अमेरिका में कोविड-19 के खिलाफ प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को आपातकालीन अप्रूवल के साथ मंजूरी दे दी गई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसके लिए फूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) पर दबाव बना रहे थे। उन्होंने इस अप्रूवल का जिक्र करते हुए कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का प्लाज्मा थेरेपी के जरिये इलाज किए जाने का समर्थन किया है। रविवार को एफडीए की तरफ से मंजूरी मिलने के बाद एक न्यूज ब्रीफिंग के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने इस थेरेपी को 'ताकतवर' बताया।
हालांकि अमेरिका के शीर्ष सरकारी वैज्ञानिकों ने अमेरिका में कोविड-19 के संदर्भ में प्लाज्मा थेरेपी के आंकड़ों को लेकर चिंता जताई है। इनमें कोविड-19 संकट से निपटने में ट्रंप प्रशासन के साथ लगे शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फाउची भी शामिल हैं। प्लाज्मा थेरेपी से जुड़े डेटा के आधार पर उन्होंने और कई अन्य एक्सपर्ट ने कोविड-19 के संबंध में इस तकनीक से फायदा मिलने की संभावना पर सवाल उठाए थे। इसके बाद ही कुछ दिनों पहले एफडीए ने प्लाज्मा थेरेपी पर अस्थायी रोक लगा दी थी। लेकिन अब उसने इसे मंजूरी दे दी है, जिसके पीछे डोनाल्ड ट्रंप के राजनीतिक हितों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
एफडीए से मंजूरी मिलने के बाद प्लाज्मा थेरेपी को अब ज्यादा कोविड-19 मरीजों पर आजमाया जा सकेगा। स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, इस अप्रूवल से पहले थेरेपी को 70 हजार से ज्यादा कोरोना संक्रमितों पर आजमाया जा चुका था। लेकिन यह एफडीए का ही कहना था कि बहुत कम मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी से फायदा हुआ है। कहा गया था कि किसी ड्रग की तरह प्लाज्मा को लाखों डोज के रूप में मैन्युफैक्चर नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी उपलब्धता ब्लड डोनेशन तक ही सीमित है। उधर, राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड-19 से उबर चुके लोगों से अपील की है कि वे आगे आएं और अपना प्लाज्मा डोनेट करें।
बीते सप्ताहांत डोनाल्ड ट्रंप ने प्लाज्मा थेरेपी को मंजूरी नहीं दिए जाने को लेकर एफडीए पर आरोप लगाया था कि वह चुनाव के चलते जानबूझकर देरी कर रही है। इसके अगले ही दिन यानी रविवार को एफडीए ने प्लाज्मा थेरेपी को आपातकालीन मंजूरी दे दी। लेकिन अमेरिकी सरकार के कुछ शीर्ष वैज्ञानिकों, अन्य विशेषज्ञों और डेमोक्रेट्स ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। इनका कहना है कि ट्रंप की राजनीतिक जरूरतें एक ईमानदार नियमित प्रक्रिया की अनदेखी कर रही हैं, जिससे इसकी सुरक्षा के संबंध में सार्वजनिक विश्वास को हानि पहुंच सकती है और एक नए प्रकार का स्वास्थ्य संकट खड़ा हो सकता है।
अमेरिका में हुए ट्रायलों के हवाले से वहां के मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि अभी तक ऐसे मजबूत परिणाम नहीं मिले हैं, जो इस बात का समर्थन करें कि कोविड-19 के खिलाफ प्लाज्मा थेरेपी फायदेमंद है। हालांकि अब एफडीए ने कहा है कि उसके पास अभी तक जो डेटा उपलब्ध है, वह यह विश्वास करने के लिए काफी है कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 की गंभीरता को कम करने या इस बीमारी की मियाद को कम करने में मददगार हो सकती है। एफडीए ने अपने डेटा में शामिल एक दर्जन से ज्यादा प्रकाशित अध्ययनों के हवाले से अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों के लिए यह बात कही है।
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एनवाईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, एफडीए का कहना है कि डायग्नॉसिस के शुरुआती तीन दिनों में ही प्लाज्मा थेरेपी देने से कोरोना संक्रमण से निजात पाने में फायदा हो सकता है। एजेंसी के बायोलॉजिक्स सेंटर के निदेशक डॉ. पीटर मार्क्स का अध्ययनों के आधार पर कहना है कि कोविड-19 के जिन मरीजों की उम्र 80 साल से कम है और जो मरीज रेस्पिरेटर पर नहीं थे, उनमें बीमारी का पता चलने के तीन दिन के अंदर प्लाज्मा देने से एक महीने बाद जीवित रहने की संभावना उन मरीजों से 35 प्रतिशत ज्यादा थी, जिन्हें कम स्तर के एंटीबॉडी बतौर प्लाज्मा दिए गए थे।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
इस तकनीक में बीमारी से ठीक हुए लोगों के शरीर के खून से प्लाज्मा निकाल कर उसी बीमारी से पीड़ित दूसरे मरीजों का दिए जाते हैं। प्लाज्मा रक्त में मौजूद पीले रंग का तरल पदार्थ होता है, जिसके जरिये रक्त कोशिकाएं और प्रोटीन शरीर के अलग-अलग अंगों तक पहुंचती हैं। प्लाज्मा थेरेपी को कॉन्वलेंसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी कहते हैं।
कोविड-19 या अन्य संक्रामक रोग होने के प्रतिक्रिया स्वरूप हमारा शरीर रोग-प्रतिकारकों यानी एंटीबॉडीज का निर्माण कर लेता है। ये रोग-प्रतिकारक कोविड-19 और अन्य बीमारियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिन लोगों की रोग-प्रतिकारक क्षमता या इम्यून सिस्टम पहले से मजबूत होती है या इलाज के दौरान दुरुस्त हो जाती है, वे आसानी से कोरोना वायरस के संक्रमण को मात दे देते हैं। यही वजह है कि दुनियाभर में डॉक्टर और शोधकर्ता कोविड-19 की काट ढूंढने के लिए प्रयोग के तहत ऐसे लोगों के ब्लड सैंपल में से प्लाज्मा अलग करके उन लोगों को दे रहे हैं, जिनमें एंटीबॉडीज या तो बने नहीं हैं या वायरस को रोक पाने अथवा खत्म करने में सक्षम नहीं हैं।
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हालांकि, प्लाज्मा थेरेपी से मरीज का ठीक होना कई बातों पर निर्भर करता है। हाल के दिनों में इस विषय पर कुछ शोध सामने आए हैं। इनमें में बताया गया है कि कोविड-19 के मरीजों के ठीक होने के बाद उनके शरीर में कोरोना वायरस को खत्म करने वाले एंटीबॉडीज कुछ समय के बाद कम या खत्म हो जाते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि इस बीमारी के मरीजों के ठीक होने के बाद जितना जल्दी हो सके उनके शरीर से प्लाज्मा के रूप में एंटीबॉडी ले लिए जाएं। इससे उस मरीज के बचने की संभावना बढ़ सकती है, जिसे एंटीबॉडीज दिए जा रहे हैं