भारत में कोविड-19 को सरकार की तरफ से अभी तक औपचारिक रूप से महामारी घोषित नहीं किया गया है और न ही यह स्वीकार किया गया है कि नया कोरोना वायरस यहां कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्टेज पर पहुंच चुका है। लेकिन कई जानकारों ने अलग-अलग मौकों पर साफ कह दिया है कि देश में कोरोना वायरस के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उसे देखकर यह साफ दिखाई देता है कि सरकार के स्तर पर कोविड-19 के आंकड़ों को कम करके आंका गया है। इस समय आलम यह है कि देश में प्रतिदिन 90 हजार से ज्यादा संक्रमितों का पता चल रहा है। कोविड-19 के इतिहास में कभी भी किसी भी देश में इतनी बड़ी संख्या में लोग हर रोज कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं पाए गए हैं। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि प्रतिदिन दर्ज होने वाले आंकड़ों में कोरोना वायरस के मरीजों की वास्तविक संख्या दो से ढाई लाख हो सकती है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, रैपिड एंटीजन टेस्ट पर ज्यादा निर्भरता दिखाने की वजह से देश में कोविड-19 के मरीजों की असल संख्या का संभवतः सही मूल्यांकन नहीं हो सका है। इसका कारण यह है कि रैपिड एंटीजन टेस्ट के चलते बड़ी संख्या में पॉजिटिव लोगों की पहचान नहीं हो सकी, क्योंकि उनके टेस्टिंग के परिणाम नेगेटिव निकले।

(और पढ़ें - संसद सत्र के पहले दिन कई सांसदों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि, कई संसदीय कर्मचारी भी कोविड-19 की चपेट में: रिपोर्ट्स)

रिपोर्ट के मुताबिक, पीसीआर टेस्ट करने पर जब कोरोना वायरस संक्रमण का पता लगाया जाता है तो संक्रमितों की संख्या रैपिड टेस्ट के मुकाबले दो से तीन गुना तक ज्यादा निकलती है। यहां यह बता दें कि वायरस को डिटेक्ट करने के मामले में पीसीआर टेस्ट को सबसे ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है। मिसाल के तौर पर दिल्ली और महाराष्ट्र के आंकड़ों से यह साफ होता है। रिपोर्ट की मानें तो इन दोनों राज्यों (दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है) में पीसीआर टेस्टिंग को सबसे अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया गया है। यही कारण है कि जनसंख्या और टेस्टिंग की संख्या के लिहाज से यहां के कोविड आंकड़े अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा दिखाई देते हैं। दिल्ली में पीसीआर टेस्टिंग करने पर पॉजिटिविटी रेट जहां 14 प्रतिशत पाया गया है, वहीं रैपिड एंटीजन टेस्ट के मामले में यह दर केवल पांच प्रतिशत है। महाराष्ट्र में ये दोनों रेट क्रमशः 24 प्रतिशत (पीसीआर) और 10 प्रतिशत (एंटीजन टेस्ट) हैं।

(और पढ़ें - 2021 की पहली तिमाही में तैयार हो सकती है कोविड-19 की वैक्सीन, सुरक्षा को लेकर लोगों में डर तो मैं खुद सबसे पहले टीका लगवाऊंगा: हर्षवर्धन)

कोरोना वायरस के मरीजों के आंकड़ों के गलत आंकलन की एक बड़ी वजह यह है कि एंटीजन टेस्ट का काम ज्यादा आसान है और यह विस्तृत नहीं है। यही बात वायरस को डिटेक्ट करने की क्षमता के लिहाज से इस टेस्ट को अविश्वसनीय बनाती है। वहीं, पीसीआर टेस्ट करने में ज्यादा उच्च स्तर के कौशल और प्रशिक्षण की जरूरत होती है। इसीलिए इस टेस्ट में विषाणु की पहचान को सटीक माना जाता है। गौरतलब है कि एंटीजन टेस्ट में परिणाम नेगेटिव आने पर पीसीआर कराने की ही मांग की जाती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, जिससे यह पता चल सके कि एंटीजन टेस्ट में नेगेटिव आए कितने लोगों ने वाकई में पीसीआर टेस्ट भी कराए। ऐसे में कोरोना वायरस के प्रतिदिन सामने आ रहे मामलों की असल संख्या मौजूदा ट्रेंड से ज्यादा होने का दावा अप्रत्याशित नहीं है।

(और पढ़ें - कोविड-19: भारत में कोरोना वायरस से 79,722 मौतें, अगले 24 घंटों में 80 हजार के पार जाने की बड़ी आशंका, मरीजों की संख्या 48.46 लाख हुई)

यानी भारत में अगर रैपिड एंटीजन टेस्ट का पॉजिटिविटी रेट सात प्रतिशत है, तो पीसीआर टेस्ट में सैंपलों के पॉजिटिव पाए जाने की दर दोगुनी से तीन गुनी तक होनी चाहिए। इसका मतलब है कि देश में कोविड-19 का पॉजिटिविटी रेट असल में 15 से 20 प्रतिशत तक हो सकता है। इससे साफ होता है कि इसकी काफी ज्यादा संभावना है कि देश में प्रतिदिन सामने आ रहे कोरोना वायरस के मामलों की वास्तविक संख्या दो लाख से ढाई लाख के बीच हो सकती है। एनडीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह बताता है कि एक देश के रूप में हमें जमीनी हकीकत को स्वीकार करने की जरूरत है, जो (सरकार की) औपचारिक स्वीकृति से काफी ज्यादा संकटपूर्ण है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: भारत में प्रतिदिन दर्ज होने वाले कोरोना वायरस मामलों की वास्तविक संख्या दो से ढाई लाख हो सकती है, जानें ऐसा क्यों कहा जा रहा है है

ऐप पर पढ़ें