अमेरिका स्थित रटगर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इनफ्लेमेटरी (आंतरिक सूजन और जलन या इनफ्लेमेशन संबंधी) बीमारियों से जुड़ी कई समस्याओं का इलाज ढूंढने के प्रयास में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। जानी-मानी मेडिकल पत्रिका नेचर इम्यूनोलॉजी ने इस विषय पर इन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन को प्रकाशित किया है। इसमें बताया गया है कि न्यूरोमेडिन बी (एनएमबी) नाम का एक प्रोटीन अस्थमा, एलर्जी, क्रॉनिक फाइब्रोसिस और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज (सीओपीडी) जैसे कई इनफ्लेमेटरी रोगों के इलाज में बड़ी भूमिका निभा सकता है। एनएमबी तंत्रिका तंत्रिका में विकसित होता है। दावा है कि यह अतिसक्रिय इम्यून रेस्पॉन्स और इनफ्लेमेटरी रोगों से होने वाली क्षति को रोकने में कारगर है।
इम्यून रेस्पॉन्स का मतलब शरीर की उस क्षमता से है, जिसमें वह हानिकारक तत्वों की पहचान कर खुद को उनसे बचाता है। इस काम में रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं की क्षमता और भूमिका अहम होती है। लेकिन अगर यह रेस्पॉन्स या प्रतिक्रिया ठीक प्रकार से नियंत्रित न हो तो इससे शरीर में साइटोकिन की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे शरीर में नुकसानदेह सूजन और जलन (इनफ्लेमेशन) पैदा हो सकती है। पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है कि एनएमबी प्रोटीन अस्थमा, एलर्जी, क्रॉनिक फाइब्रोसिस और सीओपीडी जैसी समस्याओं में होने वाली इस प्रकार की इनफ्लेमेशन को रोक सकता है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख लेखक और असिस्टेंड प्रोफेसर मार्क सिराक्यूसा का कहना है, 'इनफ्लेमेशन को कम करने के लिए शरीर जिस मकैनिज्म के तहत प्रतिक्रिया करता है, उसे सालों से गलत तरीके से समझा गया है। हमारा अध्ययन इसे समझने में मदद करता है और एनएमबी का इस्तेमाल करते हुए संभावित इलाजों को लेकर उम्मीद जगाता है, जिनमें अस्थमा, एलर्जी और सीओपीडी जैसी इनफ्लेमेटरी समस्याओं का इलाज करने की काफी ज्यादा क्षमता है।'
क्या है इनफ्लेमेटरी डिजीज?
शरीर की प्रक्रियाओं में आई खामियों के कारण इनफ्लेमेटरी बीमारी की समस्या हो जाती है। शरीर के किसी हिस्से में खून के प्रवाह के बढ़ने और उससे कोशिकाओं पर हुए प्रभावों के चलते जलन, सूजन, दर्द और अंगों के संचालन में मुश्किल आना शुरू हो जाती है। लेकिन इसे किसी प्रकार का संक्रमण या गंभीर चोट नहीं कह सकते। इसमें शरीर को किसी बाहरी चीज से होने वाले नुकसान की बजाय आंतरिक रूप से पैदा हुई समस्याओं के कारण नुकसान होता है। इसे ऑटोइम्यूनिटी से होने वाली क्षति कहते हैं। गठिया रोग इसका उदाहरण है। इसमें हड्डियों के जोड़ों को आवरण में रखने वाली परत के ऊतक सूज जाते हैं, जिसके चलते इसमें से निकलने वाले द्रव में बढ़ोतरी होना शरू हो जाती है। इसी कारण जोड़ों में सूजन, दर्द होने लगता है और प्रभावित अंग के संचालन में मुश्किल होने लगती है।