हाइपरयूरिसीमिया की स्थिति में शरीर में अत्यधिक यूरिक एसिड बनने लगता है। यह यूरिक एसिड शरीर के तरल पदार्थ को गाढ़ा करता है जिससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में मोनोसोडियम यूरेट मोनोहाइड्रेट क्रिस्टल बनने और जमने लगता है। इससे अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।
जब शरीर से यूरिक एसिड निकलने की बजाय ज्यादा जमने लगे तो हाइपरयूरिसीमिया हो सकता है। कहने का मतलब है कि यूरिक जिस तेजी से निकल रहा है, उससे ज्यादा तेजी से शरीर में जम रहा है। ऐसी स्थिति में हाइपरयूरिसीमिया बीमारी हो सकती है। यूरिक एसिड क्रिस्टल ज्यादा बनने के कारण गठिया या यूरिनरी कैल्कुली हो सकता है। आर्थराइटिस का ही एक प्रकार गठिया है जिसमें अचानक से जोड़ों में दर्द, लालपन और अकड़न रहती है।
जोड़ों, टेंडन और आसपास के ऊतकों में यूरेट क्रिस्टल्स जमने के कारण ऐसा होता है। यूरिनरी कैल्कुली में मूत्र प्रणाली के अंदर स्टोन जमने लगते हैं जो कि पेशाब के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करते हैं। इसके कारण पेशाब के दौरान दर्द महसूस होता है।
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आयुर्वेद में गठिया और पथरी (किडनी स्टोन) को नियंत्रित करने के लिए स्नेहन (तेल से शरीर को चिकना करने की विधि), उपनाह (सिकाई), विरेचन (दस्त की विधि), बस्ती (एनिमा), अवगाह (सिट्ज बाथ) और शस्त्र कर्म (सर्जरी) जैसी विभिन्न चिकित्साओं का उल्लेख किया गया है।
बढ़े हुए वात को खत्म करने और गठिया एवं पथरी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में गोक्षुरा, भूमि आमलकी, पाशनभेद और पुनर्नवा शामिल हैं। हाइपरयूरिसीमिया के इलाज में चंद्रप्रभा वटी, गोक्षुरादि गुग्गुल और सिंहनाद गुग्गुल जैसी आयुर्वेदिक औषधियां असरकारी होती हैं।