कोविड-19 संकट ने दुनियाभर की सरकारों के आगे दो बड़ी चुनौतियां एकसाथ सामने रखी हैं। एक है लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने या उसके बाद मरने से बचाना और दूसरा, ऐसा करते हुए देश को अर्थव्यवस्था को बनाए रखना। बीते कई महीनों से बरकरार इस स्वास्थ्य संकट ने दुनियाभर के ताकतवर से ताकतवर और विकसित देशों को अर्थव्यवस्था में ब्रेक लगाने पर मजबूर किया है। लेकिन ऐसा करते हुए इन देशों के राजनीतिक नेतृत्व की हिचकिचाहट साफ देखी गई है। अमेरिका इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले प्रशासन पर आरोप है कि उसने जान के नुकसान को माल के नुकसान से कम प्राथमिकता दी है। कोरोना वायरस का प्रभाव जरा सा कम होने पर वहां अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने की कवायद तेज कर दी गई, जिसका भुगतान आम लोगों के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मियों को झेलना पड़ रहा है। दक्षिण अमेरिका, एशिया और यूरोप के कई देशों में भी इस तरह का रवैया देखा गया है, जहां आर्थिक नुकसान की चिंता में जीवन के नुकसान को लेकर राजनीतिक नेतृत्व तुलनात्मक रूप से कम संवेदनशील रहा है। अब इस विषय पर एक दिलचस्प अध्ययन सामने आया है।
(और पढ़ें - कोविड-19: मॉनसून और सर्दी में बढ़ सकता है कोरोना वायरस का ट्रांसमिशन- आईआईटी-एम्स स्टडी)
वैज्ञानिक शोधपत्र ऑनलाइन मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म 'मेडआरकाइव' में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक, कोविड-19 संकट को मानवीय नजरिये से देखने के मामले में वे देश ज्यादा आगे रहे हैं, जिनका नेतृत्व प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं के हाथ में है। अध्ययनकर्ताओं ने 35 देशों के डेटा विश्लेषण के आधार पर यह बात कही है। इनमें से दस देशों का राजनीतिक नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है। वहीं, अन्य दस देश सामाजिक प्रगतिवादी मापदंडों के लिहाज से बेहतर हैं। शोधकर्ताओं की मानें तो आर्थिक विकास के आगे मानव रक्षा को ज्यादा प्राथमिकता देने में ये देश ज्यादा आगे रहे हैं और कोविड-19 संकट से निपटने के तरीकों के चलते वहां सामने आए परिणाम बताते हैं कि ये देश इस मामले में पुरुष नेतृत्व वाले देशों से बेहतर साबित हुए हैं।
महिला नेतृत्व वाले देशों में कम मौतें
अध्ययन की मानें तो महिला नेतृत्व देशों में कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौतों की संख्या उन देशों के मुकाबले छह गुना कम है, जिनका राष्ट्रीय नेतृत्व पुरुषों के हाथ में है। दोनों नेतृत्व वाले देशों में कोरोना वायरस से हुई मौतों का औसत 2,000 (महिला नेतृत्व) और 13,000 (पुरुष नेतृत्व) है। वहीं, प्रति व्यक्ति के आधार पर आंकड़ों का सामान्यीकरण किया गया तो पता चला कि महिला राष्ट्राध्यक्षों वाले देशों में कोविड-19 से हुई मौतों की दर अन्य देशों से 1.6 गुना कम थी। रोजाना होने वाली मौतों के मामले में तो यह अंतर सात गुना तक था। शोधकर्ताओं ने पाया कि महिला नेतृत्व वाले देशों में औसतन 91 मौतें हर रोज हुईं, जबकि पुरुष नेतृत्व वाले देशों में यह आंकड़ा 643 रहा। इसके अलावा, यह भी पाया गया कि जहां पुरुष नेतृत्व वाले देशों में 79 दिनों तक लोग कोविड-19 से मरते रहे, वहीं महिला नेतृत्व वाले मुल्कों में 50 दिनों तक लोग कोरोना वायरस के चलते मारे गए। वायरस की ग्रोथ रेट के मामले में भी महिला नेतृत्व वाले देश पुरुष राष्ट्राध्यक्षों वाले देशों के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली साबित हुए।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि कोविड-19 महामारी के खिलाफ प्रभावी के साथ-साथ तेज फैसले लेने के मामले में महिला नेतृत्व आगे रहा। आंकड़े इसके गवाह हैं, जो बताते हैं कि पुरुष नेतृत्व वाले देशों में कोरोना वायरस के चलते जब पहले दिन राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया गया तो उस समय वहां कोविड-19 से हुई मौतों का औसत महिला नेतृत्व वाले देशों के मुकाबले 1.6 गुना ज्यादा था। प्रति व्यक्ति के पैमाने के लिहाज से देखें तो पुरुष नेतृत्व वाले देशों में मृत्यु दर 21 प्रतिशत थी, जबकि महिला राष्ट्राध्यक्षों वाले मुल्कों में यह 4.8 प्रतिशत रही।
कई विशेषज्ञ बताते हैं कि कोविड-19 से हुई मौतों और आर्थिक पिछड़ेपन का आपस में संबंध है। यूरोप और अमेरिका में ऐसे कई शोध हुए हैं, जो बताते हैं कि कैसे वहां हुई मौतों के पीछे आर्थिक पिछड़ापन एक बड़ी वजह के रूप में सामने आया है और ऐसा कुछ विशेष वर्गों (अफ्रीकी-एशियाई मूल के लोग तथा अल्पसंख्यक) के साथ अधिक है। अध्ययन के मुताबिक, इसे ध्यान में रखते हुए महिला नीति निर्धारकों वाले देशों ने सामाजिक रूप से ज्यादा संवेदनशील कदम उठाए। इस मामले में ऐसे देशों का सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स (एसपीआई) जहां 88 रहा, वहीं पुरुष राष्ट्राध्यक्ष वाले देशों का एसपीआई 82 दर्ज किया गया। इसके अलावा, मूल मानव आवश्यकताओं के इन्डेक्स (क्रमशः) 95 (महिला) बनाम 91 (पुरुष), कल्याणकारी स्थापनाओं (88 बनाम 83) और अवसर सूचकांक (80 बनाम 71) के मामले में महिला नेतृत्व आगे रहा।
(और पढ़ें - ट्रेंड इम्यूनिटी' या प्रशिक्षित प्रतिरक्षा क्या है और कोविड-19 के दौर में इसे जानना क्यों जरूरी है?)
इसके अलावा, अर्थशास्त्र से जुड़े चर्चित गुणांक गिनी कॉफिशिएंट से गणना पर यह भी पाया गया कि कोविड-19 के दौर में आय का वितरण पुरुष नेतृत्व वाले देशों में ज्यादा असमान रहा। गिनी इंडेक्स के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के दौरान महिला और पुरुष नेतृत्व वाले देशों में आय के वितरण की असमानता का सूचकांक 29 बनाम 36 रहा। कुल मिलाकर शोधकर्ताओं ने बताया कि अमेरिका, ब्राजील, यूनाइटेड किंगडम और सिंगापुर जैसे पुरुष नेतृत्व वाले देशों ने न सिर्फ पहले कोरोना संकट की मौजूदगी और उसकी गंभीरता को नहीं माना, बल्कि समय पर सही निर्णय लेने में भी देरी की। इससे इन देशों में बीमारी और इससे मौतों की संख्या ज्यादा रही। वहीं, ताइवान, न्यूजीलैंड और आइसलैंड की महिला राष्ट्रध्यक्षों ने संकट को पहचाना, विशेषज्ञों की राय मानी और समय रहते प्रभावी फैसले लिए। इसी के चलते वे पाबंदियां कम करने और संपूर्ण लॉकडाउन से बचने में कामयाब रहीं।