कोविड-19 के इलाज के लिए कारगर वैक्सीन या ड्रग तैयार करने में दुनियाभर के वैज्ञानिक लगातार जुटे हुए हैं। अभी तक कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है। हालांकि दवा बनाने की दौड़ में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं का एक समूह आगे दिखाई दे रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) के मुताबिक, इन वैज्ञानिकों ने मलेरिया, मेर्स और इबोला जैसी बीमारियों को लेकर किए अपने सुरक्षित मानव परीक्षणों से जुड़े डेटा की मदद से एक वैक्सीन तैयार की है। इसमें उन्होंने चिम्पांजी से मिले 'एडिनोवायरस सीएचओडीओएक्सवन' का भी इस्तेमाल किया है।
ऑक्सफर्ड के 'जेनर इंस्टीट्यूट' के इन वैज्ञानिकों को विश्वास है कि उनके द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन नए कोरोना वायरस के संक्रमण को खत्म कर सकती है। उनके इस यकीन की सबसे बड़ी वजह इस वैक्सीन का इन्सानों के लिए सुरक्षित होना है। यही कारण है कि जहां अन्य वैक्सीन के ट्रायल कुछ सौ लोगों पर किए गए, वहीं इस दवा के ह्यूमन ट्रायलों में हजारों लोगों को शामिल किया गया है। जेनर इंस्टीट्यूट का कहना है कि अगर ट्रायल में वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ कारगर साबित हुई तो वे इसके इस्तेमाल की आपातकालीन मंजूरी लेकर सितंबर तक लाखों डोज तैयार करने की कोशिश करेंगे।
एनवाईटी के मुताबिक, क्लीनिक्ल ट्रायल के तहत वैक्सीन को पहले बंदरों पर टेस्ट किया गया था। वैज्ञानिकों ने छह बंदरों को वैक्सीन की एक-एक खुराक दी थी। उनकी मानें तो 28 दिन के बाद सभी छह बंदर कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो गए थे। उधर, एक चीनी कंपनी (सिनोवैक) ने भी रीसस मैकास (बंदरों की एक प्रजाति) पर इस वैक्सीन को प्रभावी बताया था। हालांकि, बंदरों के स्वास्थ्य में हुए सुधार से यह कहना कठिन होगा कि क्या यह वैक्सीन इन्सानों पर भी इतनी ही कारगर साबित होगी। लेकिन वैज्ञानिक आगे की तैयारी में जुटे हुए हैं। एनवाईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों कहना है कि हालात को देखते हुए उनका इरादा है कि कोविड-19 वैक्सीन की 10 लाख डोज सितंबर तक उपलब्ध करा दी जाएं।
इस पूरे वैज्ञानिक प्रयास को वित्तीय मदद दे रहे 'बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन' का कहना है कि वैक्सीन पर वाकई में काफी तेजी से काम हुआ है। वहीं, वैक्सीन के उत्पादन को लेकर अभी से हो रही बातों पर उसने कहा है कि अलग-अलग मामलों में वैक्सीन की डोज कम या ज्यादा हो सकती है, लिहाजा अलग-अलग मात्रा में वैक्सीन तैयार करने की जरूरत है। फाउंडेशन के एक निदेशक और वैक्सीन बनाने में जुटी टीम के सदस्य डॉ. एमिलियो एमिनी ने तर्क दिया है कि बच्चों या बुजुर्गों जैसे समूहों में वैक्सीन दूसरों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकती है, इसलिए यह जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन उपलब्ध हों।
(और पढ़ें- कोविड-19: क्या वायु प्रदूषण के कणों के जरिये दूर तक फैल सकता है कोरोना वायरस? नए शोध से सामने आई यह जानकारी)
इम्यूनिटी बढ़ाने पर रहेगा जोर
कोरोना वायरस के खिलाफ इस वैज्ञानिक प्रयास का उद्देश्य एक ऐसी तकनीक विकसित करना है जो इस वायरस परिवार के जेनेटिक कोड को बदलने में कारगर हो। शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे मरीज की इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद मिलेगी। जेनर इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर हिल ने ऐसी तकनीक का दशकों तक इस्तेमाल किया है। उन्होंने इसकी मदद से चिम्पांजी में पाए जाने वाले एक रेस्पिरेटरी वायरस को ठीक करने की कोशिश की है ताकि मलेरिया और अन्य बीमारियों के खिलाफ मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाया जा सके।