कोविड-19 महामारी ने हमें ऐसे कई शब्दों और तकनीकी टर्म्स से परिचित कराया है, जिनके बारे में या तो हमने कभी पढ़ा नहीं था या कभी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। मिसाल के लिए आज से नौ महीने पहले किसे पता था कि क्वारंटीन का मतलब क्या है और वायरल लोड किसे कहते हैं। कोरोना वायरस ने ऐसे शब्दों को हमारे आम जीवन में होने वाली बातचीत का हिस्सा बना दिया है। लेकिन इन शब्दों या टर्म्स का इस्तेमाल अलग-अलग जगहों या कहें देशों में अलग-अलग स्तर पर है। इसीलिए सभी लोग उनसे परिचित नहीं हैं। मसलन, भारत में लोग अभी भी 'सीरियल इंटरवल' के बारे में नहीं जानते और न ही यह जानते हैं कि चीन किस तरह इसे मैनेज करते हुए अपने यहां कोरोना वायरस को नियंत्रण में करने में सफल रहा। इस रिपोर्ट में इस बारे में जानने की कोशिश करेंगे।
क्या है सीरियल इंटरवल?
सीरियल इंटरवल का मतलब है बीमारी की चपेट में आए किसी व्यक्ति में लक्षण दिखने की शुरुआत से उसके संपर्क के दूसरे लोगों में लक्षण दिखने की शुरुआत से पहले का समय। आसान शब्दों में कहे तो ए नामक व्यक्ति और बी नामक व्यक्ति में कोविड-19 के लक्षण दिखने के बीच के गैप को सीरियल इंटरवल कहते हैं। यानी बीमारी के ए से बी में फैलने में लगने वाला समय। सीरियल इंटरवल को लेकर हांगकांग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया अध्ययन जानी-मानी मेडिकल व विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि कैसे चीन सीरियल इंटरवल को मैनेज करते हुए कोविड-19 महामारी को रोकने में कामयाब रहा।
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जानकार बताते हैं कि सीरियल इंटरवल का सबसे पहला इस्तेमाल 1942-45 के बीच ब्रिटिश फिजिशन विलियम पिकल्स द्वारा किया गया था। यह वह समय था जब यूनाइटेड किंगडम में हेपेटाइटिस बीमारी महामारी के रूप में फैल रही थी। तब बीमारी के ट्रांसमिशन इंटरवल के संबंध में इस शब्दावली का इस्तेमाल किया गया था। बाद में एक और ब्रिटिश फिजिशन आरई होप सिम्पसन ने बीमारी के आनुक्रमिक लक्षणों के बीच का इंटरवल बताते हुए सीरियल इंटरवल को परिभाषित किया था।
बहरहाल, कोविड-19 को लेकर हांगकांग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए नए अध्ययन में बताया गया है कि सीरियल इंटरवल अन्य एपिडेमियोलॉजिकल पैरामीटर्स पर भी निर्भर करता है। मिसाल के लिए इनक्यूबेशन पीरियड, जोकि किसी व्यक्ति के वायरस के चपेट में आने और लक्षण दिखने के बीच का समय होता है, या रीप्रॉडक्शन रेट (आर नॉट) जो संक्रमण के एक व्यक्ति से दूसरे लोगों में फैलने को लेकर इस्तेमाल होने वाला पैरामीटर है।
शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने बताया है कि जनवरी की शुरुआत और फरवरी की शुरुआत के बीच चीन के वुहान में सीरियल इंटरवल 7.8 दिन से 2.6 दिन हो गया था। उनती मानें तो कोरोना वायरस से संक्रमित हुए मरीजों के संपर्क में आए लोगों को लक्षण दिखने के एक दिन के अंदर-अंदर क्वारंटीन करने की रणनीति के चलते चीन को कोविड-19 के ट्रांसमिशन को 60 प्रतिशत तक कम करने में मदद मिली थी। उन्होंने बताया कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, क्वारंटीन और आइसोलेशन को आक्रामक तरीके से लागू किए जाने के चलते ऐसे सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। कम ही समय में आइसोलेट किए जाने के कारण संक्रमित लोग अन्य लोगों के बीच वायरस ट्रांसमिट नहीं कर सके। इसके अलावा, चीन के अलग-अलग शहरों में इंट्रा और इंटरसिटी ट्रैवल को रोके जाने तथा व्यापक स्तर पर सोशल डिस्टेंसिंग लागू करके सीरियल इंटरवल को कम रखने में मदद मिली। इस तरह, चीन कोरोना वायरस के संक्रमण की साइकिल को तोड़ने में कामयाब रहा।
सीरियल इंटरवल को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 को नियंत्रित करने की रणनीति का फायदा केवल चीन को नहीं मिला। एक और अंतरराष्ट्रीय मेडिकल पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनफेक्शियस डिसीजेज में प्रकाशित अध्ययन में ज्यूरिक (स्विट्जलैंड) और सियोल स्थित वैज्ञानिकों ने कहा है कि दक्षिण कोरिया द्वारा कोविड-19 के खिलाफ कारगर रेस्पॉन्स दिए जाने के पीछे भी सीरियल इंटरवल फैक्टर का हाथ है। वहां, इस अवधि को 3.63 दिन मानकर आक्रामक स्तर पर लोगों की ट्रेसिंग की गई थी। इसी के चलते दक्षिण कोरिया तेजी से कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन को रोकने में कामयाब रहा था।