भारत में नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 चीन से नहीं, बल्कि यूरोप, मध्य पूर्व (मिडिल ईस्ट) और ओशेनिया महाद्वीपों से आया है। कोरोना वायस को लेकर भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई एक अध्ययन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। खबरों के मुताबिक, आईआईएससी के माइक्रोबायॉलजी और सेल बायॉलजी विभाग के प्रोफेसर कुमारवेल सोमासुंदरम, मैनक मोंडल और अंकिता लवार्डे ने भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत (ऑरिजिन) और इसके फैलाव की वैज्ञानिक जांच की है। इसके लिए टीम ने जेनोमिक्स (मॉलिक्यूलर बायॉलजी की एक शाखा, जिसमें वंशाणुओं की बनावट, कार्यप्रणाली, विकास आदि का अध्ययन किया जाता है) का इस्तेमाल किया।
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शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस के जीनोम सीक्वेंस का विश्लेषण किया और भारत में इसके ऑरिजिन तथा इसके अलग-अलग आनुवंशिक रूपांतरण का अनुमान लगाया। विज्ञान पत्रिका 'करंट साइंस' में प्रकाशित इस वैज्ञानिक जांच की रिपोर्ट में कहा गया है, 'विश्लेषण से पता चला है कि भारत में अधिकतर (137 में से 129) सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस कई देशों से फैले हैं। पहले समूह के सार्स-सीओवी-2 ओशेनिया, कुवैत और दक्षिण एशिया में फैले कोरोना वायरस से मिलते-जुलते हैं, जबकि दूसरे समूह के वायरस सैंपल यूरोप के नमूनों से मेल खाते हैं और कुछ सार्स-सीओवी-2 मध्य पूर्व/दक्षिण एशिया में फैले वायरसों जैसे हैं। ये परिणाम यह संकेत देते हैं कि भारत में सार्स-सीओवी-2 यूरोप, मिडिल ईस्ट, दक्षिण एशिया और ओशेनिया के इलाकों से ज्यादा आया है।'
इस तरह, यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत के पीछे यूरोपीय और ओशेनियाई देशों के साथ-साथ मिडिल ईस्ट से आए सार्स-सीओवी-2 वायरसों का हाथ है। हालांकि, यह निष्कर्ष पक्के तौर पर नहीं निकाला जा सका देश में कोरोना वायरस के फैलने का सबसे पहले स्रोत क्या है। इसकी वजह यह बताई गई कि चूंकि शोधकर्ताओं के पास कोविड-19 के मरीजों की ट्रैवल/कॉन्टैक्ट हिस्ट्री से जुड़ी जानकारी नहीं थी, इसलिए वे यह नहीं जान सके कि वायरस सबसे पहले कहां से भारत में आया। लेकिन इतना जरूर साफ हुआ कि वायरस के सोर्स का भारतीयों के अन्य देशों में यात्रा करने से करीबी संबंध है।