आमतौर पर बीमारी का पता लगाने के लिए किए जाने वाले परीक्षणों के परिणाम आने में कई घंटे लग जाते हैं। लेकिन प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट इस समस्या का निदान हो सकता है।  यह एक बेहद आसान और सटीक परिणाम देने वाला ऐसा टेस्ट है जो रोगी के पास जाकर किया जाता है और कुछ ही मिनटों में इसका नतीजा भी पता चल जाता है।

रुधिरविज्ञान और जैव रासायनिक, दोनों में ही इस टेस्ट को प्रमाणित किया जा चुका है। अब तो जीवाणुविज्ञान में भी प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट को प्रयोग में लाया जा रहा है। क्लीनिकल सैंपल में विभिन्न संक्रामक रोगाणुओं की पहचान करने के लिए इसका प्रयोग हो रहा है।

हाल ही में, अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कोविड-19 के लिए भी ऐसे ही एक प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट को मंजूरी दी है। यह परीक्षण एक छोटे से उपकरण पर किया जाता है, जो 5 मिनट के भीतर बता सकता है कि वह व्यक्ति कोविड-19 संक्रमित है या नहीं? इस टेस्ट में रोगी का सैंपल लेकर यह जानने की कोशिश की जाती है कि उसमें वायरल न्यूक्लिक एसिड (आरएनए) की उपस्थिति है या नहीं।

  1. क्या है प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट?
  2. कितने तरह का होता है प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट?
  3. संक्रामक रोगों में प्वाइंट ऑफ केयर परीक्षण
कोविड-19: क्या है प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट? के डॉक्टर

प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट एक छोटे से उपकरण के माध्यम से किया जा सकता है। इसका मतलब है कि इस परीक्षण के लिए आपको हॉस्पिटल जाकर लंबी लाइन लगाने की आवश्यकता नहीं है। यह टेस्ट बिल्कुल उसी तरह से हो सकता है जैसे आमतौर पर घरों में हम ग्लूकोमीटर से मधुमेह का परीक्षण कर लेते हैं। यह परीक्षण महज 15 मिनट में हो सकता है। इसी दौरान आपको परिणाम भी प्राप्त हो जाएगा। परीक्षण के लिए बहुत कम मात्रा में सैंपल की जरूरत होती है।

परीक्षण के इस इस तकनीक को परिभाषित करने के लिए माइक्रोफ़्लुइडिक्स शब्द का प्रयोग किया जाता है। चूंकि इस टेस्ट में सैंपल की मात्रा बहुत कम होती है जिससे परिक्षण की प्रक्रिया आसान होती है और आमतौर पर होने वाले टेस्ट से खर्च भी कम लगता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसे ASSURED नाम से जाना जाता है जिसका मतलब है:

  • A अर्फोडेबल: वैसे लोग जिन्हें संक्रमण होने का खतरा है उनके लिए किफायती होना चाहिए।
  • S सेंसिटिव: परिणाम के गलत होने की आंशका बहुत कम होनी चाहिए।
  • S स्पेसिफिक: परीक्षण में प्रमाण की विश्वसनीयता होनी चाहिए।
  • U यूजर फ्रेडली: बिना जटिलताओं के आम लोगों के लिए यह परीक्षण करना आसान होना चाहिए।
  • R रैपिड एंड रोबस्ट: परीक्षण के बाद जल्द से जल्द परिणाम मिल जाए और सैंपल को फ्रिज में रखने की जरूरत न पड़े।
  • E इक्यूपमेंट फ्री: परीक्षण में किसी भी जटिल उपकरण का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  • D डिलीवर्ड: हर व्यक्ति तक इसकी पहुंच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट मुख्य रूप से 2 प्रकार का होता है - हैंडहेल्ड डिवाइस यानी हाथ में पकड़ने वाला उपकरण और टेबलटॉप डिवाइस यानी टेबल पर रखा जाने वाला उपकरण। बीमारी की पहचान के लिए इन उपकरणों के उपयोग की विधि के आधार पर ये कई प्रकार के हो सकते हैं। यहां हम आपको बताएंगे कि प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट मुख्य रूप से कितने प्रकार का होता है, साथ ही उनका उपयोग कहां किया जा सकता है?

हैंडहेल्ड डिवाइस (ऐसे उपकरण जिन्हें हाथ में पकड़ा जा सके)

हैंडहेल्ड डिवाइस से क्वॉलिटेटिव यानी गुणात्मक और क्वॉन्टिटेटिव यानी मात्रात्मक दोनों परीक्षण कर सकते हैं। क्वॉलिटेटिव टेस्ट से पता लगाया जा सकता है कि बीमारी है या नहीं वहीं क्वॉन्टिटेटिव टेस्ट से पता चलता है कि सैंपल में कितने प्रकार के तत्व मौजूद हैं।

हैंडहेल्ड डिवाइस सरल और जटिल दोनों प्रकार के हो सकते हैं। इन उपकरणों की खास बात यह है कि इनका उपयोग रोगी के पास जाकर किया जा सकता है। चूंकि परीक्षण का परिणाम भी कुछ ही क्षणों में आ जाता है ऐसे में रोगी की स्थिति को देखते हुए उसे तुरंत इलाज भी मुहैया कराई जा सकती है।

डिपस्टिक टेस्ट

डिपस्टिक टेस्ट के डिवाइस में एक छोटी सी छड़ी पर एक पैड लगा होता है। सैंपल को इस पैड पर रखते ही यह विशेष तत्वों के साथ प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है और रंग बदलकर परिणाम सूचित करता है। उदाहरण के लिए अगर आप इससे यूरिन टेस्ट कर रहे हैं तो यह एक ही समय में यूरिन में 10 अलग-अलग चीजों का परीक्षण कर सकता है। हालांकि रंग में हो रहे बदलाव को पढ़ने और इसे समझने के लिए इसके जानकार व्यक्ति की जरूरत होती है।

लैट्रल फ्लो टेस्ट

लैट्रल फ्लो स्ट्रिप एक विशेष प्रकार का स्ट्रिप टेस्ट होता है जिसमें एंटीबॉडी होते हैं और जो सैंपल के संपर्क में आने पर रंग में परिवर्तन कर सूचित करते हैं। उदाहरण के लिए घर पर ही प्रेगनेंसी टेस्ट करने के लिए जिस किट का प्रयोग किया जाता है वह जांच के दौरान महिला के यूरिन में एचसीजी की उपस्थिति को दिखाता है। इन्हें लैट्रल फ्लो इम्यूनोएसे के रूप जाना जाता है और वह सैंपल में हार्मोन, प्रोटीन, न्यूक्लिक एसिड और एंटीजन का पता लगा सकते हैं।

प्रेगनेंसी टेस्ट किट में पट्टी पर पहले से ही मोबाइल एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। जैसे ही सैंपल एंटीजन को इससे मिलाता है तो उससे बने रंग के आधार पर पता लगाया जाता है कि वास्तव परिणाम पॉजिटिव है। यदि यूरिन सैंपल में एचसीजी मौजूद नहीं है, तो रंग का संकेत नहीं आता है जिससे यह पता चलता है कि परिणाम नेगेटिव है अर्थात प्रेगनेंसी नहीं है। स्ट्रिप में मौजूद कंट्रोल लाइन बताती है कि फ्लोरोसेंट या कलर मार्कर सही तरीके से काम कर रहा है या नहीं। इसलिए, यदि किट में कंट्रोल लाइन नहीं दिखती है, तो इसका मतलब है कि परीक्षण किट सही नहीं है।

लैट्रल फ्लो स्ट्रिप्स और डिपस्टिक्स में कई बार लोग भ्रमित हो जाते हैं। इसलिए यह जानना जरूरी है कि लैट्रल फ्लो स्ट्रिप्स में एक झिल्ली होती है जिससे होकर द्रव गुजरता है जो बाद में मार्कर के साथ मिलकर रंग प्रदर्शित करता है। वहीं डिपस्टिक्स में सैंपल प्रवाह की अवस्था में नहीं होता है।

मीटर टाइप हैंडहेल्ड डिवाइस

खून में ग्लूकोज की मात्रा का पता लगाने के लिए जिस तरह के उपकरण का इस्तेमाल होता है मीटर टाइप भी ठीक वैसा ही हाथ में पकड़ने वाला उपकरण है। ये उपकरण परीक्षण के लिए या तो फोटोमेट्री या विद्युत रासायनिक संकेतों का उपयोग करते हैं। रिफ्लेक्टेंस फोटोमेट्री में, सैंपल पर सफेद रोशनी डाली जाती है। इसके बाद सैंपल प्रकाश की एक विशेष तरंग को प्रतिबिंबित करता है। इसी के आधार पर परीक्षण के परिणाम का पता लगाया जाता है।

मीटर टाइप डिवाइसों का उपयोग वारफेरिन थेरेपी के दौरान भी किया जाता है। वारफेरिन वह थेरेपी है जो रक्त को पतला करने में मदद करती है। इसे हृदय रोगियों पर प्रयोग में लाया जाता है। रक्त के थक्के को सही करने में यह थेरपी कारगर हो सकती है। कुछ हैंड हेल्ड डिवाइसों में सैंपल (आमतौर पर रक्त) रखने के लिए विशेष कारट्रेज होती है जिसमें बेहद पतले फिल्म सेंसर लगे होते हैं और इसे जब रीडर में डाला जाता है तो यह सही पैमाना देता है।

कुछ डिवाइसों में स्मार्ट कार्ड जैसे कुछ कारट्रेज भी होते हैं। इसमें सामान्य कारट्रेज की तरह ही माइक्रोफ्लुइडिक्स और बायोसेंसर का उपयोग किया जाता है हालांंकि इसमें पतली फिल्म वाला हिस्सा नहीं होता है। ये सेंसर और माइक्रोफ्लुइडिक्स एक 35 मिमी टेप-ऑन-रील प्रारूप पर प्रिंटेड होते हैं।

बेंच टॉप डिवाइस

बेंच टॉप डिवाइसेस पारंपरिक रूप से प्रयोगशालाओं में उपयोग किए जाने वाले बड़े बड़े उपकरणों का छोटा रूप होता है। रक्त में हीमोग्लोबिन ए1सी और लिपिड की जांच करने के लिए बहुत पहले बेंच टॉप प्वाइंट ऑफ़ केयर डिवाइस बनाए गए थे। इस उपकरण से दोनों टेस्ट अलग-अलग किए जा सकते हैं और कुल 15 मिनट के भीतर ही इससे परिणाम प्राप्त हो जाता है। इसका अर्थ है कि दोनों टेस्ट में औसत 6 मिनट का समय लगता है।

हैंडहेल्ड डिवाइस से पूरे लिवर फंक्शन की जांच और 15 अलग-अलग केमिकल टेस्ट किए जा सकते हैं। इसका कई देशों में पहले से ही इस्तेमाल हो रहा है। इसमें एक साथ ज्यादा मात्रा में भी सैंपल लोड किए जा सकते हैं। उपकरणों में कम मात्रा वाले सैंपल टेस्ट के लिए भी काट्रेज मौजूद होते हैं। हैंडहेल्ड और बेंचटॉप डिवाइस के बीच लगे कारट्रेज और उनकी गुणवत्ता का ही फर्क है। हालांकि एक कारट्रेज की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि उससे कितने परीक्षण किए जा चुके हैं। पारंपरिक प्रयोगशाला परीक्षणों की तुलना में बेंचटॉप उपकरणों के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

  • ये डिवाइस लंबे समय तक चलते हैं और इनमें देखरेख की भी आवश्यकता कम होती है।
  • छोटे सैंपल साइज का इस्तेमाल किया जाता है।
  • टच स्क्रीन डिवाइस है जो इस्तेमाल करने में भी काफी आसान है।
  • स्वत: जांच कर सकती है।
  • स्वत: ही सैंपल की क्वॉलिटी कंट्रोल कर लेता है।
  • वीडियो के जरिए उपयोग के तरीके को बताकर लोगों को प्रशिक्षित करता है।
  • इसके अंदर बार-कोड स्कैनर लगे होते हैं।
  • रक्त के थक्कों का आसानी से पता लगा सकते हैं।
  • उपकरण में अंर्तनिहित गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली है जो त्रुटियों का शीघ्रता से पता लगा सकती है।
  • उपयोग से पहले यह डिवाइस रोगी और उपयोगकर्ता की पहचान यानी प्रमाणिकता मांगती है।

संक्रामक रोगों के परीक्षण के लिए निम्न प्रकार के प्वाइंट ऑफ केयर टेस्ट किए जाते हैं।

  • एंटीजन- रोगाणुओं के सतह पर जो प्रोटीन मौजूद होते हैं, उनके खिलाफ एंटीबॉडी की जांच।
  • एंटीबॉडी- प्रतिरक्षा प्रणाली प्रोटीन जो हमारे शरीर को संक्रमणों से बचाती है।
  • न्यूक्लिक एसिड - रोगाणु का जेनेटिक मैटीरियल। उदाहरण के लिए सार्स-सीओवी-2 वायरस का आरएनए।

लैट्रल फ्लो इम्यूनोएसे में दो प्रकार के एंटीबॉडी होते हैं- एक फ्लो स्ट्रिप को लेवल किया हुआ और दूसरा अनलेबल किया हुआ। लेबल किए गए एंटीबॉडी को सैंपल से संपर्क में लाया जाता है जो बाद में जाकर एंटिजन से मिल जाता है। जैसे ही सैंपल को स्ट्रिप पर रखा जाता है तो एंटीजन (यदि नमूने में मौजूद है)-प्रबंधित एंटीबॉडी परिसर में जाकर पट्टी पर पहले से मौजूद स्थिर एंटीबॉडी से मिल जाता है। इसी प्रतिक्रिया के कारण संकेत के रूप में स्ट्रिप पर रंग उभर आता है जिससे एंटीजन की मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है। रंग के गाढ़ेपन से ही नमूने में एंटीजन की मात्रा के बारे में पता लगाया जाता है।

टीबी, मलेरिया, इन्फ्लूएंजा और एचआईवी (सीडी4 की मात्रा का पता लगाने के लिए) जैसी स्थितियों का पता लगाने के लिए लैट्रल फ्लो ऐस्से को प्रयोग में लाया जाता है। 

संक्रमण का पता लगाने के लिए प्वाइंट ऑफ केयर उपकरण हैंडहेल्ड और बेंच टॉप दोनों प्रकार के हो सकते हैं। इसका मतलब है कि प्वाइंट ऑफ केयर डिवाइस को हाथ में पकड़कर या रखकर उनकी बनावट के अनुसार प्रयोग में लाया जा सकता है। इनमें इम्यूनोस्ट्रिप्स (खास पेपर से बने) होते हैं जिसमें विशेष एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। इसलिए जब स्ट्रिप किसी सैंपल के संपर्क में आती है जिसमें पहले से ही एंटीजन (माइक्रोबियल प्रोटीन) मौजूद होता है तो प्रतिक्रिया स्वरूप इसके रंग में परिवर्तन दिखाई देने लगता है।

Dr Rahul Gam

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संदर्भ

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