हाल के समय तक भारत और अमेरिका समेत दुनियाभर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना था कि कोरोना वायरस से डर कर हर किसी को मास्क पहनने की जरूरत नहीं है। भारत की बात करें तो यहां सरकार की तरफ से बार-बार यह कहा गया है कि केवल उन्हीं लोगों को मास्क पहनना चाहिए, जिनमें कोविड-19 के लक्षण (सर्दी-जुकाम, खांसी, बुखार) हों। लेकिन अब इस नीति में बदलाव देखने को मिल रहा है। भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी सभी लोगों को मास्क या कहें फेस कवर लगाने की हिदायत दी जा रही है। चूंकि हर किसी को ये फेस कवर मुहैया कराना संभव नहीं हो पा रहा है, लिहाजा लोगों को घर पर ही फेस कवर बनाने की विधियां बताई जा रही हैं। सवाल बनता है कि आखिर इस संबंध में नई नीति अपनाने की जरूरत क्यों पड़ी।
इसका एक जवाब तो स्पष्ट है। भारत में जहां अब हर दिन सैकड़ों मामलों की पुष्टि हो रही है, वहीं अमेरिका में प्रतिदिन 25 से 30 हजार लोग बीमारी का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में उन लोगों के भी संक्रमित होने का डर पैदा हो गया है, जिन्होंने सोशल या फिजिकल डिस्टेंसिंग के तहत खुद को घरों में कैद किया हुआ है। जानकारों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में मास्क उपलब्ध नहीं होने के चलते ये सभी लोगों को नहीं दिए जा सकते, लिहाजा अब लोगों को घरों में ही फेस कवर बनाने को कहा जा रहा है।
दूसरी बड़ी वजह मार्च में आया एक शोध है। 'न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल' में प्रकाशित इस शोध में बताया गया था कि नया कोरोना वायरस हवा में तीन घंटों तक रह सकता है। यानी अगर संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो उसके मुंह से निकली छोटी-छोटी बूंदों के जरिये फैला कोरोना वायरस तुरंत जमीन या किसी अन्य सतह पर नहीं बैठता, बल्कि तीन घंटों (शोध के मुताबिक) तक हवा में ही रह सकता है। हालांकि शोध में यह भी कहा गया है कि इस अवधि में वायरस के संक्रमण फैलाने की क्षमता में कमी देखी गई थी। वहीं, नई जानकारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी किसी तरह की पुष्टि नहीं की है। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि जिस तेजी से पूरी दुनिया में कोविड-19 फैल रही है, उसे देखते हुए इस जानकारी को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, लिहाजा सावधानियां बरती जा रही हैं।
यही वजह है कि अब सरकारों की नीति में भी बदलाव देखने को मिला है। मिसाल के लिए, भारत सरकार पहले कह रही थी कि सभी लोगों को मास्क पहनने की जरूरत नहीं है। डब्लूएचओ ने भी यही सुझाव देते हुए कहा था कि गैर-संक्रमित व्यक्तियों को मास्क केवल उस समय पहनना चाहिए, जब वे बीमार लोगों की देखभाल कर रहे हों। वहीं, अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की भी यही सिफारिश रही है। लेकिन अब इस पर पुनर्विचार किया जा रहा है।
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एन95 की मांग सबसे ज्यादा क्यों?
नए कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद एन95 मास्क की मांग काफी बढ़ी थी। इसका यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि यह हवा में मौजूद 95 प्रतिशत कणों को रोकने में सक्षम है। इनमें वे कण भी शामिल हैं, जिनका आकार 0.3 माइक्रोन (1 माइक्रोन, एक मीटर का दस लाखवां हिस्सा) तक है। हालांकि सार्स-सीओवी-2 का आकार 0.2 माइक्रोन तक होता है, इसलिए यह संभवतः एन95 मास्क को भेद सकता है। इस पर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस मुंह से निकली पानी की बूंदों में होता है, जिनका आकार 0.3 माइक्रोन से काफी बड़ा होता है। इस आधार पर इन विशेषज्ञों का कहना है कि एन95 मास्क कोरोना वायरस के लिए अच्छा अवरोध है।
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कितना प्रभावी है फेस कवर?
वहीं, होम-मेड फेस कवर, मेडिकल अथवा सर्जिकल मास्कों की तुलना में कम प्रभावी हैं। लेकिन ऐसे मास्क नहीं होने की स्थिति में फेस कवर एक विकल्प जरूर हैं, जिन्हें एक बार से ज्यादा धोया भी जा सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि घर पर बने फेस कवर सूती कपड़े के हों और बड़े कणों को रोकने में सक्षम हों। सरकार के तहत प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय ने कहा है कि लोग घर पर निर्मित फेस कवर पहन सकते हैं, हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से यह काफी नहीं है। उसने डब्ल्यूएचओ के हवाले से कहा है, ‘(घर पर बना) फेस कवर तभी प्रभावी होता है जब लोग साबुन या अल्कोहल-आधारित हैंड सैनिटाइजर से हाथ लगातार साफ करते रहें। स्वच्छ फेस कवर के इस्तेमाल से वायरस को फैलने से रोका जा सकता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए जरूरी है, जो घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं।’
कैसा होना चाहिए फेस कवर?
घर पर बनाया गया फेस कवर सूती कपड़े के साथ डबल लेयर (दो बार तय किया हुआ) का होना चाहिए। है। सरकार ने इस संबंध में अपने मैनुअल में कहा है कि 100 प्रतिशत सूती कपड़े से बना फेस कवर, सर्जिकल मास्क की तरह 70 प्रतिशत प्रभावी हो सकता है और कई छोटे कड़ों को मुंह के जरिये शरीर में घुसने से रोक सकता है।
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