कोविड-19 बीमारी के इलाज के लिए एक तरफ कई वैज्ञानिक नई वैक्सीन और दवा बनाने में लगे हुए हैं तो दूसरी तरफ कई अन्य वैज्ञानिक पहले से मौजूद दवाओं को इस बीमारी के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने लायक बनाने में लगे हुए हैं। इस सिलसिले में अब तक कई दवाओं के नाम सामने आ चुके हैं, जो पहले से किसी और बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल होती रही हैं और अब उनमें कुछ बदलाव शोधकर्ता कोविड-19 का उपचार करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दवाओं में एंटीमटीरियल ड्रग हाइड्रोक्सोक्लोरोक्वीन, इबोला की दवा रेमडेसिवीर, एंटीपैरासिटिक ड्रग आइवरमेक्टिन, जापानी फ्लू की दवा फेवीपिरावीर, डायबिटीज रोधी दवा मेटफॉर्मिन और एस्पिरिन सबसे ज्यादा चर्चा में रही हैं। अब इस सूची में तीन और दवाएं शामिल हो गई हैं। जानी-मानी मेडिकल व विज्ञान पत्रिका एसीएस फार्माकोलॉजी एंड ट्रांसलेशनल साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इन तीन दवाओं का जिक्र किया गया है। ये तीनों ड्रग्स हैं: ज्यूक्लोपेनथिक्सॉल, एमोडियाक्वीन और नेबीवोलोल।
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कैसे जानी इन ड्रग्स की क्षमता?
आमतौर पर पहले से बने किसी ड्रग को एक अन्य बीमारी के इलाज में इस्तेमाल करने के लिए वैज्ञानिक हाई थ्रूपुट स्क्रीनिंग (एचटीएस) नाम की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इस तकनीक में एक ऑटोमेटिड मशीन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी मदद से एक ही समय में हजारों से लाखों मेडिसिन का परीक्षण किया जा सकता है। जानकार बताते हैं कि एचटीएस के जरिये वैज्ञानिकों को दवा की टेस्टिंग के मामले में तेजी से प्रगति करने में मदद मिलती है। साथ ही, इससे परिणाम भी जल्दी ही कंप्यूटर पर उपलब्ध हो जाते हैं।
लेकिन कोविड-19 के उपचार के संबंध में जिन तीन दवाओं का ऊपर जिक्र किया गया है, उनसे जुड़े रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों ने लिगेंड-बेस्ड वर्चुअल स्क्रीनिंग (एलबीवीएस) मेथड का इस्तेमाल किया है। इस वर्चुअल स्क्रीनिंग मेथड की मदद से दो लिगेंड या दवाओं के बीच समानता सुनिश्चित की जाती है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को एलबीवीएस में बतौर टेंप्लेट इस्तेमाल किया और करीब 4,000 मान्यता प्राप्त दवाओं की स्क्रीनिंग की, जो इससे मिलती-जुलती थीं। इन दवाओं की रैंकिंग इस आधार पर की गई कि वे एचसीक्यू से कितनी मिलती हैं और उनका न्यूनतम ग्लोब-प्रोड (जीपी) स्कोर 0.34 है या नहीं। जीपी स्कोर से टेंप्लेट ड्रग और उस मॉलिक्यूल की समानता को मांपने में मदद मिलती है, जिसकी स्क्रीनिंग की जा रही होती है।
अध्ययन में पता चला है कि नौ ड्रग्स का जीपी स्कोर 0.34 से ज्यादा था। ये दवाएं थीं: ग्लाफेनिन, एमोडियाक्वीन, वोरिनॉस्टेट, ज्यूक्लोपेंथीक्सॉल, आइसोक्स्युप्राइन, नेबीवोलोल, एम्ब्रोक्सल, पैनोबाइनोस्टेट और प्रैकिनोस्टेट। अध्ययन की मानें तो टेस्ट ट्यूब एक्सपेरिमेंट में ज्यूक्लोपेनथिक्सॉल, एमोडियाक्वीन और नेबीवोलोल में सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ सबसे ज्यादा क्षमता दिखी है। परिणामों से पता चला कि एक्सपेरिमेंट के दौरान ज्यूक्लोपेनथिक्सॉल और एमोडियाक्वीन में एंटी-सार्स-सीओवी-2 एक्टिविटी दिखाई दी है, जिसकी तुलना क्लोरोक्वीन से की जा सकती है। नेबीवोलोल ने वायरस के खिलाफ मध्यम स्तर का एंटीवायरल इफेक्ट दिखाया, जो क्लोरोक्वीन की 40 प्रतिशत एंटीवायरल एक्टिविटी के बराबर था।
वहीं, एम्ब्रोक्सल ने क्लोरोक्वीन के 25 प्रतिशत एंटीवायरल एक्टिविटी के बराबर प्रतिक्रिया दिखाई। बाकी ड्रग्स में सार्स-सीओवी-2 को ब्लॉक करने की क्षमता नहीं दिखी। सभी दवाओं की जांच-पड़ताल और विश्लेषण के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ज्यूक्लोपेनथिक्सॉल (एंटी-साइकॉटिक ड्रग), एमोडियाक्वीन (एंटीमलेरियल ड्रग) और नेबीवोलोल (एंटीहाइपरटेंसिव ड्रग) नए कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है रेमडेसिवीर या फेवीपिरावीर के साथ मिश्रित करने पर ये दवाएं ज्यादा बेहतर परिणाम दें। उधर, मेडिकल विशेषज्ञों ने कहा है कि कोविड-19 के मरीजों के इलाज के संबंध में इन दवाओं का इस्तेमाल करने से पहले और अध्ययन करने की आवश्यकता है।
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