जिंदगी का दस्तूर भी क्या है। मेरा कसूर भी क्या है। मैंने तो आंखें ही टिमटिमाई थीं अभी अपनों को पहचानने के लिए। मगर जन्म के साथ मुझे तोहफे में मिला ये दर्द आखिर क्या है? ये पंक्तियां उस बच्चे के दर्द को बयां करती हैं जो अभी महज 30 दिन का हुआ था और उसे एक दुर्लभ बीमारी के बाद सर्जरी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
दरअसल, बच्चे को पैदा (2.5 किलो वजन) हुए अभी एक महीना ही बीता था कि उसकी जान पर बन आई। मासूम बच्चे को एक दुलर्भ हृदय रोग हो गया, जिसे चिकित्सा के क्षेत्र में अनामलस लेफ्ट कोरोनरी आर्टरी फ्रॉम द पल्मोनरी आर्टरी (एएलसीएपीए) कहा जाता है।
क्या है ये बीमारी
ये एक जन्मजात हृदय विकार है जिसमें हृदय की मांसपेशियों तक खून ले जाने वाली बाईं कोरोनरी धमनी एओर्टा की जगह पल्मोनरी आर्टरी से निकलना शुरू कर देती है।
इसे ब्लैंड व्हाइट गारलैंड सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है। इसमें हृदय की मांसपेशियों को खून पहुंचाने वाली रक्त वाहिका सामान्य स्थिति में नहीं रहती है। यह बीमारी 3 लाख बच्चों में से किसी एक को अपना शिकार बनाती है।
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गंभीर स्थिति में था मासूम
फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टरों के सामने आने से पहले इस बीमारी के बारे में कोई नहीं जानता था। डॉक्टरों ने बताया कि जब मासूम को अस्पताल लाया गया था, तब इस दुर्लभ बीमारी की वजह से बच्चा काफी गंभीर स्थिति में था।
बच्चे का ऑपरेशन करने वाली टीम में फोर्टिस अस्पताल के डायरेक्टर एंड हेड और थोरेसिक सर्जरी के स्पेशलिस्ट दिनेश कुमार मित्तल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ गौरव गर्ग शामिल थे।
कैसे हुआ बच्चे का इलाज?
अस्पताल पहुंचने के बाद कुछ टेस्ट और बच्चे की स्थिति की बारीकी से जांच करने के बाद डॉक्टरों ने पाया कि बच्चा एक गंभीर बीमारी से पीड़ित है। सर्जरी की सफलता को सुनुश्चित करने के लिए डॉक्टरों ने बच्चे को मॉनिटर करने के लिए एनआईसीयू में रखा। बीमार या अस्वस्थ नवजात शिशु को मॉनिटर करने के लिए एनआईसीयू में रखा जाता है।
सर्जरी सफल होने के बाद बच्चे के हृदय ने ठीक तरह से काम करना शुरू कर दिया और ऑपरेशन के एक दिन के बाद ही इस बहादुर बच्चे को वेंटिलेटर से भी हटा लिया गया। मासूम को कुछ दिनों तक देखभाल के लिए अस्पताल में ही रखा गया और पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
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आसान नहीं थी सर्जरी
सर्जरी सफल होने के बाद डॉक्टर दिनेश कुमार ने बताया कि नवजात शिशु की सर्जरी करना काफी मुश्किल होता है क्योंकि उसके अंग बहुत छोटे होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे लिए ऑपरेशन के बाद सबसे बड़ी चुनौती बच्चे के हृदय की कार्यक्षमता (ईएफ 20-25 प्रतिशत ) को बढ़ाना था।
बच्चे ने सर्जरी के बाद बहुत जल्दी रिकवर किया जिसकी वजह से उसे ऑपरेशन के अगले दिन ही वेंटिलेटर से हटा लिया गया और सर्जरी के 8 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
डॉक्टर ने बताया कि डिस्चार्ज होने से पहले, बच्चे की दिल की धड़कन में भी सुधार आया और उसका हृदय पहले से बेहतर तरीके से काम करने लगा। पहले की तुलना में बच्चे के हृदय का इंजेक्शन फ्रैक्शन (ईएफ) 40 प्रतिशत हो गया, जो पहले 20 से 25 प्रतिशत ही था।
इंजेक्शन फ्रैक्शन से पता चलता है कि प्रत्येक दिल की धड़कन पर वेंट्रिकल कितनी अच्छी तरह से खून को पम्प करती है।
सामान्य रूप से कैसे होती है हृदय को खून की सप्लाई?
डॉक्टर ने बताया कि सामान्य तौर पर हृदय की बाईं कोरोनरी धमनी एओर्टा से निकलती है। यह हृदय के बाईं ओर की मांसपेशियों के साथ-साथ माइट्रल वाल्व (बाईं ओर हृदय के ऊपरी और निचले कक्षों के बीच की हृदय वाल्व) को ऑक्सीजन युक्त खून पहुंचाती है।
एओर्टा एक प्रमुख रक्त वाहिका है, जो हृदय से पूरे शरीर में ऑक्सीजन युक्त खून पहुंचाने का काम करती है। वहीं, अनामलस लेफ्ट कोरोनरी आर्टरी फ्रॉम द पल्मोनरी आर्टरी (एएलसीएपीए) की स्थिति में बाईं कोरोनरी धमनी पल्मोनरी धमनी से निकलने लगती है। जन्मजात हृदय विकारों के कुल मामलों में से केवल 0.2 से 0.4 प्रतिशत बच्चे एएलसीएपीए से ग्रस्त होते हैं। अतः यह एक दुर्लभ बीमारी है।
क्यों आती है यह समस्या?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर फातमा के अनुसार जब शिशु गर्भ में होता है तो उसके दिल के अंदर खून दाईं धमनी से प्रवेश करता है। इसके अलावा जन्म के बाद हृदय की कई ऐसी संरचनाएं भी चलती रहती हैं जिन्हें बंद हो जाना चाहिए। अगर इनमें से कोई भी संरचना खुली रह जाती है तो यह समस्या आ सकती है। उदारहण के तौर पर इसकी वजह से दिल में छेद होना।
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बीमारी का कारण और इलाज?
डॉक्टर बताती हैं कि जन्म के बाद बच्चे में इस तरह की समस्या आने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे -
- गर्भावस्था के दौरान बच्चे को ठीक तरह से पोषण नहीं मिलना
- अनुवांशिक यानी बच्चे को माता-पिता से भी यह समस्या हो सकती है
गर्भवती महिला को किसी प्रकार की कोई बीमारी होने के कारण भी बच्चे को इस समस्या का खतरा रहता है। इस बीमारी की पहचान करने के बाद सर्जरी ही एकमात्र इलाज होता है। अगर सर्जरी के बाद बच्चे का हृदय ठीक तरह से खून पंप कर पा रहा है तो केवल इस स्थिति में ही उसके जीवित रहने की संभावना होती है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बच्चों में यह बीमारी बहुत दुलर्भ है। इसके बचाव के तौर पर गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को पोषक तत्वों से युक्त आहार लेना चाहिए।