एचआईवी एक ऐसा वायरस है जो शरीर की सफेद रक्त कोशिकाओं (CD4) और प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं को नष्ट करता है, जो इन्फेक्शन से लड़ने का काम करती हैं। धीरे-धीरे ये CD4 कोशिकाएं इस हद तक नष्ट हो जाती हैं कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत ज्यादा कमजोर हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति को इन्फेक्शन और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे एड्स का पता चलता है।
एचआईवी के तीन चरण होते हैं, जिनके बारे में नीचे दिया गया है:
- स्टेज 1 - इस स्टेज में, व्यक्ति को फ्लू के लक्षण अनुभव होते हैं और वायरस से संक्रमित होने के दो से चार हफ़्तों बाद ग्रंथियों में सूजन की समस्या होती है। इस स्टेज में व्यक्ति के खून में वायरस का स्तर अधिक होता है और वह बहुत ज्यादा संक्रामक होता है।
- स्टेज 2 - इस स्टेज में, व्यक्ति को कोई लक्षण अनुभव नहीं होते, हालांकि वायरस अभी भी शरीर में धीरे-धीरे गुणन कर रहा होता है और व्यक्ति भी संक्रामक होता है। ये चरण 10 सालों और उससे भी ज्यादा समय के लिए रह सकता है।
- स्टेज 3 - इस चरण में, प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से खराब हो जाती है और CD4 कोशिकाओं की संख्या 200 से भी कम हो जाती है। इस चरण में व्यक्ति के शरीर में वायरस बहुत ज्यादा होता है और वे बहुत ही ज्यादा संक्रामक हो जाता है। अगर इलाज न किया जाए, तो स्टेज 3 के मरीज केवल 3 सालों तक जीवित रह पाते हैं।
एचआईवी वायरस कई तरीकों से फैल सकता है, जैसे असुरक्षित सेक्स करने से, संक्रमित व्यक्ति के खून, वीर्य, योनि के तरल पदार्थ या शरीर के किसी अन्य तरल पदार्थ के संपर्क में आने से। इसके अलावा ये वायरस संक्रमित सुइयां या इंजेक्शन लगाने से भी फैल सकता है और ये संक्रमण माँ से बच्चे में गर्भावस्था, डिलीवरी या दूध पिलाते समय भी फैल सकता है।
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अध्ययनों से ये पता चलता है कि आर्सेनिकम एल्बम (Arsenicum Album), क्रोटलस हॉरिडस (Crotalus horridus), लैकेसिस (Lachesis), नैट्रम सपरल्यूरिकम (Natrum suplhuricum), फॉस्फोरस (Phosphorus), फाइटोलैक्का डेकेंड्रा (Phytolacca decandra), सिफिलिनम (Syphilinum) और ट्यूबरक्युलाइनम (Tuberculinum) जैसी होम्योपैथिक दवाएं एचआईवी और एड्स को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। होम्योपैथिक उपचार का लक्ष्य शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है, जिससे एचआईवी और एड्स को नियंत्रित करने में बहुत मदद मिलती है। होम्योपैथिक डॉक्टर, रोगी के लक्षणों व अन्य कारक का अच्छे से अवलोकन करके उसे उचित दवा और खुराक देते हैं।
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