कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने की तैयारियों में जब भी सरकारों की तरफ से जल्दबाजी दिखाई जाती है तो मेडिकल क्षेत्र के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इसकी आलोचना करते हैं। वे तर्क देते हैं कि एक वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया तीन प्रमुख चरणों से गुजरती हुई सालोंसाल चलती है। हालांकि कोरोना वायरस की काट ढूंढने के प्रयास में यह काम काफी तेजी से हुआ है। इसके बावजूद वैक्सीन को जल्दी से जल्दी तैयार करने की हड़बड़ी सरकारों और उनके प्रशासन में दिखती रही है। इसकी ताजा मिसाल अमेरिका है, जहां की शीर्ष ड्रग एजेंसी एफडीए ने कोविड-19 वैक्सीन को अंतिम और निर्णायक ट्रायलों के परिणाम आने से पहले आपातकालीन अप्रूवल देने के संकेत दिए हैं। इसके पीछे वहां की अंदरूनी राजनीति को जिम्मेदार बताया जा रहा है। 

लेकिन यही जल्दबाजी वैज्ञानिक दिखाने लगें तो हैरानी होती है। वहीं, अगर वैज्ञानिक अपना सब्र तोड़ते हुए वैक्सीन के अप्रूव हुए बिना ही उसे खुद को लगाने लगें तो यह बात मेडिकल क्षेत्र के लोगों के लिए डराने वाली बन जाती है। हाल के महीनों में ऐसे कई वाकये सामने आए हैं। अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में ऐसे कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कोविड-19 की वैक्सीन बना रहे वैज्ञानिकों का धैर्य टूट गया और उन्होंने वैक्सीन के ट्रायल होने से पहले ही उसे खुद ही लगा लिया। मेडिकल विशेषज्ञ इसे डीआईवाई (डू इट यॉरसेल्फ) वैक्सीनेशन कहते हैं। यानी अपनी बनाई वैक्सीन को खुद ही लगा लेना।

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इस सिलसिले में अखबार ने अप्रैल की एक घटना की रिपोर्ट दी है। उस समय तक कोरोना वायरस की किसी भी वैक्सीन का ट्रायल नहीं किया गया था। लेकिन अमेरिका के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट इलाके में जॉनी स्टाइन नाम का एक बायोलॉजिस्ट न सिर्फ खुद को पांच बार वैक्सीनेट कर चुका था, बल्कि खुद से बनाए 'कोविड टीके' को दर्जनों लोगों को लगा चुका था। एनवाईटी के मुताबिक, जॉनी स्टाइन अमेरिका के सिऐटल में एंटीबॉडी से जुड़े शोध करने वाली एक कंपनी नॉर्थ कोस्ट बायोलॉजिक्स चलाता है। अप्रैल में पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के मेयर और जॉनी के दोस्त फरहाद गैटन ने उसे डीआईवाई वैक्सीनेशन के लिए आमंत्रित किया। मेयर से हुई बातचीत में स्टाइन ने कहा कि वह खुद को पांच बार टीका लगा चुका है और कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी प्राप्त कर चुका है। इस पर फरहाद गैटन ने खुशी जाहिर की। 

इस बारे में जब मेयर फरहाद के जानकारों को पता चला तो उन्होंने जॉनी स्टाइन के दावों पर शक जाहिर किया। लेकिन मेयर ने उन सभी की आवाज को दबा दिया और अपने मित्र जॉनी के दावे का बचाव किया, जो खुद को 'अगड़ी पंक्ति का फार्मास्यूटिकल साइंटिस्ट' बता रहा था। बाद में इलाके के अन्य लोगों ने भी मेयर के इस फैसले पर चिंताएं जाहिर कीं तो जॉनी स्टाइन ने उनके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया। इसके बाद वॉशिंगटन के अटॉर्नी जनरल ने पैसिफिक नॉर्थवेस्ट के मेयर को बहकाने और अपनी अप्रमाणित वैक्सीन 30 लोगों को लगाने के आरोप में जॉनी स्टाइन के खिलाफ केस दायर किया। उस पर 400 डॉलर का जुर्माना लगा और अमेरिका की शीर्ष ड्रग एजेंसी एफडीए ने जॉनी को चेतावनी भरा पत्र भेजकर कहा कि वह लोगों को भटकाना बंद करे।

बतौर वैज्ञानिक वैक्सीन के लिए जॉनी स्टाइन ने जो तरीका अपनाया, वह सही नहीं था। लेकिन कोविड-19 को खत्म करने के लिए बिना अप्रूवल वाली वैक्सीन खुद को लगाने वाले वे अकेले वैज्ञानिक नहीं हैं। एनवाईटी ने बताया है कि दुनियाभर में ऐसे मामले सामने आए हैं, जब वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस से बचने के लिए न सिर्फ स्वयं को वैक्सीन लगाई, बल्कि अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और वैक्सीन में रुचि दिखाने वाले लोगों को भी लगा डाली। इन वैज्ञानिकों ने किसी जल्दबाजी या बेसब्री में ऐसा नहीं किया, बल्कि नियोजित तरीके से सोच-समझकर किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 के इलाज रूप में डीआईवाई वैक्सीनेशन के मामले में सबसे अधिक प्रभावशाली प्रयास रैडवैक (रैपिड डेप्लॉयमेंट वैक्सीन कोलेबोरेटिव) मिशन के तहत किया गया है। इस मिशन का मकसद कोविड-19 की वैक्सीन को तेजी से विकसित करना है। कोई 23 वैज्ञानिकों के इस समूह को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध आनुवंशिकी विज्ञानी जॉर्ज चर्च का भी समर्थन है। वे खुद इन 23 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। हालांकि उन्होंने साफ कहा है कि यह काम हार्वर्ड कैंपस में नहीं हो रहा है। ट्रायल से पहले ही खुद को कोविड वैक्सीन लगाने वाले वैज्ञानिकों का एक और ग्रुप है, जिसके प्रोजेक्ट का नाम है कोरोनोप। इस कार्यक्रम के बारे में किसी को जानकारी नहीं है कि इसमें कौन-कौन से वैज्ञानिक शामिल हैं। एनवाईटी ने एक सूत्र के हवाले से बताया है कि इस ग्रुप के वैज्ञानिक डीआईवाई वैक्सीन लगा रहे हैं। वे एफडीए और उसके अधिकारियों की जानकारी में आकर किसी मुसीबत में नहीं फंसना चाहते, इसीलिए अपनी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं।

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डीआईवाई वैक्सीनेशन के समर्थक इन वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 का दौर अनोखा है, इसलिए इससे निपटने के प्रयास भी अनोखे होने चाहिए। इसी विचार से प्रेरित ये वैज्ञानिक वैक्सीन को अपनेआप पर आजमा रहे हैं। उनका मानना है कि अगर वैज्ञानिकों के पास स्वयं ही वैक्सीन तैयार करके उसे खुद पर आजमाने की बुद्धिमत्ता और साहस है तो उन्हें ऐसा करना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि जब तक उनके दावों का आंकलन किया जाता है, तब तक बाकी लोग भी उनके अनुभव का फायदा उठा सकते हैं।

उधर, आलोचकों का कहना है कि इन वैज्ञानिकों का इरादा कितना ही अच्छा क्यों न हो, लेकिन वे अपने इस प्रयास से कुछ भी काम की चीज नहीं सीख पाएंगे, क्योंकि उनकी वैक्सीनों के वास्तविक रैंडमाइज्ड और प्लसीबो-कंट्रोल्ड अध्ययन हुए ही नहीं हैं। इन विशेषज्ञों की राय है कि इस तरह वैक्सीन लगाने से नुकसान और होगा, चाहे वो गंभीर इम्यून रिएक्शन हो या अन्य प्रकार के साइड इफेक्ट्स और या फिर वैक्सीन से सुरक्षित होने का झूठा विश्वास।

कुछ जानकारों मानते हैं कि डीआईवाई वैक्सीन के लिए जो वैज्ञानिक उत्साहित हैं, वे इसे केवल अपने तक ही सीमित रखें, बाकी लोगों को इसमें शामिल न करें। प्रतिष्ठित जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के बर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ बायोएथिक्स के निदेशक जेफ्री कान कहते हैं, '(वैक्सीन) खुद को लगाइए। कोई इस बारे और कुछ नहीं कर सकता और न ही करना चाहिए। लेकिन जब आप दूसरों को एक अप्रमाणित वैक्सीन लगाने के लिए प्रेरित करते हैं तो आप फिर पुराने समय की नीमहकीमी की तरफ चले जाते हैं।' जेफ्री के ऐसा कहने का मतलब दवाओं को बड़े दावों वाले भ्रामक वादों के साथ बेचने की प्रवृत्ति से है।

बहरहाल, आलोचकों के बयानों से बेफिक्र डीआईवाई वैक्सीनेशन के समर्थक वैज्ञानिक अपने प्रयास में लगे हुए हैं। रैडवैक प्रोजेक्ट से जुड़ी वैक्सीन को खुद ही लगाने वाले वैज्ञानिकों का प्रयास जॉनी स्टाइन के तौर-तरीकों से अलग है। यहां बकायदा दस्तावेजों के जरिये यह समझाने की कोशिश की गई है कि डीआईवाई वैक्सीनेशन किस तरह काम करता है और इसे खुद पर अप्लाई करने वाले लोगों को वैक्सीन किस तरह लेनी है। इस शोधपत्र को कुछ दूसरे वैज्ञानिक, जो रैडवैक में शामिल नहीं हैं, प्रभावशाली बताते हैं।

लेकिन समस्या यह है कि जॉनी स्टाइन और रैडवैक प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों की प्रेरणा एक जैसी मालूम होती है। मार्च महीने में जब कोविड-19 ने दुनियाभर में फैलना शुरू किया तो अमेरिका के बॉस्टन के जीनोम साइंटिस्ट प्रेस्टन एस्टेप ने कुछ केमिस्टों, जीवविज्ञानियों, प्रोफेसरों और डॉक्टरों को इमेल किया। उन्होंने उनसे पूछा कि क्या उनमें से कोई खुद की वैक्सीन बनाने में रुचि रखता है। जल्दी ही ऐसे वैज्ञानिकों ने पेप्टाइट वैक्सीन के लिए फॉर्मूला तैयार कर लिया। इसकी मदद से एक लिक्विड के रूप में ऐसी वैक्सीन तैयार की गई, जिसे नाक के जरिये लिया जा सकता था। इस आइडिया को लेकर डॉ. एस्टेप कहता हैं, 'यह बहुत आसान है। आपको पांच इनग्रेडिएंट को मिक्स करना होता है। यह काम किसी फिजिशन के ऑफिस में किया जा सकता है।'

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एनवाईटी ने बताया है कि वैक्सीन को बनाने में वायरल प्रोटीन के छोटे-छोटे अंशों (पेप्टाइड) का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें इन वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन ऑर्डर करके मंगाया था। वैक्सीन लगाने के बाद अगर सब ठीक जाता है तो ये पेप्टाइड इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने लायक बना देते हैं, भले ही वैक्सीन लगाते समय उनमें वायरस न हो। डॉ. एस्टेप और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने अप्रैल में एक लैब में यह वैक्सीन तैयार कर खुद की नाक में लगाई थी। उनके सहायक और मार्ग दर्शक डॉ. जॉर्ज चर्च ने भी सोशल डिस्टेंसिंग के समय अपने बाथरूम में इस वैक्सीन को खुद ही लगा लिया था। वहीं, डॉ. एस्टेप ने अपने 23 वर्षीय बेटे को भी यह वैक्सीन लगाई और सहयोगियों के परिवारों के सदस्यों से भी इसे साझा किया।

दिलचस्प बात यह है कि हल्के सिरदर्द और नाक बंद होने के अलावा किसी ने भी कोई गंभीर साइड इफेक्ट होने की शिकायत नहीं की है। डॉ. एस्टेप बताते हैं कि अप्रैल से अब तक वे आठ बार इस वैक्सीन को अपनी नाक में लगा चुके हैं। वे खुद के लिए और रैडवैक प्रोजेक्ट के अपने साथियों के लिए कहते हैं, 'हम जानवर हैं।' एस्टेप ने बताया कि अमेरिका समेत स्वीडन, जर्मनी, चीन और ब्रिटेन करीब 30 वैज्ञानिक इस वैक्सीन को ले चुके हैं। ब्राजील में एक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर भी इसे बनाने और लोगों में इसको मुफ्त बांटने पर विचार कर रहा है। वहीं, उनके मेन्टर डॉ. चर्च कहते हैं कि वे पारंपरिक प्रक्रिया का सम्मान करते हैं, लेकिन प्री-रिसर्च (अध्ययन के बिना ही वैक्सीन लगाने का प्रयास) के लिए भी गुंजाइश होनी चाहिए।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: वैज्ञानिकों में बढ़ रहा 'डीआईवाई' वैक्सीनेशन का चलन, वैक्सीन बनाकर बिना ट्रायल के खुद को ही लगाने में लगे, जानें क्या हैं उनके दावे है

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