कोविड-19 महामारी और इसकी वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को लेकर नई जानकारी सामने आई है। कई अध्ययनों के डेटा के आधार पर इटली और यूनाइटेड किंगडम में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि इसकी काफी संभावना है कि जो लोग कोरोना वायरस की चपेट में आए, उनमें सबसे अधिक संक्रमण या वायरल लोड बीमारी के पहले हफ्ते में रहा हो और नौवें दिन तक वे बिल्कुल भी संक्रामक नहीं रह गए हों, यानी संक्रमित होने के नौ दिन बाद वे किसी और को संक्रमित नहीं कर सकते थे। शोधकर्ताओं ने कोविड-19 पर हुए कोई 79 अध्ययनों के विश्लेषण में मिले साक्ष्यों के आधार पर यह जानकारी दी है। हालांकि यहां स्पष्ट कर दें कि यह अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा होनी बाकी है। फिलहाल इसे मेडआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है।

(और पढ़ें - कोविड-19: मॉडेर्ना की वैक्सीन से बंदरों में मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स पैदा होने का दावा, तीसरे ट्रायल के बिना ही रूसी वैक्सीन का अगस्त में रजिस्ट्रेशन होने की रिपोर्ट)

वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के वायरल डायनैमिक्स से जुड़े उपलब्ध डेटा का मेटा-एनालिसिस और सिस्टमैटिक रिव्यू कर यह परिणाम निकाला है कि संक्रमित लोगों में वायरस काफी समय तक बना रह सकता है, लेकिन उसके ऊपरी श्वसन मार्ग से वह एक हफ्ते में हट जाता है। शोध को लेकर ग्लैसगो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक एंतोनियो हो का कहना है, 'ऐसी कोई स्टडी अब तक सामने नहीं आई है, जिसमें कहा गया हो कि लक्षण विकसित होने के नौ दिनों के बाद जिंदा वायरस आइसोलेट हो जाता है। हालांकि ऐसा होने के बाद भी वायरल आरएनए लोड उच्च स्तर पर बना रहता है। इन परिणामों से यह पता चलता है कि वायरल आरएनए को डिटेक्ट करने के बाद यह दावा नहीं किया जा सकता कि कोई व्यक्ति कितने समय तक संक्रामक बना रहता है।'

करीब 80 अध्ययनों से जुड़ी जानकारी के जरिये वैज्ञानिकों ने वायरस के वायरल लोड डायनैमिक्स, वायरल आरएनए की अवधि और अलग-अलग प्रकार के सैंपलों में जीवित सार्स-सीओवी-2 की मौजूदगी का विश्लेषण किया। इनमें वे सैंपल भी शामिल किए गए जिन्हें अलग-अलग मरीजों के ऊपरी श्वसन मार्ग (यूआरटी) और निचलने श्वसन मार्ग (एलआरटी) से लिया गया था। इसके अलावा मलमूत्र त्यागने वाली जगहों (स्टूल) और सीमन के सैंपल भी लिए गए। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने सार्स-सीओवी-2 के इन वायरल डायनैमिक्स की तुलना 2002-03 में सामने आए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-1 और 2012 में आए मेर्स-सीओवी कोरोना वायरस से की। इसके लिए इन दो अन्य कोरोना वायरसों पर किए गए आठ और 11 अध्ययनों को शामिल किया गया।

(और पढ़ें - कोविड-19: 25 प्रतिशत युवा वयस्क मरीज हफ्तों बाद भी सामान्य रूप से स्वस्थ नहीं- सीडीसी)

स्टडी में पाया गया कि यूआरटी में सार्स-सीओवी-2 की औसत वायरल शेडिंग 17 दिन थी, जबकि एलआरटी की वायरल शेडिंग 14.6 दिन थी। स्टूल सैंपल में यह औसत अवधि 17.2 दिन थी और सीमन में 16.6 दिन। लेकिन ज्यादातर अध्ययनों के विश्लेषण से यह साफ तौर पर निकल कर आया कि सैंपलों में वायरस की सबसे अधिक मात्रा संक्रमण के लक्षण दिखने के शुरुआती एक हफ्ते तक रही। उसके बाद यह गिरती चली गई। एक और दिलचस्प तथ्य यह सामने आया कि नए कोरोना वायरस के अधिकतम वायरल लोड की अवधि एक हफ्ते की है, जबकि सार्स-सीओवी-1 वायरस के यूआरटी में फैलने की तीव्रता 10 से 14 दिनों तक बनी रहती है और मेर्स-सीओवी वायरस में सात से दस दिन तक वायरस अपने पीक पर रहता है।

परिणामों को लेकर प्रोफेसर एंतोनियो और उनकी टीम का कहना है, 'सार्स-सीओवी-2 के मरीज संभवतः संक्रमण के पहले हफ्ते में सबसे ज्यादा संक्रामक होते हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि बीमारी की बिल्कुल शुरुआत (डायग्नॉसिस से पहले) में वायरल लोड अपने पीक पर होता है या लक्षण दिखने के एक हफ्ते तक।' हालांकि पांच स्टडी से जुड़े एलआरटी सैंपलों से पता चला है कि वहां बीमारी के दूसरे हफ्ते में वायरस सबसे अधिक मात्रा में मौजूद होता है। वहीं, स्टूल सैंपल में वायरल लोड अस्थिर रहता है। वहां वायरस लक्षण दिखने के शुरुआती सात दिनों से लेकर छह हफ्तों तक अधिकतम संख्या में बना रह सकता है।

(और पढ़ें - कोविड-19: कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार हुए बिना भी क्षतिग्रस्त हो सकता है मरीज का दिल- स्टडी)


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के मरीज शुरुआती एक हफ्ते में सबसे ज्यादा संक्रामक होते हैं, नौवें दिन के बाद संक्रमण फैलाने की क्षमता होने के सबूत नहीं: वैज्ञानिक है

ऐप पर पढ़ें