कोरोना वायरस यानी सार्स-सीओवी-2 वायरस से फैली महामारी के बीच दुनिया भर के तमाम वैज्ञानिक कोविड-19 की दवा तलाशने में लगे हैं। अमेरिका चीन और यूरोप के अलावा भारत और जापान जैसे कई देशों में अलग-अलग दवाओं को लेकर कई तरह के चरणों के तहत परीक्षण किए जा रहे हैं। इस सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने भी चार दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी है। डब्ल्यूएचओ ने इसे ‘सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट’ का नाम दिया है। इसके तहत दुनियाभर में चार दवाओं या ड्रग कॉम्बिनेशन का परीक्षण किया जाएगा। इन चार ड्रग्स में इबोला वायरस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दो दवाएं रेमेडिसावीर और क्लोरोक्वीन शामिल हैं। बाकी दो दवाओं में एंटी-एचआईवी ड्रग्स रिटोनावीर और लोपिनावीर शामिल हैं। हाल में कई देशों में इन दोनों दवाओं को कोविड-19 के कई मरीजों पर आजमाया गया है। हालांकि इनके प्रभाव को लेकर अलग-अलग परिणाम सामने आए हैं।
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आपूर्ति के लिए सामने आई दवा कंपनियां
दूसरी तरफ, परीक्षणों के सकारात्मक परिणाम आने की सूरत में इन दवाइयों की आपूर्ति के लिए कई फार्मा कंपनियां सामने आई हैं। इनमें भारत की जानी-मानी दवा कंपनी 'सिप्ला' भी शामिल है। वहीं, यूरोप की जानी-मानी फार्मा कंपनी 'डिस्कवरी' के नेतृत्व में फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और यूके सहित कई यूरोपीय देश दवा संबंधी परीक्षणों का संचालन करेंगे। इसके अलावा, दुनिया की सबसे बड़ी बायोटेक कंपनियों में से एक रोशे 'गठिया' रोग की दवा 'एक्टेम्रा' के जरिए कोविड-19 का इलाज तलाशने में लगी है। इसके तहत अब उसने तीसरे चरण का ट्रायल शुरू करने का फैसला किया है। रिपोर्टों के मुताबिक, कंपनी कोविड-19 के वयस्क रोगियों पर एक्टेम्रा का परीक्षण करेगी। उम्मीद की जा रही है कि इन सभी प्रयासों से कोरोना वायरस से फैली महामारी को रोकने और कोविड-19 के इलाज की दिशा में बेहतर परिणाम सामने आएंगे।
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अमेरिका में कई दवाओं को मिली मंजूरी
अमेरिका में कोरोना वायरस की कारगर दवा या वैक्सीन बनाने पर पहले से काम चल रहा है। इस सिलसिले में अमेरिकी संस्था फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कुछ दवाओं को मंजूरी दी है। बताया गया है कि इन दवाओं की मदद से कोविड-19 से पीड़ित मरीजों का इलाज संभव हो सकता है। वहीं, दो नए अध्ययनों के आधार पर यह सुझाव भी सामने आया है कि अमेरिका में उपयोग के लिए पहले से स्वीकृत दर्जनों दवाएं नए कोरोनो वायरस के खिलाफ प्रभावी साबित हो सकती हैं। अमेरिका के ह्यूस्टन शहर स्थित यूटी साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर में प्रोफेसर और शोधकर्ता हेशम साडेक का कहना है कि एफडीए की ओर से स्वीकृत दवाओं के इस्तेमाल से उन रोगियों का इलाज का तेज हो सकता है, जिनके पास फिलहाल कोई विकल्प नहीं है।
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स्वीकृत दवाओं की क्षमता का किया गया आंकलन
जिन ड्रग्स को एफडीए की ओर से मंजूरी दी गई है, उन दवाओं को अभी भी पूरी तरह से विकसित होने में कुछ महीनों का समय लग सकता है। फिलहाल शोधकर्ता हेशम साडेक की एक टीम स्वीकृत की गई कुछ दवाओं का कंप्यूटर मॉडलिंग के तहत अध्ययन कर रही है ताकि उनकी कोरोनो वायरस का मुकाबला करने की क्षमता का आंकलन किया जा सके। अभी तक के नतीजों से पता चला है कि जिन दवाओं में सफल इलाज की संभावना दिखाई दी है, उनमें कई एंटीवायरल दवाएं शामिल हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, इन दवाओं में डरुनावीर, नॉलिनावीर और सॉक्विनवीर के साथ कई अन्य प्रकार की दवाएं शामिल हैं।
हालांकि, कई विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि शोध अभी भी अपने शुरुआती चरण में हैं, इसलिए फिलहाल लोगों को किसी भी तरह की दवा नहीं दी जानी चाहिए। बता दें कि डब्ल्यूएचओ ने भी अभी तक किसी तरह की दवा के सुझाव से इनकार किया है। उसने कहा है कि अभी केवल कुछ दवाओं की जांच की जा रही है।
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एंटी-मलेरिया ड्रग्स से हो रहा इलाज
हाल में फ्रांस और चीन से खबरें आई थीं कि वहां मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्साइक्लोरोक्वीन और उसे संबंधित यौगिक क्लोरोक्वीन से कोविड-19 के मरीजों के इलाज में काफी मदद मिली है। फ्रांस में इस दवा के इस्तेमाल को मंजूरी भी मिल चुकी है। अब मोरक्को में भी एंटी-मलेरिया ड्रग्स के जरिए कोविड-19 के मरीजों का इलाज किए जाने की बात सामने आई है। खबरों के मुताबिक, मोरक्को सरकार की ओर से इन ड्रग्स को मंजूरी दे दी गई है। इसके बाद वहां के अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमितों पर दवा का प्रयोग किया जा रहा है। हालांकि वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि इस दवा के छोटे ट्रायलों के परिणामों से ज्यादा प्रोत्साहित होने की जरूरत नहीं है और दवा के इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है।