आर्थराइटिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा टोसिलिजुमैब को कोविड-19 के इलाज में 'अप्रभावी' पाया गया है। अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के मुताबिक, इस दवा को बनाने वाली कंपनी रॉश के प्रमोटरों ने एक प्रेस रिलीज जारी कर यह जानकारी दी है। गौरतलब है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने इस दवा को कोरोना वायरस के मरीजों को दिए जाने का सुझाव दिया था। लेकिन अब दवा के निर्माताओं का कहना है कि यह दवा निमोनिया को कम करने में असरदार नहीं पाई गई है। बता दें कि निमोनिया कोविड-19 बीमारी के प्रमुख लक्षणों में से एक है।
यह कभी साबित नहीं हुआ था कि कोविड-19 के सबसे आम लक्षणों में से एक निमोनिया को कम करने में टोसिलिजुमैब कारगर है। लेकिन बीमारी का कोई इलाज उपलब्ध नहीं होने के चलते और मरीजों की संख्या को बढ़ते देख दुनियाभर के कई देशों में इस दवा का इस्तेमाल किया गया। भारत में भी इसकी मांग उठी थी। गुजरात जैसे राज्यों में यह दवा इतनी बिकी की इसके फेक वर्जन भी बेचे जाने लगे थे। वहीं, ब्लैकमार्केटिंग करने वाले दवा को डेढ़ लाख रुपये तक की कीमत पर बेच रहे थे। लेकिन अब दवा के बेअसर होने की पुष्टि की गई है।
बाजार में टोसिलिजुमैब एक्टेम्रा/रोएक्टर्मा ब्रैंड से बेची जाती है। अमेरिका की शीर्ष ड्रग एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने मार्च महीने में दवा को पहली बार रैंडमाइज तरीके से किए गए एक बड़े ट्रायल में आजमाने के लिए इस्तेमाल किए जाने की अनुमति दी थी। इस ट्रायल का मकसद यह जानना था कि टोसिलिजुमैब से कोविड-19 के मरीजों की हालत में सुधार होता है अथवा नहीं या उनकी मृत्यु दर में किसी तरह की कमी होती है या नहीं। इसके लिए परीक्षण में निमोनिया के लक्षण वाले कोविड-19 बीमारी के करीब 450 मरीजों को शामिल किया गया था। चार हफ्तों के ट्रायल में पता चला कि टोसिलिजुमैब और सामान्य उपचार दिए जाने के दौरान मारे गए मरीजों की संख्या में कोई अंतर नहीं था। केवल एक अंतर यह दिखा कि ठीक होने वाले मरीजों में से जिनको टोसिलिजुमैब दी गई थी, वे अस्पताल से उन मरीजों से थोड़ा जल्दी डिस्चार्ज हो गए, जिनका इलाज सामान्य तरीके से किया गया था।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टोसिलिजुमैब से मरीजों की हालत में कोई सुधार होने के प्रमाण देखने को मिले। ट्रायल से जुड़े तथ्य बताते हैं कि इस ड्रग से मरीजों के वेंटिलटर पर जाने की संभावना कम नहीं हुई और न ही उन पर निर्भरता में कोई कमी देखी गई। अब चूंकि यह साफ हो गया है कि दवा कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज करने में सक्षम नहीं है, ऐसे में रॉश कंपनी के चीफ मेडिकल ऑफिसर लेवी गेरावे ने बयान जारी कर कहा है, 'पूरी दुनिया में लोग कोविड-19 के प्रभावी उपचार का इंतजार कर रहे हैं। हमें निराशा है कि 'कोवाक्टा' ट्रायल में दवा के फायदे देखने को नहीं मिले। हम आगे और साक्ष्य मुहैता कराते रहेंगे ताकि कोविड-19 से जुड़े निमोनिया के संबंध में एक्टेम्रा/रोएक्टर्मा को पूरी तरह समझा जा सके।'
गौरतलब है कि हाल ही में बायोकॉन द्वारा निर्मित आइटोलीजुमैब को कोविड-19 के इलाज से जुड़े केंद्र सरकार के क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल में शामिल नहीं करने का फैसला किया था। बीते हफ्ते आई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित नेशनल टास्क फोर्स के एक अधिकारी का कहना था कि एनटीएफ के ज्यादातर सदस्यों का मत है कि (कोरोना वायरस के खिलाफ) आइटोलीजुमैब के (असर के) इतने पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि इसे कोविड-19 के क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल में शामिल किया जाए। अब देखना होगा कि टोसिलिजुमैब के संबंध में एनटीएफ या केंद्र सरकार के स्तर पर क्या कदम उठाए जाते हैं।