एक जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका 'फिजिक्स ऑफ फ्लुइड्स' में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को फैलने से रोकना है तो इसके फीकल-ओरल ट्रांसमिशन यानी मल के जरिये होने वाले प्रसार को भी ब्लॉक कर करना होगा। पत्रिका ने एक शोध के आधार पर कहा है कि टॉयलेट में फ्लश करते समय बोल में जो (जलीय) हलचल (टर्ब्युलेंस) होती है, वह इतनी सक्षम होती है कि उसके दबाव से वायरस कणों के जरिये बोल से बाहर हवा में निष्कासित होकर फैल सकते हैं।
शोध के लेखकों ने अपनी समीक्षा में लिखा है कि पांच मीटर प्रति सेकंट की रफ्तार से होने वाली फ्लशिंग 'निश्चित रूप से' हवा के कणों को टॉयलेट बोल से बाहर निकालने में सक्षम होती है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि इन कणों में 40 से 60 प्रतिशत कण ऐसे होते हैं, जो टर्ब्युलेंस के दबाव में टॉयलेट सीट से भी बाहर निकल कर बड़े एरिया में फैल सकते हैं। ये कण फ्लश किए जाने के 35 से 70 सेकंड बाद भी हवा में ऊपर की तरफ बढ़ सकते हैं।
(और पढ़ें - कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी धीरे-धीरे विकसित हो रही है: आईसीएमआर)
शोध में वायरस के मलीय प्रसार यानी फीकल-ओरल ट्रांसमिशन की विशेषताओं के आधार पर कहा गया है कि किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए जाने के चलते टॉयलेट बोल में वायरस बड़ी मात्रा में मौजूद हो सकते हैं, लिहाजा टॉयलेटों को संक्रमण का स्रोत माना जाना चाहिए। शोध के मुताबिक, टॉयलेट का सही और सुरक्षित तरीके से इस्तेमाल नहीं करने से ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ सकता है। इस बारे में शोध कहता है, 'एक कन्फर्म मरीज होम आइसोलेशन में रहता है, जहां बाथरूम (या टॉयलेट) के साझा इस्तेमाल को रोकना संभव नहीं होता। सार्वजिनक शौचालय में तो लोगों का असाधारण रूप से आना-जाना होता है। इस तरह कोई कन्फर्म मरीज बड़ी संख्या में संक्रमण फैलने का कारण बन सकता है। ऐसे में महामारी के संदर्भ में टॉयलेट की जांच करना अनिवार्य हो जाता है।'
फीकल-ओरल ट्रांसमिशन को लेकर क्या है भारत में राय?
कई मेडिकल विशेषज्ञों व शोधकर्ताओं का मानना है कि कोई संक्रामक बीमारी मल के जरिये भी दूसरे लोगों में फैल सकती है। इसका मतलब है कि दूषित खाने या पानी (जो बाद में मल और मूत्र के रूप में निकलते हैं) से वायरस का ट्रांसमिशन हो सकता है। सार्स-सीओवी-2 को लेकर कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह संक्रमित व्यक्ति के मल में भी पाया जा चुका है। लेकिन क्या यह इस तरह फैल भी सकता है, इस सवाल को लेकर पुख्ता जवाब नहीं मिलते हैं।
(और पढ़ें - यूके में डेक्सामेथासोन को कोविड-19 के इलाज के रूप में स्वीकृति मिली, क्या भारत में बढ़ेगी मांग?)
वहीं, भारत की बात करें तो यहां फीकल-ओरल ट्रांसमिशन को कोरोना वायरस के फैलने का प्रमुख कारण नहीं माना जाता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड-19 से जुड़े जिन सामान्य प्रश्नों को अपने हेल्थ नोट में शामिल किया है, उनके एक जवाब में कहा गया है कि फीकल-ओरल ट्रांसमिशन कोरोना वायरस संकट की प्रमुख विशेषताओं में शामिल नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने के वक्त मुंह से निकलने वाली पानी की सूक्ष्म बूंदों को वायरस के फैलने का प्रमुख कारण माना है।
क्या हैं शोध के मायने?
भारत में भले ही फीकल-ओरल ट्रांसमिशन को सार्स-सीओवी-2 के प्रसार का प्रमुख माध्यम न माना जा रहा हो, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब किसी कोरोना वायरस के इस तरह फैलने की बात सामने आई है। गौरतलब है कि 2003 में आए सार्स-सीओवी-1 और 2012 में आए मेर्स-सीओवी कोरोना वायरस के भी इसी तरह फैलने की जानकारी दी जाती है। वहीं, आंतों से जुड़े आम रोगाणु नोरोवायरस और रोटावायरस भी इसी तरह फैलते हैं। यही कारण है कि अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने फीकल-ओरल ट्रांसमिशन के रूप में वायरस के रूट को ब्लॉक करने की बात कही है ताकि विषाणु को आसपास के इलाकों में फैलने से रोका जा सके।
(और पढ़ें - कोविड-19: जापान के शोधकर्ताओं ने सीवर के पानी में कोरोना वायरस होने की पुष्टि की, जानें इसके क्या मायने हैं)
इसके लिए शोधकर्ताओं ने कुछ सुझाव दिए हैं, जो इस प्रकार हैं-
- फ्लश करते समय बोल को टॉयलेट सीट से ढक दिया जाए
- इस्तेमाल करने से पहले टॉयलेट सीट को अच्छे से साफ कर लिया जाए, क्योंकि उस पर वायरस हो सकता है
- कंपनियां ऐसे टॉयलेट बनाएं जो इस्तेमाल से पहले और बाद में लिड (ढक्कन) से अपनेआप ढक जाएं ताकि फ्लश करते समय कण ऊपर की तरफ न आएं
- टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद हाथों को अच्छे से धोएं, क्योंकि फ्लश बटन पर भी वायरस हो सकता है