कोरोना वायरस की चपेट में आने वाले बड़ी उम्र के बच्चे भी वयस्क संक्रमितों की तरह वायरस इन्फेक्शन ट्रांसमिट कर सकते हैं। अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दक्षिण कोरिया में बड़े पैमाने पर किए गए एक अध्ययन के परिणामों के हवाले से प्रकाशित अपनी एक हालिया रिपोर्ट में यह जानकारी दी थी। अखबार के मुताबिक, इस अध्ययन में यह पाया गया कि दस साल से छोटी उम्र के संक्रमित बच्चों की वायरस फैलाने की क्षमता वयस्कों की तुलना में आधी भी नहीं है, लेकिन दस से 19 साल की उम्र के बड़े बच्चे वयस्कों जितना ही संक्रमण फैला सकते हैं। इस आधार पर कई मेडिकल विशेषज्ञों की तरफ से यह अंदेशा भी जताया गया कि अगर स्कूल फिर से खोलने का फैसला किया गया तो इससे कम्युनिटी स्तर पर अलग-अलग जगह से सभी उम्र के बच्चों में संक्रमण फैलने के मामले सामने आएंगे।
अध्ययन के परिणामों पर बात करते हुए मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ माइकल ऑस्टरहोम ने कहा, 'मेरी चिंता का विषय लोगों का यह विचार है कि बच्चे इससे संक्रमित नहीं होंगे या अगर होंगे तो वयस्कों की तरह नहीं होंगे, लिहाजा वे लगभग बचे रहेंगे। (लेकिन) उनमें भी ट्रांसमिशन हो सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि अब हम इसे स्वीकार करें और उन्हें (बच्चों) अपनी (कोविड-19 से जुड़ी) योजनाओं में शामिल करें।'
वहीं, हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. आशीष झा कहते हैं कि यूरोप और एशिया में ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जो कहते हैं कि बड़े बच्चों के संक्रमित होने और संक्रमण फैलाने का खतरा कम है। डॉ. झा ने कहा, 'लेकिन ऐसे ज्यादातर अध्ययन या तो छोटे स्तर के थे या वे दोषपूर्ण थे। नया अध्ययन काफी ध्यान से किया गया है और बहुत बड़े पैमाने पर सिस्टमैटिक तरीके से अंजाम दिया गया है। यह अभी तक हुए सबसे अच्छे अध्ययनों में से एक है।' डॉ. आशीष झा की तरह अन्य कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी इस स्टडी की प्रशंसा की है।
इस अध्ययन में दक्षिण कोरिया के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित ऐसे 5,706 लोगों को शामिल किया, जिनमें 20 जनवरी से 27 मार्च के बीच घरों में रहते हुए कोविड-19 के लक्षण दिखाई दिए थे। यह वह समय था जब कोरोना संकट के चलते दक्षिण कोरिया में स्कूल बंद कर दिए गए थे। इन लोगों को आइडेंटिफाई करने के बाद शोधकर्ताओं ने उनके संपर्क में आए 59 हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेस किया। हरेक मरीज के घरों में रहने वाले लोगों का टेस्ट किया गया। ऐसा करते हुए इस बात को नहीं देखा गया कि किसमें बीमारी के लक्षण थे और किसमें नहीं। वहीं, घर से बाहर वाले संपर्क व्यक्तियों में केवल उन्हीं का टेस्ट किया गया, जिनमें कोविड-19 के लक्षण दिखे थे।
जांच के दौरान यह जरूरी नहीं पाया गया कि घरों में रहते हुए जिन लोगों में सबसे पहले संक्रमण के लक्षण दिखे थे, वे वायरस की चपेट में भी सबसे पहले आए थे। वहीं, बच्चों में कोविड-19 के लक्षण वयस्क मरीजों की तुलना में कम दिखाई दिए। इस पर अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि शायद अध्ययन में ट्रांसमिशन की चैन बनाने वाले बच्चों का सही आंकलन नहीं किया गया। हालांकि, इसके बावजूद विशेषज्ञों ने परिणामों को पर्याप्त बताया है। बहरहाल, अध्ययन के परिणामों से यह जरूर फिर साफ हुआ कि दस साल से कम उम्र के बच्चों में संक्रमण फैलाने की क्षमता बड़ों के मुकाबले आधी भी नहीं थी। लेकिन बड़ी उम्र के बच्चों को लेकर कहा गया, 'स्कूल खुलने पर वे संभवतः ज्यादा मात्रा में संक्रमण फैला सकते हैं। यह कम्युनिटी ट्रांसमिशन में भूमिका निभाने वाली बात होगी।'
विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें असिम्प्टोमैटिक युवा संक्रमितों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल की महामारी विशेषज्ञ कैटलिन रिवर्स कहती हैं कि अध्ययन में शोधकर्ताओं ने केवल कोविड-19 से बीमार पड़े बच्चों को ट्रेस किया है। उनके मुताबिक, इससे यह पता नहीं चल पाया कि जिन बच्चों में बीमारी के लक्षण नहीं दिखे, उन्होंने कितना ज्यादा वायरस फैलाया। कैटलिन का कहना है, 'हमेशा सिम्प्टोमैटिक बच्चों को संक्रामक माना जाता रहा है। लेकिन बिना लक्षण वाले संक्रमित बच्चे भी संक्रमण फैलाते हैं और उनकी भूमिका को लेकर सवाल पैदा होते हैं।'
कैटलिन रिवर्स द्वारा जताया गया अंदेशा कई जानकारों को सही लगता है। उनका कहना है कि मिडियम और हाई स्कूल के लेवल के बड़े बच्चे वयस्कों की तरह ही दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं। उनकी मानें तो बड़ी उम्र के बच्चे आकार और व्यवहार में वयस्कों जैसे होते हैं। उनकी तरह इन बच्चों में भी साफ-सफाई से जुड़ी खराब आदतें हो सकती हैं और उनकी सोशल लाइफ भी बड़ों जैसी हो सकती है।