अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड साइंसेज को बड़ा झटका लगा है। कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल की जा रही उसकी दवा रेमडेसिवीर एक बड़े ट्रायल में फेल हो गई है। इस ट्रायल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्पॉन्सर किया था, जिसमें 30 देशों के 11 हजार से ज्यादा लोगों को शामिल किया गया था। ट्रायल से जुड़े अध्ययन के परिणाम कहते हैं कि रेमडेसिवीर ड्रग कोविड-19 के मरीजों को मरने से बचाने में सक्षम नहीं है। गुरुवार को यह जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित की गई है। फिलहाल किसी मेडिकल जर्नल ने परिणामों की समीक्षा नहीं की है। हालांकि विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई हैं। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में यूनिवर्सिटी ऑफ एल्बर्टा के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. आइलन स्कॉर्ट्ज ने कहा है, 'अब साफ हो गया है कि (रेमडेसिवीर से कोविड-19 की) मृत्यु दर कम करने में कोई मदद नहीं मिलती।'
हालांकि सभी विशेषज्ञ एक जैसी प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। कुछ ने एहतियाती टिप्पणी करते हुए कहा है कि परिणामों के आधार पर दवा को सीधे-सीधे असमर्थ बताना जल्दबाजी होगी। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. पीटर चिन-होंग कहते हैं, 'इस तरह के बड़े ट्रायल में, जिसे कई देशों के अलग-अलग प्रकार के हेल्थ केयर सिस्टम में किया गया, संभव है प्रोटोकॉल के तहत ट्रीटमेंट न किया गया हो, जिससे विश्लेषण करना मुश्किल हो सकता है। इलाज में कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। दवा केवल इसका एक हिस्सा है।'
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रेमडेसिवीर को मूल रूप से इबोला वायरस और हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए तैयार किया गया था। यह दवा विषाणुओं के वायरल जीन्स को जाम करके उनके रीप्रॉडक्शन में अवरोध उत्पन्न करने का काम करती है। अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए ने बीती एक मई को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए इस दवा के इस्तेमाल को आपातकालीन अप्रूवल दिया था। यह मंजूरी अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के उस ट्रायल के बाद दी गई थी, जिसमें रेमडेसिवीर को कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों को तेजी से रिकवर करने में कारगर पाया गया था। हालांकि उस समय भी इस दवा को कोविड-19 की मृत्यु दर को कम करने में असरदार नहीं पाया गया था। तब कई जानकारों ने एफडीए के अप्रूवल पर हैरानी जताई थी। शीर्ष अमेरिकी संक्रामक रोगी विशेषज्ञ एंथनी फाउची ने भी माना था कि रेमडेसिवीर वह दवा नहीं है, जिससे कोरोना संक्रमण का इलाज हो सकता है।
हालांकि गिलियड साइंसेज ने अपनी दवा का बचाव किया है। उसने कहा है कि बीती आठ अक्टूबर को मेडिकल पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) ने रेमडेसिवीर को लेकर जो अंतिम विश्लेषण प्रकाशित किया, उससे दवा से कोविड मृत्यु दर के कम होने के ट्रेंड का पता चलता है। कंपनी ने डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के निष्कर्षों पर भी सवाल उठाए हैं। उसने कहा है कि डब्ल्यूएचओ के ट्रायल का डिजाइन कुछ इस तरह का था कि जिसके की उसमें कई उल्लेखनीय विविधताएं थीं। गिलियड का तर्क है कि इस अध्ययन से किसी भी प्रकार के निष्कर्ष निकालना मुश्किल है।
बहरहाल, डब्ल्यूएचओ से समर्थित इस अध्ययन में दुनिया के 30 देशों के 405 अस्पतालों में 11 हजार 300 कोविड-19 मरीजों को शामिल किया गया था। इन लोगों को चार दवाएं अलग-अलग या कॉम्बिनेशन में दी गईं। इन सिंगल या कॉम्बिनेशन ड्रग्स में रेमडेसिवीर, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, लोपिनावीर, इंटरफेरन या इंटरफेरन-लोपिनावीर कॉम्बिनेशन शामिल थे। दवाओं के असर की तुलना करने के लिए करीब 4,100 प्रतिभागियों को इनमें से कोई भी ट्रीटमेंट नहीं दिया गया। परिणाम में पता चला कि इन चारों दवाओं या इनके कॉम्बिनेशन में से किसी से भी कोरोना वायरस की मृत्यु दर, वेंटिलेशन पर जाने की संभावना या अस्पताल में रहने की अवधि, बिना ड्रग ट्रीटमेंट वाले मरीजों की तुलना में कम नहीं हुई।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर कई अध्ययन सामने आ चुके हैं, जिनमें इस दवा को कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने और इसका इलाज करने दोनों में अक्षम पाया गया है। इंटरफेरन और लोपिनावीर को लेकर ज्यादा आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए हैं। अब डब्ल्यूएचओ के अध्ययन में ये दवाएं भी कोविड-19 के इलाज में कारगर नहीं पाई गई हैं। लेकिन रेमडेसिवीर को लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ का अभी भी मानना है कि अगर इस दवा को कोरोना संक्रमण की शुरुआत में ही दे दिया जाए तो बीमारी के खिलाफ इसके फायदे मिल सकते हैं। इन विशेषज्ञों का तर्क है कि कोविड-19 होने पर इम्यून सिस्टम में जरूरत से ज्यादा अतिसक्रियता संक्रमण होने के कई दिन बाद पैदा होती है। अगर इससे पहले रेमडेसिवीर या ऐसी ही कोई एंटीवायरल दवा दी जाए तो वायरस को पर्याप्त मात्रा में कम कर इम्यून सिस्टम को अतिसक्रिय होने से रोका जा सकता है।