कोविड-19 से गर्भवती महिलाओं के गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा ज्यादा होता है। अमेरिका की शीर्ष स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी ने अपने एक अध्ययन के आधार पर यह बात कही है। इसमें उसने कहा है कि अगर गर्भवती महिलाएं कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो उनके आईसीयू में भर्ती होने का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि, सीडीसी ने यह साफ किया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि इससे गर्भवती महिलाओं के कोविड-19 से मरने का खतरा नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं की अपेक्षा बढ़ जाता है।
गौरतलब है कि इससे पहले सीडीसी ने कहा था कि ऐसा कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 गर्भवती बीमारी महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित करती है। लेकिन हालिया शोध के तहत सामने आई नई जानकारी के बाद एजेंसी ने इस संबंध में अपने रुख में बदलाव किया है। अब उसका कहना है कि कोविड-19 होने पर गर्भवती महिलाओं के गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा उन महिलाओं से अधिक होता है, जो गर्भवती नहीं हैं।
बताया गया है कि गर्भवती महिलाओं में कोविड-19 के प्रभाव को जानने के लिए किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है। इसमें शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित 8,200 से अधिक गर्भवती महिलाओं और 83 हजार से ज्यादा नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं से जुड़ी जानकारी का विश्लेषण किया है। इन महिलाओं की उम्र 15 से 44 वर्ष के बीच है, जो जनवरी से जून के बीच कोविड-19 के टेस्ट में पॉजिटिव पाई गई थीं।
विश्लेषण के दौरान पता चला कि कोरोना वायरस की गर्भवती मरीजों में से एक-तिहाई को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, जबकि जो महिलाएं कोविड-19 की चपेट में आने के समय प्रेग्नेंट नहीं थीं, उनमें से केवल छह प्रतिशत के अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आई। हालांकि, शोध में एक कमी भी सामने आई है। जानकारों का कहना है कि यह अध्ययन यह साफ नहीं करता कि कोविड-19 से ग्रस्त होने के बाद ये गर्भवती महिलाएं अस्पताल में डिलिवरी या गर्भावस्था से जुड़े किसी प्रोसीजर की वजह से भर्ती हुईं या फिर विशेष रूप से कोरोना वायरस के कारण एडमिट हुईं। अन्य शब्दों में कहें तो शोध से अस्पताल में भर्ती हुई सभी महिलाओं के गंभीर रूप से बीमार होने का संकेत नहीं मिलता।
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लेकिन शोध में इतना जरूर साफ हुआ कि नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं की अपेक्षा कोविड-19 से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के आईसीयू और वेंटिलेटर पर जाने की संभावना ज्यादा होती है। विश्लेषण में सामने आया कि अस्पताल में भर्ती हुई कम से कम 1.5 प्रतिशत कोरोना पीड़ित गर्भवती महिलाओं को आईसीयू में भर्ती करना पड़ा, जबकि बिना गर्भावस्था वाली महिलाओं में यह दर 0.9 प्रतिशत रही।
वहीं, आईसीयू में वेंटिलेटर पर गई 0.3 प्रतिशत नॉन-प्रेग्नेंट कोरोना पीड़िताओं की अपेक्षा गर्भवती पीड़िताओं की संख्या 0.5 प्रतिशत रही। इस आधार पर शोध के लेखकों का कहना है कि यह गर्भवती और नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं को कोविड-19 से होने वाले खतरे के अंतर को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि नॉन-प्रेग्नेंट महिला पीड़िताओं के मरने का खतरा कम हो जाता है। उन्होंने साफ किया कि विश्लेषण के दौरान दोनों में मरने का खतरा (0.2 प्रतिशत) समान पाया गया है।
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