हिर्स्चस्प्रुंग रोग - Hirschsprung's Disease in Hindi

Dr. Rajalakshmi VK (AIIMS)MBBS

October 03, 2020

January 20, 2021

हिर्स्चस्प्रुंग रोग
हिर्स्चस्प्रुंग रोग

हिर्स्चस्प्रुंग रोग एक ऐसी स्थिति है, जो बड़ी आंत (कोलन) को प्रभावित करती है जिसकी वजह से मल त्याग करने में परेशानी आती है। यह जन्मजात समस्या है जो कि बच्चे के बृहदान्त्र की मांसपेशियों में तंत्रिका कोशिकाओं के अनुपस्थिति होने की वजह से होती है।

हिर्स्चस्प्रुंग रोग से ग्रसित नवजात शिशु आमतौर पर जन्म के बाद के कुछ दिनों तक मल त्याग नहीं कर सकता है। इसके हल्के मामलों में, बच्चे में लंबे समय तक पता नहीं चलता है। असमान्य तौर पर हिर्स्चस्प्रुंग की बीमारी का निदान निदान पहली वयस्कों में ही किया गया था। उपचार के तौर पर सर्जरी की मदद ली जाती है, इसमें कोलन के रोगग्रस्त हिस्से को निकाल दिया जाता है।

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हिर्स्चस्प्रुंग रोग के संकेत और लक्षण - Hirschsprung's Disease Symptoms in Hindi

हिर्स्चस्प्रुंग रोग के संकेत और लक्षण स्थिति की गंभीरता के आधार पर भिन्न होते हैं। आमतौर पर संकेत और लक्षण जन्म के कुछ समय बाद दिखाई देते हैं, लेकिन कभी-कभी वे स्पष्ट नहीं होते हैं।

इस बीमारी का सबसे स्पष्ट संकेत नवजात शिशु के जन्म के 48 घंटे के भीतर मल त्याग करने में परेशानी है।

नवजात शिशुओं में अन्य संकेत और लक्षणों में शामिल हो सकते हैं :

बड़े बच्चों में, संकेत और लक्षण शामिल हो सकते हैं :

  • पेट फूलना
  • धीरे-धीरे कब्ज बनना
  • गैस
  • विकास में पेरशानी
  • थकान

(और पढ़ें - आंत रुकावट के कारण)

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हिर्स्चस्प्रुंग रोग का कारण क्या हैं? - Hirschsprung's Disease Causes in Hindi

हिर्स्चस्प्रुंग रोग के कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है। यह कभी-कभी परिवार के सदस्यों में होता है और हो सकता है कि कुछ मामलों में यह आनुवंशिक परिवर्तन के साथ जुड़ा हो।

हिर्स्चस्प्रुंग की बीमारी तब होती है जब कोलन में तंत्रिका कोशिकाएं पूरी तरह से नहीं बनती हैं। कोलन में तंत्रिका, मांसपेशियां के संकुचन को नियंत्रित करती हैं जो आंत के माध्यम से भोजन को आगे बढ़ाती हैं। संकुचन न होने की वजह से मल आगे नहीं बढ़ पाता है और बड़ी आंत में रह जाता है।

हिर्स्चस्प्रुंग रोग का निदान और परीक्षण कैसे किया जाता है? - Hirschsprung's Disease Diagnosis in Hindi

हिर्स्चस्प्रुंग के लक्षण दिखने के बाद तुरंत डॉक्टर को इस बारे में बताया जाना चाहिए। वे कुछ विशिष्ट परीक्षणों के माध्यम से हिर्स्चस्प्रुंग की पुष्टि कर सकते हैं :

  • कॉन्ट्रास्ट एनीमा : इसे बेरियम एनीमा टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह एक एक्स-रे टेस्ट है, जो बड़ी आंत (कोलन) में परिवर्तन या असामान्यता का पता लगा सकती है।
  • एब्डोमिनल एक्स-रे : यह एक मानक एक्स-रे है, जिसे एक तकनीशियन कई कोणों (एंगल) से ले सकता है। इसके माध्यम से डॉक्टरों को यह पता लगाने में मदद मिलती है कि आंतों को क्या ब्लॉक कर रहा है।
  • बायोप्सी : डॉक्टर बच्चे के मलाशय से ऊतक का एक छोटा सा नमूना लेकर लैब में उसकी जांच करेंगे। बच्चे की उम्र और आकार के आधार पर, डॉक्टर एनेस्थीसिया का उपयोग कर सकते हैं।

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हिर्स्चस्प्रुंग रोग का उपचार कैसे किया जा सकता है? - Hirschsprung's Disease Treatment in Hindi

हिर्स्चस्प्रुंग की बीमारी एक बहुत ही गंभीर स्थिति है, लेकिन अगर इसकी पहचान जल्दी कर ली जाए तो सर्जरी के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।

डॉक्टर आमतौर पर दो प्रकार की सर्जरी कर सकते हैं :

  • पुल-थ्रू प्रोसीजर इस सर्जरी में बड़ी आंत के जिस हिस्से में तंत्रिका कोशिकाएं नहीं होती हैं, उसे निकाल दिया जाता है। इससे आंत के बाकी हिस्से सीधे गुदा से जुड़े जाते हैं।
  • ओस्टोमी सर्जरी : इस सर्जरी में आंत के पास पेट के बाहर से लेकर अंदर तक जगह बनाते हैं और एक थैली लगाते हैं, ताकि मरीज आंत से निकले हुए अपशिष्ट को उसमें होल्ड कर सके। इस थैली को ऑस्टमी बैग कहते हैं। जब तक बच्चा पुल-थ्रू प्रोसीजर के लिए तैयार नहीं हो जाता, तब तक अस्थाई उपाय के रूप में ऑस्टमी सर्जरी की जाती है।

सर्जरी के बाद कुछ बच्चों में कब्ज, दस्त या असंयममिता (मल त्याग या पेशाब पर नियंत्रण की कमी) की समस्या हो सकती है।

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