ब्रिटेन में एचआईवी से ग्रसित एक व्यक्ति के पूरी तरह से ठीक होने का दावा किया गया है। बताया जा रहा है कि एचआईवी से किसी व्यक्ति के पूरी तरह ठीक होने का यह दूसरा मामला है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी चर्चित पत्रिका 'द लांसेट' ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। दरअसल, डॉक्टरों ने एक साल पहले ही यह घोषित किया था कि एचआईवी का यह मरीज ठीक हो गया है। हालांकि पूरी तरह एचआईवी-मुक्त होने के लिए उसे कुल 30 महीने का वक्त लगा। इस दौरान उसे किसी प्रकार की एंटीवायरल दवा की जरूरती नहीं पड़ी। इसके बाद डॉक्टरों ने नई घोषणा के तहत बताया कि अब यह मरीज एचआईवी से पूरी तरह मुक्त है।
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बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद एचआईवी मुक्त हुआ व्यक्ति?
पिछले साल शोधकर्ताओं ने बताया था कि एचआईवी पीड़ित व्यक्ति एडम कैस्टिलजो का एक विशेष ऑपरेशन के तहत बोन मैरो (अस्थि-मज्जा) प्रत्यारोपण किया गया था। उनके मुताबिक, इसके बाद मरीज को लंबे समय तक किसी प्रकार की समस्या महसूस नहीं हुई थी। रिपोर्ट की मानें तो कैस्टिलजो 18 महीनों तक एचआईवी से मुक्त रहा था। लेकिन अब 12 महीने और बीतने के बाद डॉक्टर पूरी तरह से आश्वस्त हो चुके हैं कि मरीज एचआईवी के संक्रमण से ठीक हो गया है।
ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर और शोधकर्ता रवींद्र कुमार गुप्ता का कहना है, ‘एक मरीज का एचआईवी से ठीक होना बहुत अहम है। हम उम्मीद करते हैं कि इससे एचआईवी के दूसरे मामलों में किए जा रहे इलाज के लिए प्रोत्साहन और बढ़ावा मिलेगा।’ ब्रिटेन के रहने वाले एडम कैस्टिलजो को दुनियाभर में अब तक ‘लंदन पेशंट’ के नाम से जाना जाता था। लेकिन बीती नौ मार्च को उन्होंने पहली बार अपनी पहचान बताई। उन्होंने बताया कि उन्हें पहली बार साल 2003 में अपनी बीमारी (एचआईवी) का पता चला था।
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एचआईसी से मुक्त होने वाला पहला व्यक्ति कौन?
एडम कैस्टिलजो से पहले एचआईवी संक्रमण से मुक्त होने वाले व्यक्ति जर्मनी के रहने वाले टिमोथी ब्राउन हैं, जिन्हें ‘बर्लिन पेशंट’ के रूप में जाना जाता था। टिमोथी ब्राउन का इलाज भी 2007 में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया गया था। उनका उपचार एक दशक से ज्यादा वक्त तक चला। रिपोर्ट से पता चलता है कि कैस्टिलजो और ब्राउन दोनों के मामलों में खास बात यह रही कि इन दोनों मरीजों के प्रत्यारोपण के लिए उपयोग की जाने वाली स्टेम कोशिकाएं ऐसे डोनर से मिली, जिनके शरीर में ऐसा म्यूटेशन (डेल्टा 32) था जो एचआईवी संक्रमण को रोक सकता था। बताया गया है कि इन डोनर्स के पास बाकी लोगों की तुलना में एक दुर्लभ आनुवंशिक म्युटेशन था, जो एचआईवी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता रखता है। इसकी वजह से इलाज में बेहतर और सटीक परिणाम देखने को मिले।
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क्या एचआईवी के हर केस में थेरेपी करेगी काम?
हालांकि, जिस थेरेपी के जरिये एडम का ऑपरेशन किया गया, उसे लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि बोन-मैरो ट्रांसप्लांट एक स्टैंडर्ड थेरेपी है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि यह एचआईवी के हर मरीज के लिए कारगर हो। उनका कहना है कि इस तरह के प्रत्यारोपण खतरनाक और जोखिम भरे होते हैं। कैस्टिलजो और ब्राउन दोनों का मामला थोड़ा अलग था, क्योंकि इन लोगों को एचआईवी के बजाय कैंसर के इलाज के लिए बोन-मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत थी और बाद में यह थेरेपी उनके एचआईवी मामले में भी सही साबित निकल गई।
क्या है एचआईवी?
ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी दुनियाभर में पब्लिक हेल्थ से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। इसने साल 1980 से अब तक 32 लाख से ज्यादा लोगों को जान ली है। यह वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी सिस्टम) को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए व्यक्ति किसी भी संक्रमण (इंफेक्शन) से लड़ने में सक्षम नहीं होता। मौजूदा समय में एचआईवी का उपचार एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी से किया जाता है, जो वायरस के विकास को नियंत्रित (कंट्रोल) करता है। हालांकि, यह शरीर से इस वायरस को पूरी तरह से खत्म नहीं करता, जिसके कारण अभी तक एचआईवी का पूरी तरह से इलाज संभव नहीं है।
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