नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को समझने की कोशिशों के बीच एक नई जानकारी सामने आई है। बीते हफ्ते आए एक शोध के मुताबिक, नया कोरोना वायरस सबसे पहले नाक में मौजूद दो सेल्स या कोशिकाओं पर हमला करता है। उल्लेखनीय है कि सार्स-सीओवी-2 अपनी सतह पर मौजूद 'स्पाइक प्रोटीन' की मदद से एसीई2 कोशिका (फेफड़ों और ब्लड सर्कुलेशन के लिए एक जरूरी रिसेप्टर) में घुस कर शरीर में पहले से मौजूद 'टीएमपीआरएसएस2' नाम के एक अन्य प्रोटीन के जरिये अपनी तादाद बढ़ाता यानी रीप्रोड्यूसिंग करता है। अब नए शोध में उन कोशिकाओं की पहचान की गई है, जिन्हें नया कोरोना वायरस मानव शरीर में प्रवेश के बाद सबसे पहले अपना शिकार बनाता है।
शोध के मुताबिक, नाक में मौजूद 'गोबलेट सेल्स' (कलश कोशिकाएं) और 'सिलिएटिड सेल्स' (पक्ष्माभी कोशिकाएं) से सार्स-सीओवी-2 इन्सानी शरीर को संक्रमित करना शुरू करता है। स्वास्थ्य पत्रिका 'नेचर मेडिसिन' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, युनाइटेड किंगडम स्थित वेलकॉम सैंगर इंस्टीट्यूट, नीदरलैंड के यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ग्रॉनिन्जन और फ्रांस स्थित यूनिवर्सिटी कोते दे आजोर और सीएनआरएस के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के आधार पर यह जानकारी दी है, जो कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 के इलाज में काफी मददगार हो सकती है।
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गोबलेट सेल्स (नाक के) अंगों की सतहों पर कफ यानी बलगम बनाने का काम करती हैं। ये कोशिकाएं श्वसन मार्ग, आंतों से जुड़े हिस्सों और ऊपरी पलकों के पास पाई जाती हैं। वहीं, सिलिएटिड सेल्स दिखने में बाल जैसी होती हैं। ये अलग-अलग अंगों की सतहों पर होती हैं और कफ या धूल को साफ कर उन्हें गले के जरिये शरीर से बाहर निकालने का काम करती हैं।
क्या कहता है शोध?
शोध में वैज्ञानिकों ने उन अंगों पर गौर किया, जहां एसीआई2 और टीएमपीआरएसएस2 काफी सक्रिय होते हैं। इसके लिए उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म की मदद से सभी मानव कोशिकाओं का एक विस्तृत मैप तैयार करवाया। इसके बाद ऐसे लोगों के अलग-अलग 20 टिशूज या ऊतकों का डेटाबेस इकट्ठा किया गया, जो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे। अध्ययन में शामिल इन टिशूज में फेफड़ों, नासिका गुहा, आंत, आंख, हृदय, किडनी और लिवर कोशिकाओं से लिए गए नमूने शामिल थे।
शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि इन ऊतकों में एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 दोनों ही थे, लेकिन एसीई2 की मौजूदगी तुलनात्मक रूप से कम थी। विश्लेषण के तहत वैज्ञानिकों ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि संक्रमण की शुरुआती स्टेज में वायरल के शरीर में प्रवेश के लिए टीएमसीआरएसएस2 की भूमिका ज्यादा हो सकती है। शोध के प्रमुख लेखक डॉ. वराडॉन सुंगनैक ने बताया, 'हमने नाक के अलावा अलग-अलग अंगों में एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 की मौजूदगी पाई। इसके बाद हमने जाना कि बलगम बनाने वाली गोबलेट सेल्स और नाक में मौजूद सिलिएडिट सेल्स में कोविड-19 के (स्पाइक) प्रोटीन का स्तर सबसे ज्यादा होता है। इससे यह पता चलता है कि संक्रमण की शुरुआती स्टेज के पीछे इन सेल्स के संक्रमित होने का हाथ हो सकता है।'
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वैज्ञानिकों ने आंखों के सफेद हिस्से और आंतों से जुड़े मार्ग में भी इन दोनों प्रोटीनों की मौजूदगी पाई। इससे उन्होंने अनुमान लगाया कि संभवतः आंखों और टियर डक्ट (अश्रु वाहिनी) के अलावा मल के जरिये भी कोरोना संक्रमण फैल सकता है। हालांकि यह संभावना जताते हुए शोधकर्ताओं ने पहले से मान्य कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया है-
- नाक की जिन दो कोशिकाओं में कोरोना वायरस के प्रोटीन सबसे ज्यादा पाए जाते हैं, वे ऐसी जगह मौजूद होती हैं जहां वायरस के पहुंचने की संभावना काफी ज्यादा है
- नाक की कोशिकाओं में एसीई2 का उस समय विस्तार होता है, जब सेल्स के संक्रमण से लड़ते हुए प्रतिरक्षा वंशाणु सक्रिय हो जाते हैं
- कोरोना इन्फेक्शन संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकते समय निकलने वाली पानी की छोटी-छोटी बूंदों के जरिये फैलता है