कोविड-19 की रोकथाम में लगे स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्टिव इंक्वपमेंट को बहुत अहम माना जाता है। इसे पहनने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों या अन्य व्यक्तियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा काफी कम हो जाता है। हालांकि पीपीई को पहनने के बाद इसे उतारते समय व्यक्ति कोरोना वायरस के संपर्क में आ सकता है और संक्रमित भी हो सकता है। ऐसे में पीपीई भी सौ प्रतिशत सुरक्षा की गारंटी नहीं है। हालांकि, एक शोध के परिणाम बताते हैं कि कैसे पीपीई को एक खास फैब्रिक (कपड़ा) से तैयार कर इसे और सुरक्षित बनाया जा सकता है।

अमेरिका स्थित इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिंस के मेडिकल एंड मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स विभाग और इंडियाना सेंटर फॉर रीजेनरेटिव मेडिसिन एंड इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर पीपीई बनाने में इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक का इस्तेमाल किया जाए तो इससे कोरोना वायरस को एक मिनट के अंदर खत्म किया जा सकता है। यहां बता दें कि इस संबंध में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन की विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा किया जाना बाकी है।

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क्या कहते हैं शोधकर्ता?
शोधकर्ताओं के मुताबिक, किसी वायरस के संक्रमण फैलाने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी संरचना कितनी स्थायी है। यह स्थिरता कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है। नॉन-स्पेसिफिक इलेक्ट्रोस्टैटिक इंटरेक्शन इन्हीं फैक्टर्स में से एक है। वायरस अंतःकोशिकीय परजीवी होते हैं। वे स्वस्थ कोशिकाओं में घुस कर उनका इस्तेमाल अपनी कॉपियां बनाने में करते हैं। 

आमतौर पर किसी वायरस की बाहरी सतह पर 'कैपिसड' नामक प्रोटीन होता है, जो किसी खोल की तरह वायरस के डीएनए और आरएनए को सुरक्षा प्रदान करता है। वायरस की संरचना या उसका ढांचा न बिगड़े और वह स्वस्थ कोशिका में घुस कर उसे संक्रमित कर सके, इसके लिए जरूरी है कि उसकी सतह पर इन कैपिडस नामक संरक्षक प्रोटीनों में संतुलन बना रहे। शोधकर्ताओं ने वायरस के इसी संतुलन को बिगाड़ने के लिए इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक विकसित किया है, जिसके द्वारा निर्मित एक कमजोर इलेक्ट्रिक फील्ड से वायरस संक्रमण फैलाने लायक नहीं रह जाता।

शोधकर्ताओं ने कहा है कि पॉलिएस्टर से बने कपड़े पर सिल्वर और जिंक की बैटरी के डॉट्स शरीर की नमी के प्रभाव में छोटी-छोटी बैटरी की तरह काम करते हैं। इससे वायरस के प्रोटीन को असंतुलित करने वाला इलेक्ट्रिक फील्ड पैदा होता है।

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कैसे किया गया शोध?
इस तथ्य की पुष्टि के लिए शोधकर्ताओं ने पॉलिएस्टर के एक अन्य कपड़े का इस्तेमाल किया जिस पर धातु के ये डॉट्स नहीं बने थे। लैब टेस्ट में दोनों कपड़ों को सार्स-सीओवी-2 के संपर्क में लाया गया। परिणाम में उन्होंने पाया कि धातु के डॉट्स वाले इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक पर एक मिनट के बाद वायरस की संख्या दो गुना कम हो गई और पांच मिनट बाद इसमें चार गुना कमी आ गई।

लैब में किए एक और टेस्ट में शोधकर्ताओं ने पाया कि बिना डॉट्स वाले फैब्रिक पर वायरस के साइटोपैथिक इफेक्ट (वायरल इन्फेक्शन से कोशिकाओं में होने वाले बदलाव) सामान्य बने हुए थे, लेकिन इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक से लिए गए वायरसों में ये इफेक्ट नहीं मिले। इसका निष्कर्ष यह निकाला गया कि वायरस ने अपनी संक्रमण क्षमता खो दी थी। इस परिणाम से उत्साहित शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे कोविड-19 और अन्य प्रकार के वायरल संक्रमणों के नियंत्रण की संभावना पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि माइक्रोबेल बैटरी को अलग-अलग प्रकार के फैब्रिक्स में इम्बेड किया जा सकता है और पीपीई बनाने के संभावित नए तरीके के बारे में भी पता चलता है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक से बने पीपीई कोरोना वायरस से सुरक्षा देने में ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं- शोधकर्ता है

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