अमेरिका और यूरोप के मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस के लगातार फैलने के बावजूद इसकी मृत्यु दर में कमी देखने को मिली है। न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में कोविड-19 के मामले लगातार बढ़े हैं, लेकिन साथ-साथ इसके सर्वाइवल रेट में सुधार भी हुआ है। यही ट्रेंड इंग्लैंड में भी देखा जा रहा है। अखबार ने इस बारे में कई डॉक्टरों व हेल्थ एक्सपर्ट तथा शोधकर्ताओं से बात की है। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्जेटर मेडिकल स्कूल के जॉन डेनिस बताते हैं कि मार्च महीने में आईसीयू में जाने वाले 10 कोरोना वायरस मरीजों में से चार की मौत हो रही थी। लेकिन जून का अंत आते-आते मरीजों का सर्वाइवल रेट 80 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
हालांकि सर्वाइवल रेट बेहतर होने से वायरस के ट्रांसमिशन पर कोई असर नहीं हुआ है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ सार्स-सीओवी-2 और ज्यादा आसानी से ट्रांसमिट होने योग्य बन गया है। वहीं, कई वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं, जिनके आधार पर कहा जाए कि वायरस कम घातक हो गया है। दूसरी तरफ, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि ज्यादातर बुजुर्ग लोग घरों में ही रह रहे हैं। अमेरिका की बात करें तो यहां अस्पताल में भर्ती होने वाले ज्यादातर कोविड मरीज युवा वयस्क हैं, जो आमतौर पर स्वस्थ होते हैं। एनवाईटी के मुताबिक, अगस्त के अंत तक अमेरिका में कोविड-19 के चलते अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की औसत उम्र 40 वर्ष से कम थी।
तो क्या यही वजह है कि पहले से ज्यादा फैलने के बावजूद कोरोना वायरस की मृत्यु दर में कमी हो रही है या कोविड-19 का इलाज ढूंढने के प्रयास में अब तक हुई मेडिकल प्रगति ने इस विषाणु के प्रभाव को कम कर दिया है?
एनवाईटी के मुताबिक, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन हेल्थ सिस्टम के शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए अपने यहां के अस्पतालों में मार्स से अगस्त तक भर्ती हुए 5,000 से ज्यादा कोविड-19 मरीजों का विश्लेषण किया है। इसमें उन्होंने पाया कि सर्वाइवल रेट में आई गिरावट वास्तविक है और इसका संबंध केवल डेमोग्राफिक परिवर्तन से नहीं है। उन्होंने बकायदा मरीजों में बीमारी के प्रभावों को उनके लिंग, आयु, नस्ल, अन्य बीमारियों और कोविड लक्षणों (जैसे एडमिशन के समय ब्लड ऑक्सीजन लेवल कितना था) को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग वर्गीकृत करके भी देखा। इसमें भी यह स्पष्ट तौर पर पता चला कि सभी प्रकार के कोरोना मरीजों में मृत्यु दरें 25.6 प्रतिशत (मार्च) से 7.6 प्रतिशत (अगस्त) तक गिर गई थीं। इस पर एनवाईयू लैंगोन के सेंटर फॉर हेल्थकेयर इनोवेशन एंड डिलिवरी साइंस की निदेशक डॉ. लियोरा हॉर्विज का कहना है, 'कोरोना का डेथ रेट फ्लू या अन्य श्वसन संबंधी रोगों से अब भी ज्यादा है। लेकिन इससे उम्मीद तो निश्चित रूप से बंधती है।'
बता दें कि डॉ. लियोरा इस अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका भी हैं, जिसे मेडिकल पत्रिका जर्नल ऑफ हॉस्पिटल मेडिसिन ने प्रकाशित किया है। उनकी तरह दूसरे डॉक्टर भी कोविड-19 की मृत्यु दर में हुई कमी के दावे पर सहमति जताते हैं। ह्यूस्टन मेथॉडिस्ट के चीफ फिजिशन एक्जीक्यूटिव डॉ. रॉबर्ट फिलिप्स कहते हैं, 'मृत्यु दर अब काफी कम हैं। लेकिन बीमारी अभी भी जानलेवा है। इन्फ्लूएंजा से दस गुना ज्यादा जानलेवा। इसके दीर्घकालिक कॉम्प्लिकेशंस भी हैं, जो फ्लू में देखने को नहीं मिलते।'
अखबार ने बताया कि इंग्लैंड में भी कोविड-19 के डेथ रेट में गिरावट देखी गई है। यहां क्रिटिकल केयर और इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती हुए करीब 15 हजार कोविड मरीजों का विश्लेषण कर बताया गया है कि आयु, लिंग, नस्ल और अन्य हेल्थ कंडीशंस के साथ एडजस्ट करने के बाद भी कोविड मरीजों की मृत्यु दर में सुधार के सबूत मिलते हैं। अध्ययन के मुताबिक, मार्च के बाद इंग्लैंड में क्रिटिकल केयर और हाई इंटेसिटी केयर यूनिट में भर्ती होने वाली कोरोना मरीजों के सर्वाइवल रेट में हर हफ्ते करीब दस प्रतिशत का सुधार देख गया है। इस बारे में हुए दो अध्ययनों के लेखक और अन्य एक्सपर्ट का कहना है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों से जुड़े आंकड़ों में सुधार के पीछे कई फैक्टर्स ने काम किया है। मिसाल के लिए, डॉक्टरों को यह समझ आने लगा है कि इस बीमारी का इलाज किस तरह करना है, स्टेरॉयड (जैसे डेक्सामेथासोन) और नॉन-ड्रग मेडिकल ट्रीटमेंट का इस्तेमाल किस प्रकार किया जाना चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो इससे सर्वाइवल रेट को मैनेज करने में काफी मदद मिली है।
वहीं, शोधकर्ता लोगों के बीच बीमारी को लेकर बढ़ाई गई जागरूकता को भी इसका श्रेय देते हैं। इसके चलते मरीज जल्दी इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। ऐसे में (कुछ समय पहले) अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या कम हुई थी, जिससे मेडिकल स्टाफ पर दबाव कम हुआ था। हालांकि अब यह दबाव फिर बढ़ता दिख रहा है, क्योंकि इस महीने यूरोप और अमेरिका में कोरोना के मामले अभूतपूर्व तरीके से बढ़ रहे हैं। बहरहाल, कोरोना संक्रमण से ग्रस्त लोगों के सर्वाइवल रेट में हुए सुधार पर बात करते हुए डॉ. हॉर्विज कहते हैं, 'हम जादू से लोगों को ठीक नहीं कर रहे। हमने कई नई चीजें सीखी हैं। अब हम बेहतर समझते हैं कि कब लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत है और कब नहीं। इलाज के समय किन कॉम्प्लिकेशन (जैसे ब्लड क्लॉट्स और किडनी फेलियर) पर नजर रखनी चाहिए। अब हम बेहतर जानते हैं कि ऑक्सीजन लेवल क्या होना चाहिए। इसके अलावा निस्संदेह स्टेरॉयड और अन्य मेडिकेशन भी (इलाज में) मददगार हैं, यह भी पहले से बेहतर समझ आया है।'
इन तमाम बातों से साफ होता है कि कोविड-19 की मृत्यु दर या सर्वाइवर रेट में हुआ सुधार इस बीमारी से जुड़े तमाम पहुलओं को लेकर बढ़ती समझ और इलाज के नए-नए प्रयोगों से संबंधित है। लेकिन ये प्रयास विफल होने का अंदेशा भी है। वायरस एक बार फिर यूरोप से लेकर अमेरिका तक तेजी से फैल रहा है। इस बार इसकी रफ्तार पिछली लहर से कहीं ज्यादा है। इसके चलते डॉक्टरों के लिए मरीजों को बचाने की चुनौती भी पहले से कहीं ज्यादा बड़ी हो गई है। अस्पताल में संक्रमितों की संख्या उनकी क्षमता से ज्यादा हो रही है, जिससे उन्हें मैनेज करना डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन के लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसे में देखना होगा कि इस बार कोविड-19 महामारी का डेथ रेट जैसा है, वैसा बना रहता है या इसमें बढ़ोतरी आएगी, क्योंकि डॉक्टर का कहना है कि वे केवल बीमारी को मैनेज करना सीखे हैं, वायरस अभी भी पहली की तरह रहस्यमय और खतरनाक बना हुआ है।