की आवाज आना और जोड़ को हिलाने में दिक्‍कत देखी गई। अध्‍ययन में पाया गया कि तीसरे समूह के लोगों को बाकी दो समूहों की तुलना में लक्षणों से ज्‍यादा राहत मिली। इसलिए इन चिकित्‍साओं के मेल से ऑस्टियोआर्थराइटिस को नियंत्रित किया जा सकता है।

(और पढ़ें - टांग में फ्रैक्चर का इलाज)

वैसे तो आयुर्वेदिक औषधियां और उपचार प्राकृतिक एवं सुरक्षित होते हैं लेकिन अगर इनके इस्‍तेमाल के दौरान उचित देखभाव एवं सावधानी न बरती जाए तो इनके दुष्‍प्रभाव भी झेलने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए,

  • जिन लोगों की पाचन शक्‍ति बहुत मजबूत या कमजोर होती है, गले से संबंधित और बढ़े हुए कफ की स्थिति में स्‍नेहन का गलत असर पड़ सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं, बच्‍चों, बुजुर्ग एवं कमजोर व्‍यक्‍ति को विरेचन कर्म नहीं लेना चाहिए।
  • छोटे बच्‍चों और दस्‍त, गुदा से ब्‍लीडिंग और पॉलिप्‍स की स्थिति में बस्‍ती कर्म की सलाह नहीं दी जाती है।
  • ब्‍लीडिंग से संबंधित विकारों, एनीमिया और बवासीर से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को रक्‍तमोक्षण से बचना चाहिए।

टांग में दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं और ये दर्द घुटने, जांघ, पैर और पिंडली से शुरू हो सकता है। आमतौर पर टांग में दर्द को ठीक करने के लिए केमिस्‍ट से डॉक्‍टर के प्रिस्‍क्रिप्‍शन के बिना दवा ली जाती है। हालांकि, ये दवाएं केवल कुछ समय के लिए ही दर्द को कम करती हैं और शरीर से दवा के निकलने के बाद दर्द दोबारा शुरू हो जाता है।

टांग में दर्द के आयुर्वेदिक उपचार से दर्द के मूल कारण को दूर और उसे दोबारा होने से रोका जाता है। हालांकि, किसी भी चिकित्‍सा को लेने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श जरूर करें ताकि उसके हानिकारक प्रभाव से बचा जा सके और आपकी स्थिति के अनुसार आपको सही इलाज मिल सके।

(और पढ़ें - टांगों में दर्द दूर करने के घरेलू उपाय)

Dr. Harshaprabha Katole

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आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

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Dr Prashant Kumar

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Dr Rudra Gosai

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संदर्भ

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