ब्राजील में एचआईवी एड्स से पीड़ित एक व्यक्ति के ठीक होने की आशंका जताई गई है। यह जानकारी सही निकली तो इतिहास में यह तीसरा मामला होगा, जब एचआईवी एड्स से पीड़ित कोई व्यक्ति इस बीमारी से ठीक हुआ है। हालांकि ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि इस व्यक्ति का इलाज विशेष रूप से तैयार किए गए एंटीवायरल ड्रग्स के मिश्रण (कॉकटेल) से किया गया है। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इससे पहले एड्स से ठीक हुए पहले दो मरीजों का डॉक्टरों को बोन-मैरो ट्रांसप्लांट करना पड़ा था, जो काफी ज्यादा जोखिम भरा है।
अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, एंटीवायरल कॉकटेल की मदद से किए गए इलाज के चलते ब्राजील के मरीज में कथित रूप से लंबे समय से एचआईवी लगातार कम हो रहा है। अखबार ने बताया कि मरीज का नाम अभी सामने नहीं आया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ब्राजील के प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थान 'फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ साउ पाउलो' के शोधकर्ताओं ने बताया है कि मरीज के एआईवी संक्रमण से जुड़े ब्लड टेस्टों में वायरस डिटेक्ट नहीं हुआ है और उसमें वायरस से जुड़े एंटीबॉडीज का भी पता नहीं चला है। इस आधार पर उन्होंने कहा कि यह बिना बोन-मैरो ट्रांसप्लांट के किसी मरीज के लंबे वक्त तक एचआईवी से मुक्त होने का पहला मामला हो सकता है। फिलहाल शोधकर्ता इस मामले को अपनी तरह का पहला केस मान रहे हैं।
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हालांकि अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस मरीज और उसके इलाज से जुड़ी रिपोर्ट पर संदेह जताया है। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एचआईवी शोधकर्ता डॉ. स्टीव डीक्स का कहना है कि मरीज के टेस्ट में एचआईवी एंटीबॉडी का न मिलना सबसे दिलचस्प बात है। उन्होंने कहा, 'इस पर काफी बहस और विवाद होगा। हर कोई इस पर संदेह जताएगा। मुझे भी इस पर संदेह है।' डॉ. डीक्स का कहना है कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि एचआईवी संक्रमित ब्राजीली नागरिक वाकई में इस वायरस से मुक्त हो गया है। उनके मुताबिक, जब तक स्वतंत्र प्रयोगशालाओं के परीक्षणों में यह साबित नहीं हो जाता, तब तक इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
एनवाईटी के मुताबिक, एचआईवी विशेषज्ञ ने यह भी कहा, 'अगर मरीज एचआईवी-मुक्त निकलता भी है तो भी यह साफ नहीं है कि ऐसा उसी ट्रीटमेंट (एंटीवायरल ड्रग कॉकटेल) की वजह से हुआ है।' यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि एचआईवी के जो मरीज तुरंत पारंपरिक एंटीरेट्रोवायरल ट्रीटमेंट कराते हैं, उनमें भी वायरस इतना कम हो जाता है कि उसे डिटेक्ट नहीं किया सकता। ऐसा एड्स के हर 20 मरीजों में से उस एक मरीज के साथ होता है, जो वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद अपना इलाज कराना शुरू कर देता है।
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ब्राजील के मामले की बात करें तो इस मरीज के अक्टूबर 2012 में एचआईवी से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। उसके दो महीने बाद उसने एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स लेना शुरू कर दिए थे। फिर साल 2016 में उसे शोध के तहत कॉकटेल थेरेपी के लिए बतौर प्रतिभागी शामिल किया गया। इसमें उसके साथ चार अन्य मरीज थे। थेरेपी के तहत 48 हफ्तों के दौरान मरीजों को तीन एंटीरेट्रोवायरल ड्रग दिए गए। इनमें से दो ड्रग मैराविरोक और निकटीनामाइड एचआईवी को उसके हाइडिंग स्पॉट (शरीर के वे हिस्से या अंग जहां यह वायरस छिपा रहता है) से बाहर निकलने के लिए उकसाते हैं। इस तरह वायरस के सामने आने के बाद अन्य ड्रग्स को उस पर हमला करने का मौका मिल जाता है। इस प्रक्रिया में निकटीनामाइड की भूमिका अहम हो सकती है। मरीज के इलाज से जुड़ी शोधकर्ताओं की टीम के एक सदस्य डॉ. रिकार्डो डियाज ने बताया कि निकटीनामाइड शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने का काम कर सकती है।
बहरहाल, 48 हफ्तों के ट्रायल के खत्म होने के बाद एचआईवी संक्रमित ब्राजीली नागरिक वापस सामान्य एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी लेने लगा। लेकिन मार्च 2019 में उसने ऐसे सभी ड्रग्स लेना बंद कर दिए। शोधकर्ताओं का दावा है कि तब से हर तीन हफ्तों के बाद उसका ब्लड टेस्ट किया जा रहा है, जिसमें एचआईवी संक्रमण के कोई संकेत नहीं मिले हैं। इस पर यूनिवर्सिटी के एचआईवी विशेषज्ञ डॉ. मोनिका गांधी ने कहा है, 'ये परिणाम काफी उत्साहजनक हैं। हालांकि अभी ऐसा प्राथमिक स्तर पर देखने में आया है।'
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डॉ. गांधी ने कहा कि निकटीनामाइट पहले भी कई अध्ययनों में इस्तेमाल की गई है और उनमें ऐसे परिणाम नहीं मिले। उनके मुताबिक, अभी तक किसी भी दवा या ड्रग से वायरस को इतने लंबे वक्त तक कम करने में कामयाबी नहीं मिली है। डॉ. गांधी ने कहा, 'मैं अभी आश्वस्त नहीं हूं कि इसने काम किया है। यह केवल एक मरीज में देखने को मिला है। इसलिए मैं यह दावा अभी नहीं कर सकती कि इस तरह वायरस को खत्म किया जा सकता है।'
उधर, शोध पर संदेह जताने वाले डॉ. डीक्स ने कहा है कि हो सकता है मरीज ने ट्रायल के खत्म होने के बाद भी एंटीरेट्रोवायरल ड्रग्स को लेना जारी रखा हो और इसकी जानकारी अध्ययनकर्ताओं की टीम न दी हो। इस पर शोधकर्ताओं में शामिल डॉ. डियाज का कहना है कि ब्राजील में इन ड्रग्स की खरीद सरकारी सिस्टम के तहत होती है और लेनदेन का बकायदा पंजीकरण होता है। उन्होंने कहा कि ब्राजील में इन दवाओं की कालाबाजारी नहीं होती और ऐसी कोई रजिस्ट्री भी नहीं है जिससे साबित हो कि मरीज ने यह ड्रग पब्लिक हेल्थ सिस्टम के तहत खरीदी।