डेंगू, चिकनगुनिया या फिर जीका वायरस। मच्छर से फैलने वाली इन घातक बीमारियों ने अब तक ना जाने कितने लोगों की जान ली है। विश्वभर में कई देश, डेंगू और जीका के प्रकोप की वजह से बदनाम हैं। हालांकि, इन बीमारियों का इलाज संभव है, मगर तेजी से फैलने वाले संक्रमण की रोकथाम के लिए अब तक कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल पाया है। अध्ययकर्ताओं द्वारा हाल ही में की गई एक रिसर्च में मच्छर के जरिए फैलने वाली इन बीमारियों से निजात पाने का एक स्थाई इलाज तलाश लिया है।
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कई देशों को होगा फायदा
मलेशिया में किए गए अध्ययन के जरिए वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने मच्छरों से फैलने वाले वायरस को रोकने के लिए एक प्रभावी और पर्यावरणीय (एनवायरमेंट) रूप से स्थाई (प्रमानेंट) तरीका निकाला है। जिससे समुद्र तट पर बसे उन गर्म जलवायु वाले देशों में इस वायरस को रोकने में मदद मिलेगी, जहां डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और पीला बुखार (येलो फीवर) का सबसे ज्यादा प्रकोप है।
क्या कहती है रिसर्च?
मेलबर्न व ग्लासगो के विश्विविद्यालयों और द इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल रिसर्च मलेशिया के शोधकर्ताओं ने कुआलालंपुर में यह अध्ययन किया। इस दौरान वोल्बैचिया बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया गया, जो मच्छरों के वायरस को इंसानो में फैलने से रोकता है। जिसके बाद डेंगू के मामलों में मिली कमी के जरिए शोधकर्ताओं ने वायरस को रोक पाने में कामयाबी पाई। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित किए गए रिसर्च के डाटा से पता चलता है कि वोल्बैचिया बैक्टीरिया के wAlbB प्रकार को जब जंगल में छोड़ा गया, तो इससे डेंगू के मामलों में 40 प्रतिशत तक की कमी आई।
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पहले भी किया गया था अध्ययन
इससे पहले यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के प्रोफेसर अरे हॉफमैन समेत कई वैज्ञानिकों ने मच्छरों पर असरदार वोल्बैचिया बैक्टीरिया का अलग-अलग इस्तेमाल किया, जो सफल रहा। हालांकि, जब जंगल में बड़ी संख्या में मौजूद मच्छरों पर इसको छोड़ा गया तो इस स्थिति में मलेशिया जैसे भूमध्यरेखीय देशों में यह बैक्टीरिया ज्यादा असरदार साबित नहीं हुआ था।
अब, मेलबर्न, ग्लासगो और मलेशिया के शोधकर्ताओं की इस अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम ने पाया कि वोल्बैचिया नामक बैक्टीरिया (wAlbB) 36 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक तापमान में भी स्थिर और अधिक प्रभावी है। मलेशिया में जहां डेंगू का अत्याधिक प्रकोप रहता है वहां भी गंभीर बीमारियों से बचाव होगा। मेलबर्न यूनिवर्सिटी के बायो21 इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर हॉफमैन का कहना है कि जिन देशों में डेंगू का प्रकोप रहता है, वहां इससे जबरदस्त फायदा होगा।
गंभीर हैं डेंगू वायरस के आंकड़े
आंकड़े बताते हैं कि हर साल डेंगू के 9 करोड़ मामले सामने आते हैं और इनमें से एक फीसदी मामले बेहद गंभीर होते हैं। इनमें जानलेवा रक्तस्राव या शॉक सिंड्रोम भी शामिल हैं। अकेले मलेशिया में ही साल 2016 में डेंगू से जुड़े 1 लाख मामले सामने आए, जिस पर 175 मिलियन डॉलर (1255 करोड़ रुपये) का अनुमानित खर्च आया।
शोधकर्ताओं ने कैसे की रिसर्च?
अध्यनकर्ताओं ने ग्रेटर कुआलालंपुर के अत्याधिक डेंगू ग्रस्त 6 इलाकों के जंगलों में अलग-अलग जगह पर एडीज एजिप्टी नाम के मच्छरों को छोड़ा। इन मच्छरों में वोल्बैचिया नाम के बैक्टीरिया का एक प्रकार (wAlbB) था, जो मच्छरों में पहले से मौजूद वायरस को नष्ट करता है। इन मच्छरों ने जंगल में जाकर अन्य मच्छरों के साथ प्रजनन किया और धीरे-धीरे यह बैक्टीरिया जंगल के सभी मच्छरों में फैल गया। एक साल बाद शोधकर्ताओं ने जंगल की कुछ जगहों पर मौजूद 90 प्रतिशत मच्छरों में वोल्बैचिया बैक्टीरिया पाया।
इन जगहों पर डेंगू के मामलों में सफलतापूर्वक कमी लाने की वजह से यहां कीटनाशक फॉगिंग लगभग समाप्त हो चुकी है, जिससे पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ दोनों होते हैं।
विशेषज्ञों की क्या है राय?
यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के प्रोफेसर अरे हॉफमैन के मुताबिक इस रिसर्च से साबित होता है कि जहां डेंगू का प्रकोप ज्यादा है, वहां इस तरह के बैक्टीरिया मच्छर से फैलने वाले वायरस को रोकने में मदद मिलती है। तमाम चुनौतियों के बावजूद ये अध्ययन सफल हुआ, जो वोल्बैचिया से बनाए गए बैक्टीरिया से संभव हो पाया है।
एमआरसी-यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो सेंटर फॉर वायरस रिसर्च के प्रोफेसर स्टीवन सिंकिन्स ने कहा कि ये सफलता उन देशों के लिए खुशखबरी है जो मच्छर से फैलने वाली बीमारियों को झेलते आ रहे हैं। इस रिसर्च से पता चला है कि कैसे एक बैक्टीरिया डेंगू वायरस को फैलने से रोका है।