कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी को कोविड-19 के इलाज से जुड़े स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल (एसओपी) से हटाया जा सकता है। देश की सर्वोच्च मेडिकल रिसर्च एजेंसी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने यह बात कही है। उन्होंने कहा है कि भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ प्लाज्मा थेरेपी के प्रभावों को जानने के लिए किए गए अध्ययन में उपचार की यह तकनीक असरदार साबित नहीं हुई है। बलराम भार्गव ने कहा कि कोविड-19 के गंभीर मरीजों को बचाने में प्लाज्मा थेरेपी कारगर नहीं पाई गई है, लिहाजा इसे कोविड-19 मैनेजमेंट से संबंधित एसओपी से हटाया जा सकता है।
खबरों के मुताबिक, आईसीएमआर प्रमुख ने कहा है, 'हमने प्लाज्मा थेरेपी को लेकर दुनिया का सबसे बड़ा ट्रायल किया है, जिसमें 39 अस्पतालों के 464 कोविड मरीजों को शामिल किया गया था। (अध्ययन के लेखन के लिए) 350 से ज्यादा लेखकों को भी शामिल किया गया था। बीएमजे (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल) ने इसे (स्टडी) स्वीकार किया है और हमें भी इसके सबूत मिले हैं। जल्दी ही रिपोर्ट सामने आएगी। दस से भी ज्यादा पेजों में प्लाज्मा (थेरेपी) पर बात की जाएगी।'
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वहीं, कोविड-19 मैनेजमेंट से जुड़े एसओपी में प्लाज्मा थेरेपी के रहने या हटाने के विषय पर आईसीएमआर प्रमुख ने कहा, 'हमने नेशनल टास्क फोर्स से इस बारे में बात की है। जॉइंट मॉनिटरिंग ग्रुप के साथ भी इस बारे में और बातचीत चल रही है कि इसे (प्लाज्मा थेरेपी) नेशनल गाइडलाइंस से हटाया जाए या नहीं। विचार-विमर्श का दौर अभी जारी है और हम कमोबेश निष्कर्ष तक पहुंच रहे हैं।' गौरतलब है कि सिंतबर में प्लाज्मा थेरेपी को लेकर आई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया था कि आईसीएमआर के एक रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल में प्लाज्मा थेरेपी के संभावित विपरीत प्रभावों का पता चला है और इससे कोविड मरीजों की मृत्यु दर भी कम नहीं हुई थी, न ही यह बीमारी को गंभीर होने से रोकने में सक्षम पाई गई।
अब आईसीएमआर प्रमुख ने कोरोना वायरस के इलाज के संबंध में इस ट्रीटमेंट तकनीक के इस्तेमाल पर साफ राय रखी है। उन्होंने ऐसे समय में प्लाज्मा थेरेपी को एसओपी से हटाने की बात कही है, जब कई राज्यों ने अपने यहां प्लाज्मा बैंक शुरू कर दिए हैं। अस्पतालों में इनवेस्टिगेटिव थेरेपी की श्रेणी के तहत प्लाज्मा ट्रीटमेंट करने की अनुमति है, जिसके लिए अस्पताल मरीजों से चार्ज भी लेते हैं।
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इससे पहले सितंबर महीने में आईसीएमआर ने अपने एक अध्ययन हवाले से बताया था कि कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 से मौत होने के खतरे को कम करने में प्रभावी नहीं है। इस स्टडी में देश के 39 अस्पतालों में कोविड-19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था। आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने इनका ओपन-लेबल, पैरेलल-आर्म, फेज 2, मल्टीसेंटर और रैंडमाइंज्ड कंट्रोल ट्रायल किया था। खबर के मुताबिक, देश की शीर्ष मेडिकल रिसर्च एजेंसी ने सीटीआरआई (क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया) के साथ मिल कर इस अध्ययन को अंजाम दिया था। बीती 22 अप्रैल से 14 जुलाई तक के बीच किए गए इस अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष के रूप में कहा था कि कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने के बाद इससे मौत होने के खतरे को कम करने में प्लाज्मा थेरेपी मददगार नहीं है। गौरतलब है कि कुछ इसी तरह का दावा देश की शीर्ष मेडिकल संस्थान और अस्पताल एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) ने भी किया था।
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