प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीती 12 मई को देश के नाम अपने संबोधन में कहा था कि कोविड-19 संकट से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का चौथा चरण नए रंग-रूप वाला होगा। जानकारों समेत आम लोग उनके इस बयान को लॉकडाउन में ज्यादा ढील देने की संभावना से जोड़ रहे हैं। सरकार ने भी ऐसे संकेत दिए हैं कि बीते डेढ़ महीने से बंद पड़ी अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू किया जाएगा। ऐसे में आगामी 18 मई से बाजार, दफ्तर आदि के खुलने (कुछ हद तक) की उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन इतना तय है कि यह राहत सोशल डिस्टेंसिंग और व्यक्तिगत सुरक्षा से जुड़े नियमों के साथ ही दी जाएगी। लाजमी है अगले हफ्ते से देश की सड़कों, बाजारों, दफ्तरों आदि में मास्क पहने लोगों की संख्या बढ़ सकती है। उनमें से कइयों ने घर में आम कपड़ों से बने मास्क पहन रखे होंगे। लेकिन इनमें से कौन सा मास्क वायरस को रोकने की सबसे ज्यादा सक्षम है?

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कोरोना वायरस से बचने के लिए कौन सा होममेड मास्क सबसे बेहतर रहेगा, यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रकार के कपड़ों पर परीक्षण किया है। इसके आधार पर उनका मानना है कि सूत (कॉटन) से बना टाइट कपड़ा या रेशम के कपड़े की चार परतों या अन्य प्रकार के कपड़ों के मिश्रण (जैसे कॉटन-फ्लैनल या कॉटन-चिफॉन) से बने मास्क सार्स-सीओवी-2 को शरीर में जाने से रोक सकते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि इन कपड़ों से बने मास्क हवा में मौजूद 10 नैनोमीटर या छह माइक्रोमीटर जितने कणों को फिल्टर कर सकते हैं। गौरतलब है कि जिन ड्रॉपलेट्स (मुंह से निकली पानी की छोटी बूंदें) के जरिये कोरोना वायरस अन्य लोगों को संक्रमित करता है, उनका आकार भी इतना ही होता है। इस आकार की ड्रॉपलेट्स हवा में काफी देर तक रह सकती है।

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अमेरिकन केमिकल सोसायटी द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका केमिलक एंड इंजीनियरिंग न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका स्थित प्रित्जकर स्कूल ऑफ मॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग, शिकागो यूनिवर्सिटी और अर्गोन नेशनल लैबोरेटरी ने वायरस ड्रॉपलेट्स को फिल्टर करने की क्षमता जानने के लिए अलग-अलग प्रकार के कपड़ों की जांच की थी।

इसके लिए उन्होंने एक ऐसा उपकरण तैयार किया जिसकी मदद से हवा के कणों को कपड़ों के आर-पार कराया जा सके। वहीं, फिल्टर हुए कणों का आकार और उनका फैलाव जानने के लिए अर्गोन नेशनल लैबोरेटरी में बने एक उपकरण की मदद ली गई। इस परीक्षण में 15 अलग-अलग प्रकार के कपड़ों का इस्तेमाल कर उनकी जांच की गई। परिणाम के आधार पर शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि लोगों को कम से कम दो परतों (लेयर्स) वाले कपड़े के मास्क पहनने चाहिए और बहुत ज्यादा लेयर्स नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि इससे हवा का प्रवाह ही रुक जाएगा जो सांस लेने के अनुकूल नहीं है।

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शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि जब ड्रॉपलेट्स को रोकने के लिए उपरोक्त कपड़ों की एक लेयर का इस्तेमाल किया गया तो वह 300 नैनोमीटर के आकार के कणों को ही रोक पाए। लेकिन जब लेयर्स बढ़ाई गईं तो कपड़ों ने काफी छोटे कणों को पार नहीं जाने दिया। इनमें कॉटन का कपड़ा सबसे ज्यादा उपयोगी साबित हुआ। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि कॉटन से बने मास्क इस्तेमाल करने से वायरस से बचने में काफी मदद मिल सकती है। इसके अलावा उन्होंने मास्क की फिटिंग को लेकर आगाह किया। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मास्क और मुंह के बीच गैप ज्यादा होने से ड्रॉपलेट रोकने की उसकी क्षमता 60 प्रतिशत तक कम हो सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि मुंह पर लगाने के लिए मास्क की फिटिंग सही हो और उनमें 'लीकेज' की समस्या न हो।


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