कोविड-19 से ठीक होने के बाद भी इसके कई रिकवर मरीजों में कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण बने रहते हैं। इनमें सांस की कमी, थकान, चिंता और अवसाद जैसे लक्षण शामिल हैं, जो रिकवरी के बाद दो-तीन महीनों तक बने रहते हैं। कुछ मरीजों में तो उससे भी ज्यादा समय तक ये लक्षण नहीं जाते। कई अध्ययनों के जरिये यह तथ्य पहले भी सामने आ चुका है। अब इस पर दुनिया की प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगा दी है।
खबर के मुताबिक, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हुई इस स्टडी में कोविड-19 के 58 मरीजों का विश्लेषण किया गया था। इसमें बीमारी के चलते इन लोगों के स्वास्थ्य पर पड़े दीर्घकालिक प्रभाव की जांच की गई थी। इस दौरान वैज्ञानिकों ने जाना कि कोरोना वायरस के चलते कुछ मरीजों के कई अंगों में अलग-अलग प्रकार की समस्याएं पैदा हो गई थीं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, संक्रमण से ग्रस्त होने के बाद और उससे पैदा हुई इन्फ्लेमेशन के चलते इन मरीजों में महीनों से ये समस्याएं बनी हुई हैं।
अध्ययन में ऑक्सफोर्ड विशेषज्ञों ने पाया है कि कोविड-19 होने के दो-तीन महीने बाद 64 प्रतिशत मरीजों में सांस की कमी या कहें सांस लेने में तकलीफ रहती है। वहीं, 55 प्रतिशत मरीज थकान से परेशान रहते हैं। एमआरआई स्कैनिंग से पता चला है कि ऐसे 60 प्रतिशत मरीजों के फेफड़ों में विषमताएं पैदा हो जाती हैं। 29 प्रतिशत किडनी, 26 प्रतिशत हृदय और 10 प्रतिशत रिकवर मरीज लिवर से जुड़ी समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।
हालांकि अध्ययन में सामने आए इन तथ्यों को अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं किया गया है और न ही इनकी समीक्षा की गई है। अध्ययन का एक कमजोर पहलू यह भी हो सकता है कि इसमें शामिल किए गए लोगों की संख्या काफी कम है यानी सैंपल साइज छोटा है। इस आधार पर कई अन्य वैज्ञानिक व मेडिकल विशेषज्ञ परिणामों पर सवाल उठा सकते हैं या किसी मेडिकल जर्नल में इनके प्रकाशित होने तक इंतजार करने का सुझाव दे सकते हैं।
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लेकिन इन बातों से यह तथ्य नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद भी कई लोग इसके प्रभावों से कई हफ्तों और कुछ तो महीनों से परेशान हैं। हाल के समय में ये प्रभाव फेफड़े, हृदय, किडनी, लिवर आदि के बाद मस्तिष्क में भी दिखने लगे हैं। अध्ययनों के हवाले से वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कोरोना वायरस मरीजों के लिए न सिर्फ शारीरिक समस्याएं पैदा कर रहा है, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से किसी न किसी प्रकार से अक्षम भी बना रहा है।