दिसंबर 2019 से पहले तक नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 का कोई नाम भी नहीं जानता था। लेकिन 27 जुलाई 2020 के आंकड़ों की मानें तो दुनियाभर के 1 करोड़ 64 लाख से ज्यादा लोग कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं। करीब साढे 6 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। दुनियाभर के जाने माने डॉक्टर्स और वैज्ञानिक फिलहाल हर संभव कोशिश में लगे हैं ताकि इस बीमारी का कोई इलाज खोजा जा सके और इस बेहद संक्रामक बीमारी कोविड-19 को और फैलने से रोका जा सके। 

अपनी इसी कोशिश में वैज्ञानिक और डॉक्टरों ने अब उन मरीजों का रुख किया है जो बिना किसी जटिलता के कोविड-19 इंफेक्शन से पूरी तरह से उबर चुके हैं। दुनियाभर की बात करें तो 27 जुलाई 2020 के आंकड़ों के मुताबिक अब तक 1 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। 

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कोविड-19 से उबरने वाले मरीजों के इम्यून सिस्टम यानी बीमारियों से लड़ने की क्षमता ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज का निर्माण किया। ये एंटीबॉडीज वायरस को प्रभावहीन कर देती हैं जिस वजह से वायरस, स्वस्थ कोशिकाओं को संक्रमित नहीं कर पाता। ऐसे में डॉक्टरों ने इन एंटीबॉडीज को दूसरे लोगों के शरीर में ट्रांसफर करने का तरीका खोज लिया है- ताकि इंफेक्शन का इलाज करने के साथ ही उसे फैलने से भी रोका जा सके। वायरस के खिलाफ इन रेडीमेड (पहले से तैयार किए हुए) एंटीबॉडीज के ट्रांसफर को ही कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी या पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी कहा जाता है।

वैक्सीन और कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी (एंटीबॉडी थेरेपी) में क्या अंतर है?

हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम में किसी भी बाहरी तत्व को शरीर के अंदर प्रवेश करने से रोकने की ताकत होती है। इसी बाहरी तत्व को एंटीजेन कहते हैं। इस एंटीजेन से लड़ने के लिए शरीर एक फाइटिंग एजेंट तैयार करता है जिसे एंटीबॉडी कहते हैं। कुछ खास बीमारियों से बचाने के लिए बचपन में ही नवजात शिशुओं को कुछ टीके लगवाए जाते हैं। इन टीकाकरणों को ऐक्टिव वैक्सीनेशन्स या सक्रिय टीकाकरण कहते हैं क्योंकि ये हमारे शरीर को सीधे इम्यूनिटी प्रदान नहीं करते- बल्कि ये हमारे इम्यून सिस्टम को सक्रिय करते हैं ताकि वह बीमारियों से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज का निर्माण करे।

हालांकि प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) में, एक खास तरह की एंटीबॉडी की जरूरत होती है ताकि बीमारी फैलाने वाले उस खास तरह के एजेंट को मारा जा सके और इन एंटीबॉडीज को सीधे शरीर के अंदर पहुंचाया जा सके। प्लाज्मा थेरेपी या पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी प्रबंधन एक बेहद गुणकारी और शक्तिशाली तरीका है उन लोगों को तुरंत इम्यूनिटी देने का जो किसी खास बीमारी के प्रति अतिसंवेदनशील हैं। इससे पहले भी कई वायरल बीमारियों जैसे- पोलियोमेलाइटिस, मीजल्स यानी खसरा, मम्प्स यानी गलसुआ और इन्फ्लूएंजा के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी या पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी का इस्तेमाल किया जा चुका है।

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  1. प्लाज्मा थेरेपी कैसे दी जाती है
  2. प्लाज्मा थेरेपी में एंटीबॉडीज का सोर्स क्या है?
  3. प्लाज्मा थेरेपी कब किया जाता है
  4. कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए क्या प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) का इस्तेमाल हो सकता है?
  5. प्लाज्मा थेरेपी किन परिस्थितियों में दिया जाता है
  6. प्लाज्मा थेरेपी के साइड-इफेक्ट्स
कोविड-19 के मरीजों को दी जाने वाली कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी क्या है? के डॉक्टर

जो व्यक्ति कोविड-19 इंफेक्शन से पूरी तरह से उबर चुका है उनके शरीर से खून निकाला जाता है। उनके खून की जांच की जाती है कि उसमें वायरस न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज की मौजूदगी है या नहीं। इसमें एलिसा जैसे कई तरह के सेरोलॉजिकल और वायरल परीक्षणों की मदद ली जाती है। उसके बाद वह सीरम जिसमें वायरस को न्यूट्रलाइज यानी प्रभावहीन बनाने वाले एंटीबॉडीज अधिक मात्रा में मौजूद होते हैं उसे खून से अलग कर लिया जाता है। 

इसके बाद मरीज को दोबारा स्वस्थ कर देने वाले इस सीरम को उन हाई-रिस्क मरीजों के शरीर में इंजेक्शन की मदद से डाल दिया जाता है। ये हाई रिस्क मरीज वे लोग हो सकते हैं जिन्हें कोविड-19 इंफेक्शन के साथ-साथ कोई और बीमारी भी हो, मरीजों का इलाज करने वाले मेडिकल प्रफेशनल्स, वैसे मरीज जिनमें कोविड-19 संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है या फिर वैसा शख्स जो कोविड-19 मरीज की देखभाल के लिए हर वक्त उनके नजदीक रहता हो।

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वायरस को प्रभावहीन बनाने वाले इन एंटीबॉडीज को आमतौर पर उन लोगों के खून से निकाला जाता है जो सार्स-सीओवी-2 इंफेक्शन से पूरी तरह से ठीक होकर उबर चुके हैं। किसी बीमार मरीज को फिर से स्वस्थ बनाने वाला यह सीरम कुछ खास तरह के जानवरों में भी तैयार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आनुवांशिक रूप से संशोधित की गईं (जेनेटिकली मॉडिफाइड) वैसी गाय जो इंसान के एंटीबॉडीज का निर्माण कर सकती हैं। जैसे-जैसे कोविड-19 से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे स्वास्थ्य लाभ देने वाले इस सीरम के संभावित डोर्नस की संख्या भी बढ़ेगी।

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अब तक डॉक्टरों ने यही पाया है कि प्लाज्मा थेरेपी या पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी को अगर सुरक्षात्मक उपाय के तौर पर पहले ही दिया जाए तो यह ज्यादा असरदार साबित होता है, इस बात की तुलना में कि इसका इस्तेमाल बाद में इलाज के लिए किया जाए। अगर सीरम का इस्तेमाल बीमारी के इलाज के लिए करना भी है तो इसे तभी दे दिया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति में कोविड-19 के लक्षण दिखने शुरू हों। वैज्ञानिकों की मानें तो शरीर में इन्फ्लेमेशन से लड़कर उसे दूर करने में मदद करता है एंटीबॉडीज। लिहाजा शुरुआती स्टेज में जब संक्रमण और इन्फ्लेमेशन का भार कम है और व्यक्ति अलक्षणी है उस वक्त एंटीबॉडीज ज्यादा काम करती हैं।

प्लाज्मा थेरेपी का ठीक इसी तरह का इस्तेमाल न्यूमोकॉकल निमोनिया के इलाज में भी देखा गया था जब ज्यादातर फायदा तब दिखा जब एंटीबॉडी को लक्षण दिखने के तुरंत बाद शरीर में डाल दिया गया। हॉन्ग कॉन्ग में साल 2003 में सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) के दौरान भी 80 मरीजों में ठीक ऐसे ही मिलते जुलते नतीजे देखने को मिले थे। स्टडी के नतीजों से पता चला कि जिन मरीजों को वायरस से संक्रमित होने के 14 दिन के अंदर प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) दी गई उनकी स्थिति में बेहतरीन सुधार हुआ और उन्हें 22 दिन से पहले ही अस्पताल से छुट्टी मिल गई।

हालांकि इस बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि बीमारी से रिकवर हो चुके मरीजों के खून से एंटीबॉडीज निकालकर सिर्फ उन्हीं मरीजों के इलाज में इस्तेमल होना चाहिए जिन्हें पहले से फेफड़ों से संबंधित कोई बीमारी है या फिर वैसे मरीज जिन्हें प्लाज्मा नहीं दिया जा सकता क्योंकि उनमें ट्रांसफ्यूजन के जरिए गंभीर लंग्स इंजूरी होने का खतरा है।

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हालांकि प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) का इस्तेमाल आमतौर पर रोगनिरोधी मकसद से किया जाता है लेकिन कुछ मामलों में डॉक्टरों ने इस स्वास्थ्यलाभ देने वाले सीरम का इस्तेमाल बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर भी किया है। चीन में डॉक्टरों ने ऐसे 5 गंभीर रूप से बीमार मरीजों में इस एंटीबॉडी सीरम का इस्तेमाल किया जो कोविड-19 के मरीज होने के साथ ही जिनमें एक्यूट रेस्पिरेटरी डिजीज सिंड्रोम (ARDS) भी हो गया था।

इस सीरम को 5 डोनर्स ने दान किया था जिनकी उम्र 18 साल से 60 साल के बीच थी। वायरस को प्रभावहीन करने वाले एंटीबॉडी से भरपूर इस स्वास्थ्यलाभ देने वाले सीरम को शरीर में डालने के बाद इन मरीजों के क्लीनिकल स्टेटस में बेहतरीन सुधार देखा गया। बेहद गंभीर रूप से बीमार मरीजों पर पहली बार इस सीरम का इस्तेमाल नहीं हुआ था। बल्कि इससे पहले भी ताइवान में साल 2003 में सार्स से पीड़ित और गंभीर रूप से बीमार 3 मरीजों के इलाज के लिए 500ml सीरम का इस्तेमाल किया गया था। इन तीनों मरीजों में वायरल लोड कम हो गया और उनकी जान बच गई।

ये कुछ नियम और परिस्थितियां हैं जिन्हें पूरा करने पर ही प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) दी जा सकती है:

  • डोनर्स की तादाद अच्छी खासी है जो बीमारी से पूरी तरह से उबर चुके हैं और अपना एंटीबॉडी से भरपूर सीरम दान में दे सकते हैं।
  • ब्लड बैंक के पास यह सुविधा होनी चाहिए कि वह दान किए गए खून में से इस सीरम को निकाल पाएं।
  • सेरोलॉजिकल एसेज और विरोलॉजिकल एसेज जैसे टेस्ट की भी सुविधा मौजूद होनी चाहिए।
  • इन एसेज को करने के लिए इलाके में विरोलॉजी लैब्स भी मौजूद होने चाहिए।
  • क्लीनिकल ट्रायल के जरिए सीरम कितना असरदार है इसकी जांच करने की व्यवस्था होनी चाहिए और सीरम डालने के बाद इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया क्या है इसे भी मापने की व्यवस्था होनी चाहिए।
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प्लाज्मा थेरेपी (पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी) से जुड़ा खतरा या रिस्क ठीक वैसा ही जो ब्लड ट्रांसफ्यूजन से जुड़ा है। ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी से जुड़े कुछ साइड इफेक्ट्स इस प्रकार हैं:

  • सीरम के ट्रांसफ्यूजन के दौरान अगर लापरवाही बरती जाए तो एक बार फिर इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • शरीर में डाले गए सीरम के घटकों की वजह से शरीर में एलर्जी से जुड़ी प्रतिक्रियाएं जैसे- खुजली और पित्ती की समस्या हो सकती है।
  • सीरम ट्रांसफ्यूजन के बाद कुछ लोगों में इम्यूनोलॉजिकल प्रतिक्रियाएं जैसे- सीरम सीकनेस भी देखने को मिल सकता है। इसके लक्षणों की बात करें तो इसमें- बुखार, त्वचा पर चकत्ते पड़ना, पॉलिआर्थराइटिस या मल्टीपल जॉइंट्स पेन शामिल है।
  • कुछ बेहद असाधारण (रेयर) मामलों में पैसिव एंटीबॉडी थेरेपी की वजह से एंटीबॉडी डिपेंडेंट इनहैन्समेंट ऑफ इंफेक्शन (ADE) होने का भी खतरा रहता है। यह एक विपरित साइड इफेक्ट है जिसमें वायरस को प्रभावहीन बनाने वाली एंटीबॉडीज ही शरीर में और ज्यादा वायरस को प्रवेश करने में मदद करने लगते हैं।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के मरीजों को दी जाने वाली कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी क्या है? है

संदर्भ

  1. Shen C, Wang Z, Zhao F, et al. Treatment of 5 Critically Ill Patients With COVID-19 With Convalescent Plasma. JAMA. Published online March 27, 2020. doi:10.1001/jama.2020.4783
  2. The Rockefeller University. New York. US; Research Program on COVID-19/SARS-COV-2
  3. Rixe N, Tavarez MM. Serum Sickness. [Updated 2020 Jan 28]. In: StatPearls [Internet].
  4. The Journal of Clinical Investigation. American Society for Clinical Investigation. US [internet]; The convalescent sera option for containing COVID-19
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