ऊपर से देखने में भले ही बच्चे हंसमुख नजर आएं लेकिन जरा सोचिए, बच्चों के स्कूल बंद हैं, वे घर से बाहर नहीं जा पा रहे हैं, अपने दोस्तों से नहीं मिल पा रहे हैं, चारों तरफ पैनिक की स्थिति है। ऐसे में वयस्कों की ही तरह बच्चों के मन में भी कई तरह के सवाल हैं और बच्चे भी तनाव और चिंता महसूस कर रहे हैं। बच्चे, अपने दोस्तों, क्लासमेट्स और टीचर्स से दूर हैं, उन्हें घर से बाहर जाकर खेलने का समय नहीं मिल पा रहा है, इस वजह से बच्चों के मन में भ्रम और बेबसी की स्थिति हो सकती है। इन सारी चीजों का बच्चे के मूड, एनर्जी लेवल और किसी भी तरह की ऐक्टिविटी में हिस्सा लेने की उसकी इच्छा पर नकारात्मक रूप से पड़ता है। इस तरह की परिस्थिति में हो सकता है कि बच्चे, पैरंट्स की बात न सुनें और इस वजह से कई बार माता-पिता और बच्चे के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाए।

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इसमें कोई शक नहीं कि यह समय माता-पिता के लिए काफी मुश्किलों भरा समय है। उन्हें घर से ऑफिस का काम करना है, घर की साफ-सफाई से लेकर खाना बनाने तक सारे काम खुद से करने हैं और साथ में परिवार और बच्चों की देखभाल भी करनी है। इतना ही नहीं आने वाले समय से जुड़ी अनिश्चितता की वजह से स्ट्रेस का लेवल काफी बढ़ा हुआ है और इसका सीधा असर बच्चों के साथ आपके परस्पर रिश्तों पर भी पड़ता है।

ऐसे में कोविड-19 महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन के इस समय पैरंट्स, बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं, इस बारे में हम आपको बता रहे हैं -

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1. बच्चों के साथ-साथ खुद के साथ भी अच्छी तरह से पेश आना

मौजूदा समय में जो भी मुश्किलें आ रही हैं उसे उसी तरह से स्वीकार करना बेहद जरूरी है। इस समय सभी लोग जिसमें बच्चे भी शामिल हैं भावनात्मक रूप से अतिसंवेदनशीलता महसूस कर रहे हैं। ऐसे समय में बेहद जरूरी है कि आप बच्चों के साथ-साथ खुद के साथ भी अच्छी तरह से पेश आएं। खुद को और बच्चों को भी पूरा समय दें ताकि वे परिवर्तन के इस समय के साथ खुद को अच्छी तरह से ढाल पाएं।

2. बच्चे के साथ संवाद करने के लिए तैयार रहें

अगर किसी तरह की कोई बात है, कोई मुद्दा है तो उस पर खुलकर बात करने के लिए तैयार रहें। अगर बच्चे आपके पास सवाल लेकर न भी आएं तब भी यह पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार रहें। आप बच्चों से इस तरह के सवाल पूछ सकते हैं, 'तुम इस वक्त कई तरह के बदलाव देख रहे होगे। क्या इससे जुड़ा कोई सवाल तूम पूछना चाहते हो या फिर कोई बात जो शेयर करना चाहते हो? बच्चों को इतनी आजादी दें कि वह खुद को अभिव्यक्त कर पाएं। ऐसा करने से बच्चे के अंदर सुरक्षा और आश्वासन की भावना विकसित होगी।

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3. भावनाओं की अभिव्यक्ति का रास्ता खोजें

न चाहते हुए भी हम सब जाने-अनजाने अपनी चिंताएं और तनाव, बच्चों तक ट्रांसफर कर देते हैं। लिहाजा बेहद जरूरी है कि आप अपनी भावनाएं डर, चिंता, पैनिक इन सबको स्वीकार करें। ऐसे समय में ऐसी भावनाएं मन में आना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन बेहद जरूरी है कि आप इन भावनाओं को बढ़ने न दें। लिहाजा अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए कोई रास्ता खोजें। आप ब्रीदिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं, म्यूजिक सुन सकते हैं, कहानियां पढ़ सकते हैं, घर में ही छोटा सा गार्डन बना सकते हैं। बच्चे के अंदर भावनात्मक लचीलापन बना रहे इसके लिए आप बच्चे से कहें कि वह ड्रॉइंग करें, कलरिंग करें, दोस्तों को चिट्ठियां लिखें। ऐसे करने से बच्चे व्यस्त भी रहेंगे और उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति भी हो पाएगी।

4. बच्चों के साथ समय बिताएं

जहां तक संभव हो बच्चों के साथ समय बिताएं। बच्चों की बातें, उनकी कहानियां सुनें और अपने अनुभव भी बच्चों के साथ शेयर करें। बच्चों को ये लगना चाहिए कि उनके साथ बात करते वक्त, उनके साथ खेलते वक्त आप भी उतने ही उत्साहित हैं जितने कि बच्चे हैं। नए-नए क्रिएटिव तरीके खोजें ताकि आप बच्चों को व्यस्त रख पाएं। इसके लिए आप आर्ट ऐंड क्राफ्ट का सहारा ले सकते हैं। इसके अलावा आप चाहें तो घर के छोटे-छोटे काम में बच्चों की मदद ले सकते हैं, जैसे- बर्तनों को उनकी जगह पर रखना, कपड़ो को तह लगाना, टेबल को सही करना, बेकिंग में आपकी मदद करना आदि। ऐसा करने से न सिर्फ बच्चों को खुशी मिलेगी बल्कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का भी अहसास होगा।

5. आपका नजरिया समस्या-समाधान वाला होना चाहिए

आपके सामने जो भी समस्याएं या मुश्किलें आ रही हैं उन्हें लेकर बहुत ज्यादा तनाव या चिंता में न आएं। आपके कंट्रोल में अगर कोई चीज है तो उस पर फोकस करें और आपके सामने जो समस्या खड़ी है उसका हल खोजने का प्रयास करें। जहां तक बच्चों की बात है, तो उन्हें भी घर से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं में बराबर भागीदार बनाएं। अगर आपको लग रहा है कि घर में कोई ऐसी छोटी-मोटी समस्या है जिसके बारे में आप बच्चों से बात कर सकते हैं तो बच्चों को भी उसमें शामिल करें और उनसे पूछें, तुम्हें क्या लगता है हमें यहां पर क्या करना चाहिए? इस बारे में तुम्हारे विचार क्या हैं? क्या तुम कोई हल बता सकते हो?

6. अपनी उम्मीदों और अपेक्षाओं में लचीलापन बनाए रखें

बच्चे, पूर्वानुमान और सामंजस्य के हिसाब से बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। अगर पैरंट्स होने के नाते आपको पता होगा आपको बच्चों से क्या और कैसी उम्मीदें रखनी है तो इससे बच्चों के अंदर भी एक सुरक्षा और आश्वासन की भावना विकसित होगी। इसके लिए आप चाहें तो बच्चों के लिए एक रूटीन बना सकते हैं ताकि पढ़ाई और खेल के बीच सामंजस्य बना रहे। अगर बच्चे आपकी बात मानते हैं, पॉजिटिव रिऐक्शन देते हैं तो उन्हें शाबासी दें और छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज कर दें। हो सकता है कि इस वक्त बच्चों का स्क्रीन टाइम यानी टीवी और विडियो देखने का समय बढ़ जाए क्योंकि आप भी अपनी ऑफिस मीटिंग्स और वर्क कॉल्स में व्यस्त हैं। लिहाजा नियमों को लेकर इस वक्त बच्चों के साथ बहुत ज्यादा सख्ती न दिखाएं। बच्चों से जुड़ी सभी क्रियाएं स्वस्थ और सुचारू ढंग से चलें इसके लिए बेहद जरूरी है कि आप अपने व्यवहार में फ्लेक्सिबिलिटी यानी लचीलापन लाएं।

7. टेक्नोलॉजी की मदद से बच्चों को उनके दोस्तों संग संपर्क में रखें

यह बेहद नैचरल सी बात है कि बच्चे अपने स्कूल की रुटीन, टीचर्स और क्लासमेट्स को मिस कर रहे हों। ऐसे में उनकी मदद करें कि वे अपने दोस्तों और क्लासमेट्स के साथ टेक्नोलॉजी की मदद से डिजिटली कनेक्ट हो पाएं या फिर आप चाहें तो उनकी टीचर के साथ कॉल मिलाकर बच्चों की बात करवा सकते हैं। यह वक्त तकनीक की दुनिया का सकारात्मक इस्तेमाल करने का है।

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इस मुश्किल के समय में जब आप एक साथ कई किरदार निभा रहे हैं, कई जिम्मेदारियां उठा रहे हैं, पैरंट होने के नाते बेहद जरूरी है कि आप अपनी भावनात्मक जरूरतों का ध्यान रखें। आपकी मानसिक स्थिति का असर ही आपके बच्चे की मानसिक स्थिति पर भी पड़ेगा। खुद पर और परिवार के सभी सदस्यों पर ध्यान दें ताकि घर में हंसी-खुशी और सकारात्मकता का माहौल बना रहे।

महामारी का सामना करने के लिए अपने बच्चों को ऐसे करें तैयार के डॉक्टर
Dr. Sumit Kumar.

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