चीन के वुहान शहर से शुरू हुई कोविड-19 महामारी को अस्तित्व में आए करीब 7 महीने का वक्त हो चुका है और दुनियाभर में करीब 1 करोड़ 26 लाख से ज्यादा लोग (11 जुलाई 2020 के आंकड़े) इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं और साढ़े 5 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसके अलावा दुनियाभर के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी कई तरह से इस बीमारी का प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 

नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली यह बीमारी कोविड-19 कैसे फैल रही है इसका पता लगाने का सबसे अहम पहलू ये है कि अलग-अलग समुदायों में बीमारी के फैलने के पैटर्न पर नजर रखी जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की मानें यह जानने के लिए कि यह बीमारी सच में कितनी संक्रामक है, बीमारी के फैलने के 4 चरणों का पता लगाया गया है। 

सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग और दवाइयों के विशेषज्ञ, ट्रांसमिशन या बीमारी के फैलने की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि यह किसी रोगाणु जैसे- बैक्टीरिया या वायरस के एक संक्रमित वाहक (कैरियर) से दूसरे में फैलने की क्षमता है। ट्रांसमिशन अलग-अलग तरह से होता है:

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  • वेक्टर ट्रांसमिशन : वेक्टर, सूक्ष्मजीव हैं जिनका रोगाणु सुरक्षित तरीके से यातायात करने में इस्तेमाल करते हैं। ये वेक्टर्स हैं उदाहरण के लिए- मच्छर और मक्खी- जो खुद बीमार नहीं होते लेकिन रोगाणु को अपने डंक द्वारा या दूसरे तरीकों के जरिए इंसान या दूसरे जानवरों में ट्रांसफर कर सकते हैं। (और पढ़ें : मच्छर का काटना)
  • सांस संबंधी बूंदें (रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट) : हवा से फैलने वाले (एयरबॉर्न) संक्रमण मुख्य रूप से ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन (छोटी-छोटी दूषित बूंदें) के जरिए फैलता है। जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता या बात करता है तो उसके मुंह या नाक से रिलीज हुई दूषित बूंदों को जब कोई स्वस्थ व्यक्ति सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है तो वह स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार हो जाता है। ट्रांसमिशन को एयरबॉर्न तब भी कहते हैं जब सूखे या गीले अणु लंबे समय तक हवा में मौजूद रहते हैं और इस दूषित हवा को कोई व्यक्ति सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है।
  • शारीरिक संपर्क : कई इंफेक्शन ऐसे भी होते हैं जो सीधे शारीरिक संपर्क में आने से फैलते हैं। कंजंक्टिवाइटिस (आंख आना) और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियां मात्र हल्के से छूने से भी फैल सकती हैं, वहीं गोनोरिया आमतौर पर यौन संपर्क में आने से फैलता है। इसके अलावा एक और संक्रमण है- एपस्टीन-बार वायरस इंफेक्शन जिसे इन्फेक्शियस मोनोन्यूक्लियोसिस या किसिंग डिजीज भी कहते हैं, वह लार के जरिए फैलता है।
  • मां से बच्चे में ट्रांसमिशन : एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सिफलिस और गोनोरोनिया- ये कुछ ऐसे संक्रमण हैं जो गर्भवती महिला से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को ट्रांसफर हो सकता है। हालांकि अगर इंफेक्शन के बारे में शुरुआत में ही पता चल जाए तो डॉक्टर सही दवाइयों के जरिए मां से बच्चे में इंफेक्शन को फैलने से रोक सकते हैं।
  • सतह से होने वाला संचार : किसी दूषित सतह को छूने के बाद उसी हाथ से अपनी आंखें, नाक या मुंह छूने से भी व्यक्ति को संक्रमण हो सकता है। आमतौर पर बहुत ज्यादा छूई जाने वाली सतहे हैं- लिफ्ट का बटन, दरवाजे का हैंडल-कुंडी इन सभी को फोमाइट्स कहते हैं और जब बात सतह से इंफेक्शन के फैलने की आती है तो ये फोमाइट्स ही सबसे बड़े दोषी माने जाते हैं।
  • मल से होने वाला संचार : स्थानीय समुदाय के बीच अगर स्वच्छता और साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए तो वहां भी संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बना रहता है। गंदे हाथों से भोजन करना, दूषित जगहों को छूकर हाथ न धोना, दूषित पानी पीना आदि भी इंफेक्शन फैलने का सोर्स हो सकता है।
  • दूषित खाना और पानी से संचार : टाइफाइड, कॉलेरा और फूड पाइजनिंग ये कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो इन बीमारियों को फैलाने वाले रोगाणु से युक्त दूषित खाना खाने या पानी पीने की वजह से होती हैं।

कोविड-19 के मामले में बीमारी के ट्रांसमिशन के 4 प्रमुख स्टेज हैं:

  • स्टेज 1 : आयातित मामले- जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे देश में यात्रा करता है जहां इंफेक्शन फैला हुआ है या फिर जहां इंफेक्शन का इतिहास है और वहां से इंफेक्शन अपने साथ लेकर दूसरे भौगोलिक क्षेत्र या देश में आता है।
  • स्टेज 2 : लोकल ट्रांसमिशन या स्थानीय संचार- ये तब होता है जब कोई संक्रमित व्यक्ति अपने नजदीकी परिवार के सदस्यों और दोस्तों को बीमारी फैलाता है। इस स्टेज में स्थानीय अधिकारी वर्ग उन सभी लोगों की पहचान कर सकते हैं जो उस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए और उनकी जांच की जा सकती है।
  • स्टेज 3 : कम्युनिटी ट्रांसमिशन या सामुदायिक प्रसार- ये तब होता है जब इंफेक्शन स्थानीय आबादी में फैल जाता है और इंफेक्शन का पहला कैरियर या वाहक कौन था उसका पता लगाना संभव नहीं होता। इस स्टेज में आते-आते आमतौर पर स्थानीय अधिकारी वर्ग लॉकडाउन की घोषणा कर देते हैं ताकि बीमारी को और आगे फैलने से बचाया जा सके।
  • स्टेज 4 : इस स्टेज में आते-आते बीमारी देशभर में फैल जाती है और महामारी का रूप ले लेती है। इंफेक्शन तेजी से फैल रहा होता है और मृत्यु दर में भी तेजी देखने को मिलती है।

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महामारी विज्ञान की डिक्शनरी के मुताबिक महामारी को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है, महामारी दुनियाभर में या फिर किसी बहुत बड़े क्षेत्र में होने वाली बीमारी है जो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर बहुत बड़ी तादाद में लोगों को प्रभावित करती है। WHO ने 11 मार्च 2020 को कोविड-19 को महामारी घोषित किया था। 

महामारी के लेवल की ऐसी कई बीमारियां हैं जो हर साल दुनियाभर के लोगों को प्रभावित करती हैं और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति दुनिया के किस हिस्से में रहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मौसमी संक्रामक बीमारियां जैसे फ्लू भी एक देश से दूसरे देश में ट्रैवल करके बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि महामारी की परिभाषा में मौसमी संक्रामक बीमारियों का प्रकोप शामिल नहीं है। 

स्वास्थ्य की वैश्विक प्रबंध निकाय संस्था इस बारे में स्पष्ट तौर पर बताती है कि किसी भी संक्रामक बीमारी का प्रकोप जो दुनियाभर में एक साथ घटित हो रहा है उसे ही महामारी के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि महामारी विज्ञान से जुड़े दुनियाभर के वैज्ञानिकों को बीमारी की गंभीरता और उसके फैलने के दर के बारे में अध्ययन करने का मौका मिलता है। इन्फ्लूएंजा बीमारी का प्रकोप जो दुनियाभर में घटित होता है वह महामारी का सटीक उदाहरण है।

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एक्सपर्ट्स बीमारी की पारगमन क्षमता को नापने के लिए अलग-अलग मीट्रिक्स का इस्तेमाल करते हैं। इन मीट्रिक्स में से सबसे महत्वपूर्ण है रोगाणु की प्रजनन संख्या या आर-नॉट- जो कोविड-19 के मामले में सार्स-सीओवी-2 वायरस है। बीमारी के फैलने की दर यानी रेट ऑफ ट्रांसमिशन या आरओ का मतलब है किसी एक संक्रमित मरीज द्वारा औसतन कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए- मीजल्स यानी खसरा बीमारी का आरओ 12-18 है। इसका मतलब है कि एक संक्रमित व्यक्ति 12 से 18 स्वस्थ लोगों को संक्रमित कर सकता है। फ्लू जो कि कम संक्रामक बीमारी है उससे खसरे के आरओ की तुलना करें तो वह सिर्फ 0.9-2.1 के बीच है। 

इसी तरह से बीमारी की गंभीरता का पता लगाने के लिए बीमारी से होने वाली मृत्यु दर का पता लगाया जाता है जो इन्फ्लूएंजा प्रकोप के मामले में 0.1 प्रतिशत से 0.3 प्रतिशत के बीच है। तो वहीं, मौसमी फ्लू का मृत्यु दर 0.1 प्रतिशत के आसपास है। लेकिन चूंकि फ्लू वायरस से होने वाला बहुत ज्यादा फैला हुआ इंफेक्शन है और यह लगातार अपना रूप बदलता रहता है (म्यूटेशन) लिहाजा वायरस का कौन से स्ट्रेन सबसे ज्यादा इंफेक्शन पैदा करता है इसका पता लगाना मुश्किल है। दुनिया की करीब 9 प्रतिशत आबादी को हर साल फ्लू होता है लेकिन इसकी मृत्यु दर बेहद कम है क्योंकि इस बीमारी का टीका (वैक्सीन) मौजूद है जो इंफेक्शन को रोकने में असरदार है। फ्लू की वजह से दुनियाभर में हर साल करीब 50 लाख लोगों की मौत होती है।

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  1. लोकल ट्रांसमिशन
  2. कम्युनिटी ट्रांसमिशन या सामुदायिक प्रसार
कम्युनिटी ट्रांसमिशन बनाम लोकल ट्रांसमिशन : आबादी में कैसे फैलता है संक्रमण, जानें के डॉक्टर

जैसा की पहले ही कहा जा चुका है लोकल ट्रांसमिशन यानी स्थानीय स्तर पर बीमारी के फैलने का मतलब है कि किसी एक संक्रमित व्यक्ति द्वारा उसके घर और परिवार के सदस्यों या बेहद नजदीकी संपर्क वाले लोगों के बीच बीमारी का फैलना। इस तरह के ट्रांसमिशन में ये जरूरी नहीं कि बीमारी से संक्रमित हुए नए व्यक्ति की उस जगह की कोई ट्रैवल हिस्ट्री हो जहां पर संक्रमण फैला है। सबसे जरूरी बात ये है कि इस तरह के ट्रांसमिशन, बीमारी फैलाने का सोर्स क्या है या कौन है उसे कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के जरिए आसानी से खोजा जा सकता है। इस तरह के मामले में सभी संक्रमित व्यक्तियों और उनके संपर्क में आए लोगों को आइसोलेट और क्वारंटीन करके उस निश्चित इलाके में इंफेक्शन को और ज्यादा फैलने से रोका जा सकता है।

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कम्युनिटी ट्रांसमिशन या बीमारी के सामुदायिक प्रसार में कोई व्यक्ति बिना किसी प्रभावित देश या हिस्से में यात्रा किए ही बीमारी से संक्रमित हो जाता है। हालांकि जिस व्यक्ति ने यह संक्रमण फैलाया होता है इस मामले में ऐसा जरूरी नहीं है कि उसकी भी किसी प्रभावित देश की कोई ट्रैवल हिस्ट्री हो। यही वजह है कि इस मामले में इंफेक्शन के सोर्स का पता लगाना नामुमकिन के समान होता है।

कम्युनिटी ट्रांसमिशन के मामले में बड़े पैमाने पर लॉकडाउन करना जरूरी हो जाता है जिसमें आइसोलेशन और क्वारंटीन स्ट्रैटजी भी अपनायी जाती है क्योंकि इस दौरान संक्रमण स्थानीय ग्रुप या आबादी में पूरी तरह से फैल चुका होता है। इस मामले में कम्युनिटी या समुदाय कोई रिहायशी इलाका हो सकता है, अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स हो सकता है, शॉपिंग मॉल, ऑफिस या पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी जनसमूह की कोई भी जगह हो सकती है। 

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भारत में जब कोविड-19 की शुरुआत हुई थी उस वक्त चीन, दक्षिण कोरिया, ईरान, अमेरिका और इटली जैसे देश जहां संक्रमण का स्तर बहुत अधिक था वहां से भारत आने वाले लोग संक्रमित हुए और उन्होंने भारत में बीमारी को फैलाना शुरू किया जिसकी वजह से अधिकारियों ने इसे लोकल ट्रांसमिशन कहना शुरू किया। लेकिन अब भारत में कई शहरों और क्षेत्रों में कोविड-19 मामलों के ऐसे समूह बन गए हैं जिसकी वजह से भले ही राष्ट्रीय स्तर पर अब भी लोकल ट्रांसमिशन हो और ज्यादातर जगहों पर अब भी संक्रमण फैलाने वाले मरीज को ट्रेस किया जा सके। लेकिन देश में ऐसे कई जोन हैं जहां संक्रमण फैलाने वाले मरीज की खोज करना नामुमकिन है क्योंकि इन जगहों पर संक्रमण बहुत अधिक फैल चुका है।

कोविड-19 के मामलों में रोजाना बड़ी तेजी से बढ़ोतरी होने के बावजूद भारत एक ऐसा देश है जहां अब तक कोविड-19 का कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू नहीं हुआ है। WHO के द्वारा परिभाषित कुछ नए मार्कर्स हैं जिनके आधार पर ट्रांसमिशन के एक और स्टेज को क्लस्टर ऑफ केसेज के नाम से परिभाषित किया गया है। इसमें एक ही लोकेशन पर कॉमन एक्सपोजर से बढ़े मामलों की पहचान की जाती है। भारत को इस तरह के ट्रांसमिशन वाले स्टेज का देश कहा जा सकता है क्योंकि यहां पर कुछ शहरों और क्षेत्रों में कोविड-19 के मामलों की स्थिति देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बहुत ज्यादा खराब है।

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