भारतीय दवा कंपनी सन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज (एसपीआई) ने कोविड-19 के मरीजों के क्लिनिकल ट्रायल के लिए ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) से एक दवा के इस्तेमाल की मंजूरी ले ली है। कंपनी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। एसपीआई ने बताया कि उसने 'नैफमोस्टेट मेसिलेट' नाम की दवा को कोरोना वायरस के मरीजों पर आजमाने की अनुमति ली है। यह जापान में अग्नाशयशोथ या पैन्क्रियाटाइटिस के गंभीर लक्षणों को कम करने और डिसेमिनेटिड इंट्रावस्क्यूलर कोएग्युलेशन (डीआईसी) के इलाज में इस्तेमाल के लिए सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ड्रग है।
टोक्यो यूनिवर्सिटी और जर्मनी के लेबनिज इंस्टीट्यूट फॉर प्राइमेट रिसर्च के वैज्ञानिकों ने डेमोन्स्ट्रेशन कर दिखाया है कि कैसे नैफमोस्टेट की बिल्कुल कम मात्रा से शरीर में मौजूद टीएमपीआरएसएस2 नामक प्रोटीन को खत्म कर कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को रोका जा सकता है। टीएमपीआरएसएस2 उन प्रोटीनों में से एक है, जिनकी मदद से सार्स-सीओवी-2 मानव कोशिकाओं में घुसकर उन्हें संक्रमित करना शुरू करता है।
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क्या कहतें हैं अध्ययन?
जापान और जर्मनी के अलावा दक्षिण कोरिया के एक चिकित्सा संस्थान के मेडिकल विशेषज्ञों ने भी जांच आधारित अध्ययनों के डेटा के जरिये नए कोरोना वायरस के खिलाफ नैफमोस्टेट के प्रभाव की तुलना 24 अलग-अलग ड्रग्स के प्रभावों से की है। खबरों के मुताबिक, इस तुलनात्मक अध्ययन में सामने आया है कि जापान और जर्मनी की प्रयोगशालाओं में हुए अध्ययनों में भी नैफमोस्टेट अन्य सभी ड्रग्स में सबसे ज्यादा प्रभावी और कोरोना वायरस को रोकने में सक्षम पाया गया है।
अच्छी बात यह है कि इस दवा की थोड़ी सी मात्रा के इस्तेमाल से ही सकारात्मक परिणाम मिले हैं। बताया गया है कि इस समय दुनिया में कोविड-19 के मरीजों पर नैफमोस्टेट के तीन ट्रायल चल रहे हैं। इनमें से एक ट्रायल जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो हॉस्पिटल में चल रहा है। दूसरा परीक्षण दक्षिण कोरिया की ग्येओंगसैंग नेशनल यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किया जा रहा है। वहीं, तीसरा ट्रायल तीन देशों इटली, स्विट्जरलैंड और जापान के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स के साझा प्रयास के तहत किया जा रहा है।
एसपीआई ने दवा का उत्पादन शुरू किया
कोविड-19 महामारी के चलते पैदा हुए हालात की गंभीरता के मद्देनजर दुनियाभर में इसके इलाज के नए-नए विकल्प तलाशे जा रहे हैं। इसी सिलसिले में सन फार्मा ने भी जल्दी से जल्दी क्लिनिकल ट्रायल की योजना बनाई है। इसके तहत कंपनी ने नैफमोस्टेट ड्रग और इसके कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्टूटिकल इन्ग्रेडिएंट का उत्पादन शुरू कर दिया है। इसके लिए एसपीआई जापान स्थित सहायक कंपनी पोला फार्मा की तकनीक का इस्तेमाल कर रही है।
सार्स-सीओवी-2 पर नैफमोस्टेट के प्रभाव को लेकर कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप सांघवी का कहना है, 'यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया में वैज्ञानिकों के तीन स्वतंत्र समूहों द्वारा किए गए जांच आधारित अध्ययनों में नैफमोस्टेट ने सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ सकारात्मक परिणाम दिए हैं। हमें विश्वास है कि इसमें कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने की क्षमता है।'
क्या है नैफमोस्टेट?
नैफमोस्टेट एक कृत्रिम पारदर्शी अमीनो एसिड है। एशियाई देशों में इस प्रोटीज अवरोधक का इस्तेमाल एंटी-कोग्युलेशन (द्रवीय जमाव के अवरोधक) के रूप में होता रहा है। आमतौर पर इसे हाइड्रोक्लोरिक एसिड के साथ मिला कर दिया जाता है। नैफमोस्टेट का स्वाद मीठा होता है। किडनी से जुड़ी किसी गंभीर चोट के चलते लंबे समय से रेनल रिप्लेसमेंट थेरेपी से गुजर रहे मरीजों के लिए इस ड्रग का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा लिवर ट्रांसप्लांटेशन से जुड़े अध्ययनों में यह ड्रग आजमाई जाती रही है। बताया जाता है कि इस दवा में कुछ एंटी-वायरल और एंटी-कैंसर तत्व भी मिले होते हैं।