कोविड-19 के इलाज और रोकथाम को लेकर विवादों में रही एंटी-मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) एक बार फिर चर्चा में है। कोविड-19 का इलाज ढूंढने के मकसद से किए गए अंतरराष्ट्रीय ट्रायलों में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण को रोक पाने में 'बेकार' और 'बेअसर' बताए जाने के बाद अब एक नए अध्ययन में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने का दावा किया गया है। अमेरिका के दक्षिणपूर्वी मिशिगन स्थित हेनरी फोर्ड हेल्थ सिस्टम (एचएफएचएस) के मेडिकल विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोविड-19 के मरीजों में सर्वाइवल रेट बढ़ाने में सक्षम है। इस बीच, इस दवा को लेकर एक दूसरी बड़ी खबर यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे और दो एचआईवी ड्रग्स लोपिनावीर और रिटोनावीर के कॉम्बिनेशन का कोविड-19 के मरीजों पर ट्रायल रोक दिया है।
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क्या कहता है नया शोध?
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, एचएफएचएस ने अमेरिका के अस्पतालों में भर्ती 2,500 से ज्यादा कोविड-19 मरीजों को अपने अध्ययन में शामिल किया था। दावा है कि इन मरीजों में जिन-जिन को एचसीक्यू दी गई थी, उनमें कोरोना वायरस के संक्रमण से मरने की दर कम हो गई। एचएफएचएस में संक्रामक रोगों की डिविजन के प्रमुख डॉ. मार्कस जेरवोस ने बताया कि 2,541 मरीजों में से जिनको हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नहीं दी गई, उनमें से 26 प्रतिशत की मौत हो गई। वहीं, जिन लोगों को यह ड्रग दिया गया, उनमें मृत्यु दर 13 प्रतिशत रही।
इस अध्ययन से जुड़ी रिपोर्ट इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इन्फेक्शियस डिसीजिज नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुई है। इसमें शोधकर्ताओं ने लिखा है, 'सभी मरीजों को मिलाकर मृत्यु दर 18.1 प्रतिशत रही। केवल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन वाले ग्रुप में मॉर्टेलिटी रेट 13.5 प्रतिशत रही। जिनको एचसीक्यू के साथ एजिथ्रोमाइसिन भी दी गई थी, उनमें यह दर 20.1 प्रतिशत देखी गई। वहीं, जिन मरीजों को केवल एजिथ्रोमाइसिन दी गई उनमें मृत्यु दर 22.4 प्रतिशत दर्ज की गई और जिन्हें इनमें से कोई भी दवा नहीं दी गई, उनमें 26.4 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई।'
हालांकि, शोध को लेकर कई अन्य शोधकर्ताओं (जो शोध में शामिल नहीं थे) ने कहा है कि एचएफएचएस के अध्ययन की गुणवत्ता उन अध्ययनों जैसी नहीं थी, जिनके परिणामों में एचसीक्यू को 'अप्रभावी' पाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 के कुछ मरीजों की जान बचाने के लिहाज से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से बेहतर परिणाम अन्य दवाओं से मिल सकते हैं, जैसे कि डेक्सामेथासोन। वहीं, डॉ. जेरवोस ने अपने अध्ययन को लेकर कहा है, 'हमारे परिणाम बाकी अध्ययनों से अलग हैं। हमारे अध्ययन में महत्वपूर्ण बात यह रही कि मरीजों को शुरुआत में ही ड्रग दे दिया गया। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए इसे मरीज की हालत गंभीर होने से पहले दिए जाने की जरूरत है।' उधर, हेनरी फोर्ड मेडिकल ग्रुप के सीईओ डॉ. स्टीनव कैलकैनिस का कहना है कि अगर सही तरीके से एचसीक्यू को इस्तेमाल किया जाए तो यह कोरोना मरीजों के लिए जीवनरक्षक का काम कर सकती है।
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डब्ल्यूएचओ ने ट्रायल से हटाया
एचएफएचएस के ट्रायल में भले ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोविड-19 के मरीजों के लिए लाइफसेवर ड्रग साबित हुई हो, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने इस दवा के ट्रायल पर फिर रोक लगा दी है। इसके अलावा एचआईवी ड्रग लोपिनवीर और रिटोनावीर के ट्रायलों पर रोक लगा दी गई है। बताया गया है कि कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में अप्रभावी पाए जाने के बाद डब्ल्यूएचओ ने इन दवाओं को लेकर यह फैसला किया है। अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाज के दौरान एचसीक्यू कोविड-19 से ग्रस्त लोगों में मृत्यु दर कम करने में नाकाम रही है। यह परिणाम एचएफएचएस के अध्ययन के परिणाम से ठीक उल्टा है।
इस संबंध में बयान जारी करते हुए डब्ल्यूएचओ ने कहा है, 'इन अंतिम परिणामों को इलाज से जुड़े हमारे स्टैंडर्ड से तुलना करने पर पता चलता है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और लोपिनावीर/रिटोनावीर अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के मरीजों को बचाने में बहुत कम या बिल्कुल भी कारगर नहीं है। लिहाजा सॉलिडेरिटी ट्रायल के जांचकर्ताओं ने इन दवाओं के ट्रायलों को तुरंत प्रभाव से रोकने का फैसला किया है।'