कोविड-19 की रोकथाम के संबंध में रेमडेसिवियर दवा को लेकर नई जानकारी सामने आई है। 'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित एक हालिया शोध के मुताबिक, रेमडेसिवियर के इस्तेमाल से कोरोना वायरस के मरीजों के रिकवरी पीरियड को कम किया जा सकता है। कोविड-19 के मरीजों को रिकवर होने में आमतौर पर 15 दिनों का समय लगता है। शोध के परिणामों के आधार पर बताया गया है कि रेमडेसिवियर इस अवधि को घटाकर 11 दिन कर सकती है। स्वास्थ्य पत्रिका ने साफ किया है कि यह प्रभाव उन मरीजों पर दिखेगा जो कोविड-19 से ग्रस्त होने के चलते अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन वेंटिलेटर पर भेजे जाने की हालत में नहीं हैं। यानी उनकी स्वास्थ्य स्थिति गंभीर नहीं है।
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एक हजार से ज्यादा लोगों पर किए गए इस शोध में अमेरिका, डेनमार्क, यूनाइटेड किंगडम, ग्रीस, जर्मनी, कोरिया, मैक्सिको, स्पेन, जापान और सिंगापुर के कोरोना मरीज शामिल किए गए थे। ट्रायल के तहत 538 मरीजों को रेमडेसिवियर दवा दी गई थी। वहीं, 521 मरीजों को प्लैसबो (एक अन्य प्रकार का ड्रग) के डोज दिए गए। रेमडेसिवियर वाले समूह के मरीजों को पहले दिन नसों के माध्यम से 200 मिलिग्राम दवा दी गई। बाकी के दिन 100 मिलिग्राम के डोज दिए गए। परिणाम में पाया गया कि जिन मरीजों को प्लैसबो ड्रग के डोज दिए गए थे, उनकी हालत गंभीर होने के मामले ज्यादा देखने को मिले।
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शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि प्रतिभागियों में शामिल ऐसे मरीज, जो अस्पताल में भर्ती थे लेकिन ऑक्सीजन सपोर्ट पर नहीं थे, उनमें से 38 प्रतिशत की रिकवरी तेजी से हुई। वहीं, एक अन्य समूह में जिन मरीजों को ऑक्सीजन लेने की जरूरत पड़ रही थे, लेकिन वे वेंटिलेटर पर नहीं थे, उनमें तेजी से रिकवरी की दर 47 प्रतिशत रही। हालांकि, वेंटिलेटर वाले मरीजों में यह दर गिर कर 20 प्रतिशत हो गई। इससे शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि रेमडेसिवियर कम गंभीर मरीजों की हालत सुधारने में ज्यादा कारगर है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि डॉक्टरों को संक्रमण से ग्रस्त सामान्य और कम गंभीर मरीजों को जल्दी डिस्चार्ज करने में मदद मिलेगी।
लेकिन ऐसा केवल दवा देने से नहीं होगा। शोध में यह भी पता चला है कि रेमडेसिवियर के डोज देने के साथ-साथ अन्य प्रकार के सप्लिमेंटल ट्रीटमेंट भी देने होंगे। शोधकर्ताओं के मुताबिक, केवल रेमडेसिवियर के डोज देने से मरीजों की मृत्यु दर कम करने में मदद नहीं मिली है, लिहाजा साथ में अन्य प्रकार के उपचार भी किए जाने चाहिए। हालांकि, शोध में दवा के सुरक्षित होने की पुष्टि हुई है, भले ही उससे मरीजों को फायदा हो या न हो।