इस नई स्टडी में अनुसंधानकर्ताओं ने 3 हजार 86 कोविड-19 मरीजों को शामिल किया जिन्हें 13 अप्रैल 2020 से 2 जून 2020 के बीच अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। इनमें से पहले ही 59.6 प्रतिशत मरीज पुरुष थे। महिलाओं से तुलना की जाए तो अस्पताल में भर्ती कराए गए पुरुषों की औसत उम्र महिलाओं से कम थी और उनमें पहले से कोई और बीमारी जैसे- हाइपरटेंशन, डायबिटीज और मोटापा भी नहीं था।
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अध्ययन में हालांकि, यह पाया गया कि भले ही महिलाओं के लिए लैबोरेटरी मार्कर्स पुरुष रोगियों की तुलना में कम थे और असमायोजित मृत्यु दर भी महिला और पुरुष दोनों लिंगों के बीच एक समान थी, बावजूद इसके औसतन अधिक पुरुषों को महिलाओं की तुलना में आईसीयू में गहन देखभाल की आवश्यकता पड़ी।
अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि बाकी के महत्वपूर्ण कारकों जैसे- जनसांख्यिकी, पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियां और साथ ही आधारभूत हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी के लक्षण) में सुधार करने के बाद भी पुरुष होना ही कोविड-19 से मृत्यु के लिए एक स्वतंत्र जोखिम कारक था। यहां पर यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछले अध्ययनों में गरीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों और कुछ निश्चित जाति या नस्ल के लोगों को भी कोविड-19 के गंभीर लक्षणों से संक्रमित होने का खतरा अधिक पाया गया है।
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अस्पताल में भर्ती किए गए पुरुष मरीजों की औसत उम्र 64 साल थी जबकी महिलाओं की औसत उम्र 74 साल यानी अस्पताल में भर्ती कराए गए मरीजों की उम्र के बीच पूरे 10 साल का अंतर। पुरुष रोगियों में ऐसे लोगों की भी संख्या अधिक थी जो धूम्रपान करने वाले थे, हालांकि महिलाओं में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा और सीओपीडी या अस्थमा जैसी अंतर्निहित स्थितियों की दर अधिक थी।
क्लिनिकल मार्कर्स में पाए गए अंतर इस बात का सुझाव देते हैं कि पुरुष मरीजों में महिला मरीजों की तुलना में इंफेक्शन के कारण मृत्यु का खतरा 20 प्रतिशत अधिक था। हालांकि, जब ऊपर बतायी गई पहली से मौजूद बीमारियों को ध्यान में रखते हुए मृत्यु दर जोखिम की गणना की गई तब पहले से मौजूद परिस्थितियों वाली महिलाओं की पुरुष समकक्षों की तुलना में कोविड-19 से मृत्यु होने का खतरा अधिक था।
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स्टडी के नतीजों में यह भी सुझाव दिया गया कि जिन पुरुषों में हृदय रोग या मोटापा जैसी स्थितियां मौजूद थीं उनमें कोविड-19 की वजह से मृत्यु दर पर कोई असर नहीं पड़ा। हालांकि इन्हीं बीमारियों ने महिलाओं में इंफेक्शन के कारण होने वाली मृत्यु दर के खतरे को 75 से 80 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।