नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को लेकर अब तक कई अध्ययन हो चुके हैं। बावजूद इसके इस विषाणु को लेकर कई सवाल अब भी बने हुए हैं। इनमें से एक बड़ा सवाल उन मामलों से जुड़ा है, जिनमें किसी मरीज की टेस्ट रिपोर्ट पहली जांच में नेगेटिव आने के कुछ दिन बाद, दूसरी जांच में पॉजिटिव निकली। महाराष्ट्र के पुणे में भी ऐसा मामला सामने आया है। खबरों के मुताबिक, यहां एक महिला मरीज की पहली जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई। लेकिन तीन चार बाद वह कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार पड़ गई और आखिरकार उसकी मौत हो गई।

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मेडिकल जानकारों के बीच इसे लेकर बहस चल रही है। कुछ ने आशंका जताई है कि ऐसे मामले शरीर में कोरोना वायरस के दोबारा आने के परिणाम हो सकते हैं। वहीं, अन्य मेडिकल विशेषज्ञ ऐसी संभावना से इनकार करते हैं। वे इसे 'फॉल्स नेगेटिव' कहते हैं। यानी वे इस संभावना से इनकार नहीं करते कि मरीज वायरस से मुक्त नहीं थे, लेकिन पहले टेस्ट में विषाणु का पता नहीं चल सका।

गलत परीक्षण कितना संभव?
बेल्जियम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के निदेशक और यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के पूर्व सदस्य डॉ. मार्क-एलेन विडोसन ने ऐसे ‘गलत नकारात्मक परीक्षणों’ के विषय पर शोध किया है। उनका कहना है कि कोई भी लैब टेस्ट 100 प्रतिशत सही नहीं हो सकता। एक मीडिया संस्थान को दिए अपने इंटरव्यू में डॉक्टर विडोसन ने बताया, ‘आनुवंशिक आधार पर किए गए टेस्ट काफी संवेदनशील होते हैं और कभी-कभी इनकी रिपोर्ट नेगेटिव भी हो सकती है। ऐसा जांच का नमूना ठीक प्रकार से ना लिए जाने या खराब तरीक से जांच करने की वजह से हो सकता है। जिस समय नाक से नमूना लिया जाएरहा हो, संभवतः तब वायरस वहां होने के बजाय शरीर के किसी और हिस्से में हो। अगर संक्रमण फेफड़ों में है, तो नाक की जांच से उसका पता नहीं लगेगा। इसीलिए 24 घंटों के अंदर दो टेस्ट करने चाहिए।'

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साल 2003 में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स पर एक अध्ययन किया गया था। इसमें भी कुछ इसी तरह के प्रमाण मिले थे। अध्ययन में पता चला कि संक्रमण होने की श्वसन संबंधी रिपोर्ट नेगेटिव हो सकती है, लेकिन संभव है कि मल की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आए। मतलब वायरस शरीर में मौजूद हो। इसीलिए डॉक्टरों का कहना है कि अगर संक्रमण फेफड़ों में है, तो नाक की जांच कर उसका पता नहीं लगाया जा सकता। ऐसा करने पर रिपोर्ट नेगेटिव आ सकती है।

अमेरिका स्थित येल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन विषय के प्रोफेसर हार्लन एम क्रमहोल्ज अपने एक लेख में बताते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि जांच के उद्देश्य से लिए गए पहले नमूने में इतना जेनेटिक मटीरियल आ जाए कि एक बार में ही टेस्ट का सही परिणाम आ जाए। वे यह भी कहते हैं कि अलग-अलग मरीजों में यह समस्या बार-बार आ सकती है, यानी हो सकता है कि कई बार टेस्ट करने के बाद भी उनमें बीमारी के लक्षण ना दिखाई दें। कई अन्य जानकार इसका सार यह निकालते हैं कि इस विषय को लेकर अभी भी काफी कुछ जानना बाकी है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: 'फॉल्स नेगेटिव' क्या है? जानें क्यों कोरोना वायरस के कुछ मरीजों की टेस्ट रिपोर्ट पहले नेगेटिव और फिर पॉजिटिव आती है है

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