स्वीडन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सूक्ष्म एंटीबॉडी, जिसे नैनोबॉडी भी कहा गया है, की खोज की है, जिसमें नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को ब्लॉक करने की क्षमता दिखाई दी है। स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बेहद छोटा रोग प्रतिरोधक नए कोरोना वायरस को ब्लॉक कर उसे मानव कोशिकाओं में घुसने से रोक सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस एंटीबॉडी या नैनोबॉडी में कोविड-19 के एंटीवायरल ट्रीटमेंट के रूप में विकसित होने की भी संभावना दिखी है। इस दावे से संबंधित परिणाम जानी-मानी मेडिकल व विज्ञान पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित हुए हैं।

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अध्ययन के लेखकों में शामिल कैलोलिंस्का इंस्टीट्यूट में वाइरोलॉजी के प्रोफेसर गेराल्ड मैक्लनर्ने का परिणामों पर कहना है, 'हम उम्मीद करते हैं कि हमारे परिणामों से कोविड-19 के खिलाफ हुई उन्नति में और योगदान हो सकता है। इस (कोरोना वायरस) वायरल इन्फेक्शन के खिलाफ थेरप्यूटिक ट्रीटमेंट कैंडिडेट के रूप में इस नैनोबॉडी की जांच की जा सकती है।'

रिपोर्टों के मुताबिक, स्वीडन के वैज्ञानिकों ने फरवरी में सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ सक्षम एंटीबॉडी ढूंढने की कवायद शुरू की थी। तब इन विशेषज्ञों ने ऊंट की एक प्रजाति अलपाका को कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन से संक्रमित किया था, जिसके बाद उसके शरीर से यह नैनोबॉडी मिला। यहां बता दें कि अलपाका और लामा दोनों ऊंट की प्रजाति से आते हैं और देखने में एक जैसे लगते हैं। लोग अक्सर इन्हें एक ही जानवर समझते हैं, लेकिन ये अलग-अलग हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ अन्य शोधों में लामा में भी कोरोना वायरस को रोकने वाले एंटीबॉडी मिलने का दावा किया जा चुका है।

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बहरहाल, मौजूदा अध्ययन में अलपाका को कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन से संक्रमित किए जाने के 60 दिन बाद उसका ब्लड सैंपल लिया गया था। शोधकर्ताओं द्वारा इस सैंपल में कोरोना स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स की पहचान की गई है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने अलपाका की रोग प्रतिरोधक कोशिका बी सेल (एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिका) की मदद से संपन्न नैनोबॉडी सीक्वेंस को क्लोनिंग के जरिये तैयार किया और उनका विश्लेषण किया। इसमें यह जानने की कोशिश की गई कि तमाम नैनोबॉडीज में से कौन सा आगे के मूल्यांकन के लिए सबसे बेहतर है।

जांच-पड़ताल के बाद आखिरकार शोधकर्ताओं को एक नैनोबॉडी मिला, जो खुद को स्पाइक प्रोटीन से अटैच कर लेता है। इससे प्रोटीन एसीई2 रिसेप्टर को बांध नहीं पाता, जिसके चलते उसके कोशिका में घुसने की क्षमता बाधित होती है। इस नैनो एंटीबॉडी को टीवाई1 नाम दिया गया है, जो टायसन नाम के अलपाका से लिया गया है।

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