विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोविड-19 महामारी के चलते लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की है। उसने दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों को विशेष रूप से संबोधित करते हुए कहा है कि वे कोविड-19 की वजह से मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या जैसी समस्याओं को रोकने की दिशा में ध्यान दें। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस मुद्दे पर बोलते हुए डब्ल्यूएचओ की दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र की रीजनल डायरेक्टर डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा, 'लोगों के जीवन और आजीविका पर हमला कर यह महामारी उनमें डर, चिंता, डिप्रेशन और तनाव पैदा कर रही है। सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन और वायरस से जुड़ी जानकारी के लगातार बदलते रहने के चलते लोगों की मानसिक स्थिति प्रभावित हुई है, जिस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है।'

डॉ. खेत्रपाल ने कहा कि महामारी के लगातार फैलते जाने के बीच लोगों में मानसिक रोग से जुड़ी स्थितियों और आत्महत्या के संकेत देने वाला व्यवहार को पहले ही पहचान लेना महत्वपूर्ण है। उनके मुताबिक, कोविड-19 के संक्रमण से जुड़ा स्टिग्मा भी लोगों के दूसरे से अलग होने और डिप्रेशन में जाने की वजह बन सकता है। इसके अलावा, लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा का बढ़ना भी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ने वाले बड़े फैक्टर के रूप में सामने आ रहा है। ये हालात दक्षिण-पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में देखने को मिले हैं।

(और पढ़ें - कोविड-19: होम आइसोलेशन को लेकर केंद्र सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किए, जानें इनके बारे में)

डब्ल्यूएचओ से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि मानसिक रोग या समस्याओं (तनाव या अवसाद) के चलते हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। 15 से 29 साल की उम्र के युवाओं के खुदकुशी करने के पीछे सबसे बड़ा कारण मानसिक तनाव या अवसाद जैसी समस्याएं ही हैं। तथ्यात्मक आंकड़े यह भी बताते हैं कि किसी वयस्क व्यक्ति के आत्महत्या करने के बाद 20 और लोग खुद की जान लेने की कोशिश करते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दक्षिण-पूर्वी एशिया में हालात चिंताजनक हैं, क्योंकि दुनियाभर में आत्महत्या के 39 प्रतिशत मामले इसी क्षेत्र से दर्ज किए जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। आत्महत्या की कोशिश के बाद जिन लोगों की जान बच जाती है, उन पर और उनके परिवार पर एक तरह का कलंक लग जाता है और वे कई प्रकार से सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं। यह अपनेआप में एक बड़ी मानसिक समस्या का कारण बन सकता है, जो परिवारों, समुदायों आदि को बुरी तरह प्रभावित करता है। डॉ. खेत्रपाल का कहना है कि ऐसे में मानसिक रोग और इनके चलते आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए कई स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य अप्रोच अपनाए जाने की जरूरत है।

(और पढ़ें - ब्लड टेस्ट से कोविड-19 की गंभीरता का पहले ही पता लगाया जा सकता है: अध्ययन)

अमेरिका में 90 प्रतिशत वयस्क भावनात्मक रूप से पीड़ित
डॉ. खेत्रपाल ने जो मुद्दा उठाया है, उसे अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण के परिणामों से भी समझा जा सकता है। कोविड-19 महामारी के बीच यहां राष्ट्रीय स्तर पर किए गए इस सर्वे में 90 प्रतिशत प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे महामारी के चलते भावनात्मक परेशानी से गुजर रहे हैं। अमेरिका के तीन बड़े स्वास्थ्य संस्थानों की तरफ से किए गए इस सर्वे में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि आइसोलेशन, क्वारंटीन, बेरोजगारी और वायरस के खतरे की वजह से पैदा हुए दबावपूर्ण माहौल में लोग खुद को कैसे संभाल रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने मई के दूसरे मध्य में यह ऑनलाइन सर्वे किया था, जिसमें 1,500 लोगों ने भाग लिया था। उस समय अमेरिका में हर दिन कम से कम 20 हजार मरीजों की पुष्टि हो रही थी और 1,000 से ज्यादा लोग मारे जा रहे थे। ऐसे में ज्यादातर लोगों को मजबूरी या सरकारी आदेश के चलते घरों में कैद होकर रहना पड़ रहा था। गैर-जरूरी काम-धंधे और सेवाएं बंद थे और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी। जाहिर है इससे लोग मानसिक रूप से परेशान हुए, जो सर्वे के परिणामों में साफतौर पर निकल कर आया। पता चला कि 80 प्रतिशत सामान्य जीवन नहीं जी पाने की वजह से निराश थे। इतने ही प्रतिशत लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थे, जबकि 90 प्रतिशत लोग अपने करीबियों की सेहत को लेकर ज्यादा परेशान दिखे। ऐसा महामारी से पहले नहीं था।

(और पढ़ें - कोविड-19: तबीयत में सुधार नहीं होने पर कोरोना वायरस के सामान्य मरीजों को भी प्लाज्मा थेरेपी दी जा सकती है- स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय)

सर्वे के मुताबिक, लैटिन अमेरिकी और गैर-ईसाई अल्पसंख्यकों में भावनात्मक दुख काफी ज्यादा पाया गया है। इसके अलावा, जिन महिलाओं के बच्चों की उम्र 18 साल से कम है, उनमें एंग्जाइडी की समस्या उन महिलाओं से ज्यादा देखने को मिली है, जिनके बच्चे नहीं हैं। वहीं, जिन पुरुषों के बच्चों की उम्र 18 साल से कम है, उनमें डिप्रेशन के संकेत उन पुरुषों से ज्यादा पाए गए, जिनके या तो बच्चे नहीं हैं या उनकी उम्र 18 साल से ज्यादा है। इसके अलावा, 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में भी महामारी का भावनात्मक प्रभाव साफ दिखाई दिया। ऐसे में सर्वे करने वाले विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि कोविड-19 महामारी लोगों को लंबे वक्त के लिए मानसिक रूप से प्रभावित कर सकती है, जिसके कई नकारात्मक परिणाम होंगे। 


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: लोगों का मानसिक स्वास्थ्य हो रहा प्रभावित, दक्षिण एशिया को लेकर डब्ल्यूएचओ की चेतावनी, अमेरिका में 90 प्रतिशत लोग भावनात्मक रूप से दुखी है

ऐप पर पढ़ें