भारत में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से जुड़े मामलों की संख्या बढ़ रही है। इससे होने वाली बीमारी कोविड-19 को रोकने के लिए सरकार लॉकडाउन की घोषणा कर चुकी है। बावजूद इसके देश में हर दिन संक्रमित मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिए सरकार हर तरह की संभावना को ध्यान में रखते हुए पहले से तैयारियां करने में लगी है। इसी के तहत वेंटिलेटर की जरूरत को महसूस किया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल में घोषणा की कि सरकार के तहत आने वाले एक उपक्रम और एक अन्य कंपनी मिल कर 40,000 वेंटिलेटर्स का निर्माण करेंगे।
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लेकिन क्या आप उन विशेष फीचर्स के बारे में जानते हैं, जिन्हें ध्यान में रख कर इन वेंटिलेटर्स को बनाया जा रहा है ताकि ये कोविड-18 के मरीजों के लिए ज्यादा से ज्यादा अनुकूल हो। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी साझा की है। इसमें उसने बताया है कि कोविड-19 के मरीजों के लिए बनाए जा रहे वेंटिलेटर्स में तकनीक से जुड़े कुछ आवश्यक और विशेष फीचर होंगे।
वेंटिलेटर मशीन में कंप्रेसर होना चाहिए
दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों से यह जानकारी साझा कर यह बताया है कि वह किस तरह के वेंटिलेटर्स बनवा रही है। उसने बताया कि वेंटिलेटर्स मशीन कंप्रेसर आधारित होनी चाहिए, यानी उनमें कंप्रेसर लगा होना चाहिए। दरअसल देश के अधिकांश अस्पतालों में सेंट्रलाइज ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं है। मतलब अस्पतालों में मरीजों को पाइप के जरिये ऑक्सीजन देने की सुविधा नहीं है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि कोरोना वायरस के मरीजों के लिए अलग से विशेष स्थानों पर चिकित्सा केंद्र बनाए जा रहे हैं। ऐसी जगहों पर भी रातोंरात ऑक्सीजन पाइपलाइन बिछाना संभव नहीं है। यह भी एक कारण है कि सरकार ने वेंटिलेटर मशीनों में कंप्रेसर की सुविधा देने बात कही है।
मशीन में इनवेसिव, गैर-इनवेसिव और सीपीएपी का फीचर हो
सरकार ने वेंटिलेटर मशीन को बहुउद्देशीय बनाने को कहा है। वेंटिलेटर मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं। पहला मकैनिकल वेंटिलेटर और दूसरा नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर। मकैनिकल वेंटिलेटर के ट्यूब को मरीज की सांस की नली से जोड़ दिया जाता है, जो फेफड़े तक ऑक्सीजन ले जाती है। इस ट्यूब की मदद से वेंटिलेटर मरीज के शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर खींचता है और ऑक्सीजन को अंदर भेजता है। इस वेंटिलेटर का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब मरीज की हालत ऐसी हो जाए कि वह खुद सांस लेने में सक्षम नहीं रहता।
दूसरे प्रकार, यानी नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर को सांस की नली से नहीं जोड़ा जाता है, बल्कि मुंह और नाक को कवर करते हुए एक मास्क लागाया जाता है। इस तरह ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। सरकार ने बताया कि इन वेंटिलेटर्स में कंटिन्युअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) मशीनों की भी सुविधा होनी चाहिए। ये मशीनें मरीज के श्वसन मार्ग को खुला रखने के लिए हल्का वायु दाब बनाए रखने का काम करती हैं ताकि हवा (ऑक्सीजन) का आना-जाना बना रहे।
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मशीन में ये विशेषताएं भी जरूरी
इनके अलावा केंद्र सरकार ने वेंटिलेटर मशीनों में और भी विशेष फीचर्स डाले जाने की बात कही है। सरकार के मुताबिक, मशीन में 200-600 एम टाइडल वॉल्यूम (ज्वारीय मात्रा) के साथ लंग (फेफड़े) मकैनिक्स डिस्प्ले होने चाहिए। इसके अलावा वेंटिलेटर मशीन में प्लैटो प्रेशर, ऑब्जर्वेशन फॉर पॉजिटिव एंड एक्सपोरोटरी प्रेशर (पीईईपी) और ऑक्सीजन देने वाली मशीन (जिसे कंसन्ट्रेशन कहते हैं) को मॉनिटर करने का फीचर होना चाहिए। इसके अलावा प्रेशर एंड वॉल्यूम कंट्रोल और पीएसपी की सुविधा भी होना आवश्यक है। इतना ही नहीं, वेंटिलेटर मशीन ऐसी हो जिसमें लगातार चार से पांच दिन तक काम करने की क्षमता हो।
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वेंटिलेटर क्या है?
वेंटिलेटर एक ऐसी मशीन है जो उन मरीजों की सांस लेने में मदद करती है, जिन्हें खुद किसी कारणवश सांस ले पाने की स्थिति में नहीं होते। वेंटिलेटर के लिए अलग नामों का इस्तेमाल होता है, जैसे- ब्रीथिंग मशीन या रेस्पिरेटर। आम लोगों की भाषा में इसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर किसी व्यक्ति की सेहत गंभीर रूप से बिगड़ जाने पर किया जाता है। वेंटिलेटर्स को अस्पतालों के आईसीयू वॉर्ड में रखा जाता है।