ग्लाइकोजन स्टोरेज डिजीज टाइप 7 को जीएसडी7 नाम से भी जाना जाता है। यह भी बाकी जीएसडी की तरह एक आनुवंशिक डिसऑर्डर है। इस विकार में शरीर मांसपेशियों की कोशिकाओं में मौजूद ग्लाइकोजन नामक शुगर को सही से तोड़ नहीं पाता है, जिस कारण मांसपेशियों की कोशिकाओं के कार्य में बाधा आ सकती है।
जीएसडी7 चार प्रकार का होता है और इन सभी में लक्षण व संकेत अलग-अलग होते हैं। यहां तक कि लक्षण दिखने की शुरुआत भी अलग-अलग उम्र पर होती है।
जीएसडी7 का क्लासिकल रूप सबसे आम है। आमतौर पर इसके लक्षण बचपन में दिखाई देने लगते हैं। इसमें अक्सर मध्यम स्तर के व्यायाम के बाद मांसपेशियों में दर्द व ऐंठन की शिकायत होती है, जबकि उच्च तीव्रता के साथ व्यायाम करने से मतली और उल्टी हो सकती है। इसके अलावा व्यायाम के दौरान मांसपेशियों के ऊतक असामान्य रूप से टूट सकते हैं और मायोग्लोबिन नामक प्रोटीन जारी होता है। यह प्रोटीन किडनी द्वारा फिल्टर होता है और फिर पेशाब के माध्यम से बाहर निकल (myoglobinuria) जाता है। इस स्थिति का यदि इलाज नहीं किया गया, तो इससे किडनी को नुकसान हो सकता है और किडनी फेलियर का जोखिम भी बन सकता है।
चूंकि किडनी को नुकसान हो चुका होता है ऐसे में वह यूरिक एसिड को प्रभावी ढंग से निकालने में असमर्थ हो जाता है और जीएसडी7 के क्लासिकल रूप से ग्रस्त कुछ लोगों के खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लगती है। प्रभावित व्यक्तियों के खून में बिलीरुबिन नामक अणु का स्तर बढ़ सकता है, जिससे त्वचा का पीलापन और आंखों का सफेद होना (पीलिया) जैसी शिकायतें हो सकती हैं। इसके अलावा जीएसडी7 के क्लासिकल रूप में अक्सर लोगों के खून में क्रिएटिन किनेज नामक एंजाइम का स्तर बढ़ जाता है। यह मांसपेशियों की बीमारी का एक सामान्य संकेत है।
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जीएसडी7 के गंभीर मामलों में शिशुओं में जन्म के समय से मांसपेशियों से जुड़ी दिक्कतें (हाइपोटोनिया) होती हैं, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी (मायोपैथी) हो जाती है और यह स्थिति समय के साथ बिगड़ जाती है। प्रभावित शिशुओं में हृदय का कमजोर और बढ़ा हुआ (cardiomyopathy) होने जैसी समस्या भी होती है। इसके अलावा सामाान्य रूप से सांस लेने में कठिनाई भी होती है। जीएसडी के इस रूप से ग्रस्त लोग आमतौर पर जन्म के बाद एक साल के अंदर जिंदा नहीं बचते हैं।
जीएसडी का एक ऐसा भी रूप है जो कि देर से शुरू होता है, आमतौर पर इसकी एकमात्र पहचान मायोपैथी है। वयस्कता में मांसपेशियों की कमजोरी देखी जा सकती है। कमजोरी आमतौर पर शरीर के उस हिस्से को प्रभावित करती है जो शरीर के केंद्र के पास होती है।
जीएसडी के हेमोलिटिक रूप की पहचान ‘हेमोलिटिक एनीमिया‘ है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की कमी (एनीमिया) की वजह से यह समय से पहले टूट जाती हैं, लेकिन इसमें हेमोलिटिक रूप से ग्रस्त लोग मांसपेशियों में दर्द या कमजोरी जैसे लक्षणों का अनुभव नहीं करते हैं।
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